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पुण्यतिथि विशेष: मौलाना हसरत मोहानी, जिन्होंने दिया था 'इंकलाब ज़िंदाबाद’ का नारा

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Published : May 13, 2022, 12:49 PM IST

Updated : May 13, 2022, 1:49 PM IST

मौलाना हसरत मोहानी भारत के उन उम्दा शायरों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी कलम से आजादी की एक लहर चलाई. भारत की आजादी में अहम योगदान देने वाले हसरत मोहानी एक महान शायर होने के साथ-साथ एक पत्रकार, राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी भी थे. आज उनकी पुण्यतिथि है.

मौलाना हसरत मोहानी पुण्यतिथि विशेष.
मौलाना हसरत मोहानी पुण्यतिथि विशेष.

उन्नाव: भारत को 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा देकर अंग्रेजों से लड़ने का हौसला देने वाले हसरत मोहानी की आज पुण्यतिथि है. हसरत मोहानी का शख्सियत बहुआयामी थी. मौलाना हसरत मोहानी जो एक उर्दू शायर, पत्रकार, राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य थे. हर विधा में उनका बेशकीमती योगदान था.

मौलाना हसरत मोहानी के बारे में जानकारी देते ग्रामीण और संवाददाता.

भारत के इस महान शायर और स्वतंत्रता सेनानी, हसरत मोहानी का जन्म 1 जनवरी 1875 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव के मोहान गांव में हुआ था. उनका असली नाम सैय्यद फजल उल हसन था. वह बचपन से ही बहुत मेहनती छात्र थे, उन्होंने राजकीय स्तरीय परीक्षा में टॉप किया था. आगे की पढ़ाई उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) से की. मोहानी ने कॉलेज के दिनों से ही स्वतंत्रता अभियान में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था. जिसकी वजह से कॉलेज से निष्कासित भी किया गया, मगर वह कभी पीछे नहीं हटे. इस कारण उन्हें साल 1903 में जेल भी जाना पड़ा था. जिसके बाद वह AMU में आजादी के नायक के रूप में उभरे.

उर्दू साहित्य और शायरी में दिलचस्पी
हसरत मोहानी ने अपनी गजलों से आम लोगों के दिलों में जगह बनाई. उन्होंने समाज, इतिहास और सत्ता के बारे में भी काफी कुछ लिखा. वह उन शायरों में से थे, जिनकी रचनाओं में आजादी की झलक थी. अपनी गजलों में जिंदगी को बयान करने के साथ-साथ उन्होंने आजादी के जज्बे को भी जाहिर किया. इसी कारण उन्हें 'उन्नतशील गजलों का प्रवर्तक' कहा जा सकता है. स्कूल के दिनों से ही उनकी उर्दू साहित्य और शायरी में दिलचस्पी थी. इस स्वतंत्रता सेनानी ने अपने स्कूल के दिनों में ही शायरी करनी शुरू कर दी थी और उन्होंने उर्दू शायरी के शास्त्रीय रूप को पुनर्जीवित करने में काफी अहम भूमिका निभाई थी. फारसी और अरबी भाषा का विद्वान होने के नाते वह गालिब के पहले आलोचकों में से थे.

उन्नाव में नहीं मिली पहचान
उन्नाव शहर मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर स्थित मोहान कस्बे में जन्मे हसरत मोहानी की आज पुण्यतिथि है. हसरत मोहनी का इंतकाल हुए लगभग 70 साल से ज्यादा का समय हो चुका है, लेकिन आज भी उनके नाम पर उन्नाव में कोई भी ऐसा प्रतिष्ठान या कोई भी ऐसी पहचान नहीं है जो सिर्फ हसरत मोहानी के नाम से जानी जाती हो. हसरत मोहानी का देश की आजादी में अहम रोल रहा है लेकिन उन्नाव में उनकी याद में कोई भी काम नहीं हुआ. मोहान कस्बे में स्थित हसरत मोहानी के घर में मोहान वासियों ने एक मदरसा संचालित किया हुआ है. इस मदरसे में बच्चों को शिक्षा दी जाती है. वहीं, इस मदरसे के अलावा जनपद में हसरत मोहनी के नाम से कोई भी खासा काम नहीं हुआ. जिससे उनकी पहचान उजागर हो सके. भारत के महान शायर और आजादी के लिए लड़ने वाले मौलाना हसरत मोहानी ने 13 मई 1951 को दुनिया को अलविदा कह दिया था.

इसे भी पढे़ं- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़े हसरत मोहानी हर साल जन्माष्टमी पर जाते थे मथुरा

उन्नाव: भारत को 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा देकर अंग्रेजों से लड़ने का हौसला देने वाले हसरत मोहानी की आज पुण्यतिथि है. हसरत मोहानी का शख्सियत बहुआयामी थी. मौलाना हसरत मोहानी जो एक उर्दू शायर, पत्रकार, राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य थे. हर विधा में उनका बेशकीमती योगदान था.

मौलाना हसरत मोहानी के बारे में जानकारी देते ग्रामीण और संवाददाता.

भारत के इस महान शायर और स्वतंत्रता सेनानी, हसरत मोहानी का जन्म 1 जनवरी 1875 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव के मोहान गांव में हुआ था. उनका असली नाम सैय्यद फजल उल हसन था. वह बचपन से ही बहुत मेहनती छात्र थे, उन्होंने राजकीय स्तरीय परीक्षा में टॉप किया था. आगे की पढ़ाई उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) से की. मोहानी ने कॉलेज के दिनों से ही स्वतंत्रता अभियान में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था. जिसकी वजह से कॉलेज से निष्कासित भी किया गया, मगर वह कभी पीछे नहीं हटे. इस कारण उन्हें साल 1903 में जेल भी जाना पड़ा था. जिसके बाद वह AMU में आजादी के नायक के रूप में उभरे.

उर्दू साहित्य और शायरी में दिलचस्पी
हसरत मोहानी ने अपनी गजलों से आम लोगों के दिलों में जगह बनाई. उन्होंने समाज, इतिहास और सत्ता के बारे में भी काफी कुछ लिखा. वह उन शायरों में से थे, जिनकी रचनाओं में आजादी की झलक थी. अपनी गजलों में जिंदगी को बयान करने के साथ-साथ उन्होंने आजादी के जज्बे को भी जाहिर किया. इसी कारण उन्हें 'उन्नतशील गजलों का प्रवर्तक' कहा जा सकता है. स्कूल के दिनों से ही उनकी उर्दू साहित्य और शायरी में दिलचस्पी थी. इस स्वतंत्रता सेनानी ने अपने स्कूल के दिनों में ही शायरी करनी शुरू कर दी थी और उन्होंने उर्दू शायरी के शास्त्रीय रूप को पुनर्जीवित करने में काफी अहम भूमिका निभाई थी. फारसी और अरबी भाषा का विद्वान होने के नाते वह गालिब के पहले आलोचकों में से थे.

उन्नाव में नहीं मिली पहचान
उन्नाव शहर मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर स्थित मोहान कस्बे में जन्मे हसरत मोहानी की आज पुण्यतिथि है. हसरत मोहनी का इंतकाल हुए लगभग 70 साल से ज्यादा का समय हो चुका है, लेकिन आज भी उनके नाम पर उन्नाव में कोई भी ऐसा प्रतिष्ठान या कोई भी ऐसी पहचान नहीं है जो सिर्फ हसरत मोहानी के नाम से जानी जाती हो. हसरत मोहानी का देश की आजादी में अहम रोल रहा है लेकिन उन्नाव में उनकी याद में कोई भी काम नहीं हुआ. मोहान कस्बे में स्थित हसरत मोहानी के घर में मोहान वासियों ने एक मदरसा संचालित किया हुआ है. इस मदरसे में बच्चों को शिक्षा दी जाती है. वहीं, इस मदरसे के अलावा जनपद में हसरत मोहनी के नाम से कोई भी खासा काम नहीं हुआ. जिससे उनकी पहचान उजागर हो सके. भारत के महान शायर और आजादी के लिए लड़ने वाले मौलाना हसरत मोहानी ने 13 मई 1951 को दुनिया को अलविदा कह दिया था.

इसे भी पढे़ं- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़े हसरत मोहानी हर साल जन्माष्टमी पर जाते थे मथुरा

Last Updated : May 13, 2022, 1:49 PM IST
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