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सुलतानपुर में महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा के लिए जुटाया था भारी जनसमर्थन - महात्मा गांधी की 150वीं जयंती

सन् 1929-30 में महात्मा गांधी की दांडी यात्रा गुजरात से निकली और सुलतानपुर पहुंची. यात्रा के यहां पहुंचने के बाद सीता कुंड घाट पर महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने प्रवास करते हुए नमक बनाने के लिए स्थानीय लोगों का जन समर्थन जुटाया था.

महात्मा गांधी की 150वीं जयंती.
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Published : Oct 2, 2019, 10:36 PM IST

सुलतानपुर: अंग्रेजों से भारत को मुक्ति दिलाने में महात्मा गांधी की दांडी यात्रा बेहद अहम यात्रा मानी जाती है. 1929 में महात्मा गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी सुलतानपुर आए. उन्होंने यहां नमक बेचकर व्यापक जन समर्थन जुटाया था, जो नमक यात्रा की सफलता में अभूतपूर्व आधार साबित हुआ. यहां के लोगों ने रेलवे की नौकरियां छोड़कर नमक यात्रा में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.
स्थानीय लोगों का जन समर्थन जुटाया वर्ष 1929- 30 में महात्मा गांधी की दांडी यात्रा, जिसे नमक यात्रा के नाम से भी जानते हैं. गुजरात से निकली नमक यात्रा सुलतानपुर पहुंची और सीता कुंड घाट पर महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने प्रवास करते हुए नमक बनाने के लिए स्थानीय लोगों का जन समर्थन जुटाया था. सुलतानपुर प्रवास के दौरान महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने यहां रात्रि निवास भी किया था.

नौकरी छोड़ अभियान में शामिल हुए लोग
इतिहासकार डॉ. प्रभात श्रीवास्तव ने कहा कि 1929 में जब महात्मा गांधी की नमक यात्रा शुरू हुई थी. वह सुलतानपुर आए थे. उस समय सुलतानपुर पूर्वी अवध क्षेत्र में शामिल किया जाता था. उन्होंने बताया कि 1930 में महात्मा गांधी के साथ विद्याधर बाजपेई आए. पहले रेलवे में नौकरी किया करते थे, लेकिन सत्याग्रह यानि सत्य के आग्रह को देखते हुए इस अभियान में शामिल हुए. उस समय किसान आंदोलन भी चरमोत्कर्ष पर था.

नमक यात्रा को व्यापक जनसमर्थन मिला
इतिहासकार डॉ. प्रभात श्रीवास्तव ने बताया कि 12 मार्च 1920 की बात करें तो दांडी यात्रा जो गुजरात से निकली थी, सुलतानपुर पहुंची और इस दौरान बड़े पैमाने पर नमक बनाया गया, जो हाथों-हाथ बिक गया. इसकी वजह से नमक यात्रा को व्यापक जनसमर्थन मिला. वहीं आज भी जिले का सीता कुंड घाट सत्य और सत्याग्रह अहिंसा पर चलने के लिए तत्पर हैं.

ये भी पढ़ें- 90 साल पहले 2 अक्टूबर को गाजीपुर आए थे बापू, तब रास्ते में खराब हो गई थी कार

ये भी पढ़ें- बापू का काशी से था खास रिश्ता, बीएचयू के स्थापना दिवस में हुए थे शामिल

सुलतानपुर: अंग्रेजों से भारत को मुक्ति दिलाने में महात्मा गांधी की दांडी यात्रा बेहद अहम यात्रा मानी जाती है. 1929 में महात्मा गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी सुलतानपुर आए. उन्होंने यहां नमक बेचकर व्यापक जन समर्थन जुटाया था, जो नमक यात्रा की सफलता में अभूतपूर्व आधार साबित हुआ. यहां के लोगों ने रेलवे की नौकरियां छोड़कर नमक यात्रा में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.
स्थानीय लोगों का जन समर्थन जुटाया वर्ष 1929- 30 में महात्मा गांधी की दांडी यात्रा, जिसे नमक यात्रा के नाम से भी जानते हैं. गुजरात से निकली नमक यात्रा सुलतानपुर पहुंची और सीता कुंड घाट पर महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने प्रवास करते हुए नमक बनाने के लिए स्थानीय लोगों का जन समर्थन जुटाया था. सुलतानपुर प्रवास के दौरान महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने यहां रात्रि निवास भी किया था.

नौकरी छोड़ अभियान में शामिल हुए लोग
इतिहासकार डॉ. प्रभात श्रीवास्तव ने कहा कि 1929 में जब महात्मा गांधी की नमक यात्रा शुरू हुई थी. वह सुलतानपुर आए थे. उस समय सुलतानपुर पूर्वी अवध क्षेत्र में शामिल किया जाता था. उन्होंने बताया कि 1930 में महात्मा गांधी के साथ विद्याधर बाजपेई आए. पहले रेलवे में नौकरी किया करते थे, लेकिन सत्याग्रह यानि सत्य के आग्रह को देखते हुए इस अभियान में शामिल हुए. उस समय किसान आंदोलन भी चरमोत्कर्ष पर था.

नमक यात्रा को व्यापक जनसमर्थन मिला
इतिहासकार डॉ. प्रभात श्रीवास्तव ने बताया कि 12 मार्च 1920 की बात करें तो दांडी यात्रा जो गुजरात से निकली थी, सुलतानपुर पहुंची और इस दौरान बड़े पैमाने पर नमक बनाया गया, जो हाथों-हाथ बिक गया. इसकी वजह से नमक यात्रा को व्यापक जनसमर्थन मिला. वहीं आज भी जिले का सीता कुंड घाट सत्य और सत्याग्रह अहिंसा पर चलने के लिए तत्पर हैं.

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Intro:नमक यात्रा पर विशेष
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शीर्षक : महात्मा गांधी और कस्तूरबा ने सुल्तानपुर में नमक बेच जुटाया था जनसमर्थन।



एंकर : अंग्रेजों से भारत को मुक्ति दिलाने में नमक यात्रा बेहद अहम यात्रा महात्मा गांधी की मानी जाती है। सुल्तानपुर में महात्मा गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी ने नमक बेचकर व्यापक जन समर्थन जुटाया था। जो नमक यात्रा की सफलता में अभूतपूर्व आधार साबित हुआ। यहां के लोगों ने रेलवे की नौकरियां छोड़कर नमक यात्रा में हाथ से हाथ मिलाया था। सुल्तानपुर प्रवास के दौरान महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने यहां रात्रि निवास भी किया था।


Body:वीओ : वर्ष 1929- 30 में महात्मा गांधी की दांडी यात्रा जिसे नमक यात्रा के नाम से भी जानते हैं। अंग्रेजी सरकार की चूलें हिला दी थी। गुजरात से निकली नमक यात्रा सुल्तानपुर पहुंची और सीता कुंड घाट पर महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी ने प्रवास करते हुए नमक बनाने के लिए स्थानीय लोगों का जन समर्थन जुटाया था।

बाइट : बात करते हैं सन 1929 की । जब महात्मा गांधी की नमक यात्रा शुरू हुई थी। वह सुल्तानपुर आए थे। उस समय सुल्तानपुर पूर्वी अवध क्षेत्र में शामिल किया जाता था। सुल्तानपुर के सीता कुंड घाट स्थानीय लोगों ने 'स्वच्छता ही सेवा है' के नाम से स्वच्छ किया है। देखने में भी अच्छा लगता है और बड़ा पवित्र लगता है। 1930 में महात्मा गांधी के साथ विद्याधर बाजपेई आए। पहली रेलवे में नौकरी किया करते थे। लेकिन सत्याग्रह यानि सत्य के आग्रह को देखते हुए इस अभियान में शामिल हुए। उस समय किसान आंदोलन भी चरमोत्कर्ष पर था। 12 मार्च 1920 की बात करते हैं तो दांडी यात्रा जो गुजरात से निकली। सुल्तानपुर में आने के दौरान हाथों-हाथ बड़े पैमाने पर नमक बनाया गया। इसकी वजह से व्यापक जनसमर्थन मिला। उसी कड़ी में सुल्तानपुर का सीता कुंड घाट आज भी सत्य और सत्याग्रह अहिंसा पर चलने के लिए तत्पर है।
डॉ प्रभात श्रीवास्तव, इतिहासकार राणा प्रताप पीजी कॉलेज


Conclusion:वाइस ओवर : सुल्तानपुर का सीता कुंड घाट आज भी महात्मा गांधी की जयंती पर चहक उठता है। घाट के बगल स्थित गनपत सहाय पीजी कॉलेज में महात्मा गांधी ने कस्तूरबा गांधी के साथ रात बिताई और यह नमक आंदोलन को सफल बनाने के लिए व्यापक जन समर्थन जुटाया।




आशुतोष मिश्रा, 9121293029, सुलतानपुर
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