भदोही: जब बात हिंदू-मुस्लिम एकता हो, सामाजिक सौहार्द की हो और अनेकता में एकता की मिसाल की हो तो भारतीय संस्कृति और भारतीय सबसे आगे होते हैं. विविधता और गंगा-जमुनी तहजीब भारत में ही कायम है. इन बातों को एक मूर्ति कलाकार गुलाम मुस्तफा ने और भी सही साबित किया है. गुलाम मुस्तफा चार दशक से भगवान की मूर्तियां बना रहे हैं. उसी को आगे बढ़ा रहे हैं. इस समय मुस्तफा की उम्र 64 वर्ष हो चुकी है, लेकिन आज भी वह उसी चाल से भगवान की मूर्तियों में रंग भरते हैं. उसी लगन से काम करते हैं.
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मुस्लिम कलाकार बनाते हैं भगवान की मूर्तियां-
गुलाम मुस्तफा अभी दशहरा, गणेश पूजा और शिवरात्रि के लिए मूर्तियां बनाने में व्यस्त हैं. गुलाम मुस्तफा कहते हैं कि वह हिंदू धर्म की उन बारीकियों को भी जानते हैं जो कोई हिंदू नहीं जानता होगा. उनका धर्म और मजहब ही उनका कार्य है. कला इन सबसे ऊपर उठकर है. मुस्तफा शुरुआती दिनों में जब मूर्तियां बनाया करते थे तो वह इसे मनोरंजन के लिए बनाते थे. 1984 में वह पहली बार मूर्ति बनाए थे, जो कि ज्ञानपुर के जेल में भगवान कृष्ण और राधे की मूर्ति थी.
कलाकार का नहीं कोई मजहब-
शुरुआती दिनों में मूर्ति बनाने के लिए मुस्तफा किसी से पैसे नहीं लेते थे, लेकिन जब धीरे-धीरे उन्हें लगा कि इसमें रोजगार सृजित किया जा सकता है और पैसा कमाया जा सकता है तो वह अपने काम के पैसे लेने लगे.आज भी वह पैसे की मांग नहीं करते हैं, जिसको जितना मर्जी होता है वह उनको दे देता है. मुस्तफा एक किस्सा बताते हुए हंसने लगे और कहा कि जिस समय राम मंदिर के लिए अयोध्या में तनाव की स्थिति थी, उसी साल रामनवमी में अयोध्या मंदिर का मॉडल तैयार कर रामनवमी में लगाया. इसके बाद कुछ लोग गुस्सा हो गए और मुझसे बात करना छोड़ दिया. उस समय मुस्तफा ने कहा कि जिस चीज के लिए हम इतनी लड़ाई लड़ रहे हैं. ये उसके विपरीत काम कैसे कर सकते हैं. बाद में वो लोग इस बात को समझ गए. यह उनकी कला है न कि वह किसी मजहबी सोच के साथ इसका निर्माण किए थे.
एक कलाकार को मजहब से ऊपर उठकर रहना चाहिए, जो मैं कर रहा हूं. हिंदू धर्म के कोई ऐसे देवी-देवता नहीं है, जिनकी मूर्तियां मैंने बनाई न हो. उसके अलावा मुहर्रम में ताजिया भी बनाई है. हमारा पूरा परिवार मूर्ति के काम में लगा हुआ है. ज्ञानपुर, भदोही, औराई और आसपास के कई जिलों में जाकर मूर्तियों का निर्माण करते हैं.
-गुलाम मुस्तफा ,मूर्ति कलाकार