रायबरेली: कहते हैं कि मजबूत इरादों के बल पर सब कुछ हासिल किया जा सकता है. कठिनाई पर जीत दर्ज करने की यह कहानी उत्तर प्रदेश के रायबरेली जनपद के डलमऊ विकास खंड के महिलाओं की है. गरीबी का दंश झेल रही महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह के माध्यम से आत्मनिर्भरता की राह पकड़ी है. बांस के बने बर्तनों जैसे डलिया,पंखे और बसोलिया समेत कई अन्य बर्तनों को बनाकर बेचने के जरिए महिलाएं घर का खर्च चला रही हैं. कोरोना और लॉकडाउनके कारण घर के पुरुषों की कमाई ठप हो गई थी. कुछ यही कारण रहा कि उनके इन भागीरथ प्रयासों को अब घर के पुरुषों का भी साथ मिल रहा है और परिवार की सूरत भी बदल रही है. पढ़िए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...
रायबरेली से स्पेशल रिपोर्ट वैश्विक महामारी कोरोना के दौर में उत्तर प्रदेश के रायबरेली जनपद की डलमऊ विकास खंड के ज्योतियामऊ गांव की महिलाओं ने वो कर दिखाया है, जो देशभर की महिलाओं के लिए मिसाल है. इन महिलाओं ने पीएम मोदी के आत्मनिर्भर भारत अभियान को साकार रूप देकर हर किसी को अपना मुरीद बना लिया है. हालांकि इसकी शुरुआत सालों पहले ही हुई थी, लेकिन बदलाव का असल असर और सही पहचान तब सामने आई जब वैश्विक महामारी के कारण सभी रोजगार व बाहरी कामों में पूरी तरह से रोक लग गई.
यूपी के रायबरेली जिले में महिलाएं बांस के उत्पाद को बनाकर अपनी रोजी-रोटी चला रही हैं. बांस के बर्तन बनाकर परिवार के आठ सदस्यों का चलता है खर्चा जिले के डलमऊ विकासखंड की रहने वाली संपाति ने बांस से बर्तन बनाकर बेचने के काम को समूह के जरिए अपनाया. उनके पति सालों से भंगार का काम करते रहे हैं. वह घर के काम से समय निकालकर बांस के बर्तन बनाती रहीं हैं. समूह के माध्यम से बिक्री होकर आमदनी भी होती रही ,लेकिन कोरोना के कारण जब लॉकडाउन लगा उसके बाद से पति का काम बंद हो गया. वह भी घर पर ही रहने लगे. इसके बाद उनके पति ने खाली समय में संपाति के काम मे ही जुटना मुनासिब समझा. अब दोनों के प्रयासों से अच्छी आमदनी भी हो रही है और घर का खर्चा भी चल रहा है. वही सभी बच्चे पढ़ाई में लगे रहते हैं.
जिले के डलमऊ विकासखंड की रहने वाली महिलाएं बांस से बर्तन बनाकर बेचने का काम को समूह के जरिए अपनाया है. महिला स्वयं सहायता समूह ने दी जीवन मे नई रोशनी राजीव गांधी महिला विकास परियोजना के तहत ज्योतियामऊ गांव में संचालित 'रोशनी स्वयं सहायता समूह' की कोषाध्यक्ष माधुरी कहती हैं कि इस पहल से कई लाभ मिले हैं. जीवन मे बदलाव भी आया है, अब यही रोजी,रोटी और कमाई का जरिया है. किसी प्रकार के आर्थिक लेन देन की जरुरत पड़ने पर भी सेठ और साहूकार के चक्कर लगाने नहीं पड़ते हैं. समूह स्तर पर ही हल निकल आता है. बांस के बर्तन बनाकर खुद आत्मनिर्भर भी हो रही हैं. घर पर रहकर ही आमदनी भी हो जाती है. यहीं घर पर ही व्यापारी आकर बर्तनों को ले जाते हैं और लगन के दिनों में इनकी बेहद मांग रही है और उम्मीद है आगे भी बरकरार रहेगी.
बांस के बने बर्तनों जैसे डलिया,पंखे और बसोलिया समेत कई अन्य बर्तनों को बनाकर बेचने के जरिए महिलाएं घर का खर्च चला रही हैं. हर किस्म के बांस के बर्तन बनाने का हुनर है हासिल स्वयं सहायता समूह से जुड़ी रन्नो कहती हैं कि बांस के बर्तन से ही परिवार पलता है. बांस से हर तरह के बर्तन बन जाते हैं. समूह का सहयोग भी मिलता है और किसी के आगे हाथ फैलाने की जरुरत भी नहीं पड़ती है. छह सदस्यों का परिवार इसी के सहारे छह महीने से ज्यादा समय तक जीवन यापन कर रहा है.
बांस के उत्पादों का निर्माण कर मोदी के 'आत्मनिर्भर भारत' को साकार कर रहीं महिलाएं मिलता है समूह को फायदा,नया सीखने से नहीं है कोई गुरेज स्वयं सहायता समूह के एक अन्य वरिष्ठ सदस्य रानी कहती हैं कि मेहनत करने में हम कतराते नहीं हैं और न ही नई चीजों को सीखने में पीछे भी नहीं रहते हैं. यदि सरकार हमे इस काम से जुड़ा कोई प्रशिक्षण भी देगी तो हम उसे सीखकर अपने हुनर को बढ़ाने का काम कर सकेंगे.
रायबरेली के अलावा कानपुर, फतेहपुर,बांदा,अमेठी आदि जनपदों के व्यापारी उनके समूह द्वारा बनाएं गए बर्तनों को ले जाते हैं. पत्नी ने साथ मिलकर बढ़ाया आमदनी का जरिया स्वंय सहायता समूह की सदस्य संपाति और बर्तन बनाने के कार्यों में मदद करने वाले उनके पति विजय कुमार कहते हैं कि पहले वो भंगार का काम करते थे, लेकिन अब महीनों से इसी काम में लगे हैं. बच्चों को पढ़ाई से वंचित नहीं होने देते और महीनों से इसी के जरिए घर का खर्च पूरा हो रहा है.
राजीव गांधी महिला विकास परियोजना के तहत ज्योतियामऊ गांव में संचालित 'रोशनी स्वयं सहायता समूह' डलमऊ के ज्योतियामऊ की महिलाओं द्वारा शुरू किए गए बांस के बर्तन निर्माण और उससे होने वाली आमदनी को देखकर अन्य महिलाएं भी समूह के जरिए जुड़कर बांस के बर्तन बनाने के इस व्यवसाय को बड़े स्तर पर ले जाने की दिशा में प्रयास कर रही हैं. गरीबी का दंश झेलने वाली उक्त महिलाएं समूह का गठन कर एक ओर जहां स्वयं स्वावलंबी बन रही हैं, वहीं दूसरी ओर अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत भी बनी हैं.
इन जिलों में है बांस के बर्तन की भारी डिमांडस्वयं सहायता समूह की कोषाध्यक्ष माधुरी बताती हैं कि रायबरेली के अलावा कानपुर, फतेहपुर,बांदा,अमेठी आदि जनपदों के व्यापारी उनके समूह द्वारा बनाएं गए बर्तनों को ले जाते हैं. हालांकि वह कहती हैं कि शादियों के दौरान इनकी भारी मांग रहती है.