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High Court: दत्तक पुत्र को मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति देने से इनकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले 23 वर्षों से अनुकंपा नियुक्ति की मांग कर रहे एक दत्तक पुत्र को राहत देने से इंकार कर दिया है.

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दत्तक पुत्र को मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति देने से इंकार
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Published : Aug 12, 2022, 10:14 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले 23 वर्षों से अनुकंपा नियुक्ति की मांग कर रहे एक दत्तक पुत्र को राहत देने से इंकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि याची ने जिस वर्ष नियुक्ति की मांग की थी, उस समय मृतक आश्रित सेवा नियमावली में दत्तक पुत्र परिवार में शामिल नहीं था. दत्तक पुत्र को 2011 में शामिल किया गया.

कोर्ट ने कहा कि 27 साल बाद यह नहीं कह सकते कि परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा है. इसके साथ ही अदालत ने कहा कि नियमावली के अंतर्गत एक सीमित समय सीमा में ही आवेदन किया जा सकता है. यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने जौनपुर के संजय कुमार सिंह की याचिका को खारिज करते हुए दिया है.

याची को वर्ष 1990 में राज्य सरकार के कर्मचारी राम अचल सिंह द्वारा पुत्र के रूप में गोद लिया गया था. पिता की 1995 में मृत्यु के पश्चात याची ने चार वर्ष बाद विभाग के समक्ष आश्रित कोटे में नियुक्ति की अर्जी दी थी. 2003 में विभाग ने संजय के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि दत्तक पुत्र को मृतक आश्रित कोटे के तहत नौकरी देने का नियम नहीं है. उक्त आदेश को इस याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई थी.

अदालत ने दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं को सुनने के बाद उच्चतम न्यायालय द्वारा भारत सरकार बनाम पी वेंकटेश एवं सेंट्रल कोलफील्ड बनाम पार्डन ऑरोन केस में अभिनिर्धारित विधि सिद्धांतों का उल्लेख करते हुए कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य विपदाग्रस्त परिवार को तत्काल आर्थिक राहत प्रदान कर संकट से उबारना होता है. अनुकंपा रोजगार का अर्थ यह नहीं कि भविष्य में इसकी मांग कभी भी कर ली जाए.

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प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले 23 वर्षों से अनुकंपा नियुक्ति की मांग कर रहे एक दत्तक पुत्र को राहत देने से इंकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि याची ने जिस वर्ष नियुक्ति की मांग की थी, उस समय मृतक आश्रित सेवा नियमावली में दत्तक पुत्र परिवार में शामिल नहीं था. दत्तक पुत्र को 2011 में शामिल किया गया.

कोर्ट ने कहा कि 27 साल बाद यह नहीं कह सकते कि परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा है. इसके साथ ही अदालत ने कहा कि नियमावली के अंतर्गत एक सीमित समय सीमा में ही आवेदन किया जा सकता है. यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने जौनपुर के संजय कुमार सिंह की याचिका को खारिज करते हुए दिया है.

याची को वर्ष 1990 में राज्य सरकार के कर्मचारी राम अचल सिंह द्वारा पुत्र के रूप में गोद लिया गया था. पिता की 1995 में मृत्यु के पश्चात याची ने चार वर्ष बाद विभाग के समक्ष आश्रित कोटे में नियुक्ति की अर्जी दी थी. 2003 में विभाग ने संजय के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि दत्तक पुत्र को मृतक आश्रित कोटे के तहत नौकरी देने का नियम नहीं है. उक्त आदेश को इस याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई थी.

अदालत ने दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं को सुनने के बाद उच्चतम न्यायालय द्वारा भारत सरकार बनाम पी वेंकटेश एवं सेंट्रल कोलफील्ड बनाम पार्डन ऑरोन केस में अभिनिर्धारित विधि सिद्धांतों का उल्लेख करते हुए कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य विपदाग्रस्त परिवार को तत्काल आर्थिक राहत प्रदान कर संकट से उबारना होता है. अनुकंपा रोजगार का अर्थ यह नहीं कि भविष्य में इसकी मांग कभी भी कर ली जाए.

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