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पांडुलिपि पुस्तकालय में देख सकते हैं भगवान राम के पूर्वजों और वंशजों के 187 नाम - सूर्यवंश की वंशावली

प्रयागराज के राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय (Prayagraj Government Manuscript Library) में 250 साल पुराने दस्तावेज मौजूद हैं. इसमें भगवान राम के पूर्वजों और वंशजों के 187 नाम देखे जा सकते हैं.

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भगवान राम के पूर्वजों और वंशजों के नाम
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Published : Jul 13, 2023, 10:59 PM IST

पांडुलिपि पुस्तकालय में देख सकते हैं भगवान राम के पूर्वजों के नाम

प्रयागराज : मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के बारे में हम सभी जानते हैं. उनके पिता दशरथ और पुत्र लवकुश के बारे में भी श्रीराम के भक्तों को पूरी जानकारी है, लेकिन सूर्यवंशी राजा राम के पूर्वजों और उनके वंशजों की विस्तृत जानकारी बहुत ही कम लोगों के पास है. प्रयागराज के राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय में आपको सूर्यवंशी भगवान राम के साथ ही 187 राजाओं के नाम मिल जाएंगे. राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय में 250 साल पुराने दस्तावेज मौजूद हैं. इसमें भगवान श्रीराम का नाम सूर्यवंशवाली में 64वें नम्बर पर दर्ज है.

1750 ई. के आसपास लिखा गया रजिस्टर : संगम नगरी प्रयागराज स्थित राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय में कई दुर्लभ पांडुलिपियां संजो कर रखी गयी हैं. इन्हीं पांडुलिपियों के बीच एक रजिस्टर भी मौजूद है. जिसमें सूर्यवंश के साथ ही चंद्र वंश और मुगल बादशाहों तक की वंशावली दर्ज है. 1750 ई. के करीब लिखे गए इस रजिस्टर में हिंदी के साथ ही अंग्रेजी, उर्दू और अरबी भाषा में लिखावट मिलती है. 250 साल से ज्यादा पुराने इस रजिस्टर को इन पांडुलिपि पुस्तकालय में सुरक्षित ढंग से रखा गया है. आज भी लोग रामायण महाभारत काल से लेकर मुगल शासनकाल तक के राजाओं महाराजाओं की वंशावली को यहां देख सकते हैं. इसमें सबसे खास वंशावली है मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की वंशावली. सूर्यवंश की वंशावली की शुरुआत राजा ज्योतिस्वरूप से हुई है. इसके बाद दूसरे नंबर पर राजा परमशिव का नाम अंकित है. जबकि, इसी वंशावली में भगवान श्रीराम का नाम 64वें स्थान पर लिखा हुआ है. इसी तरह से श्री राम के ऊपर राजा दशरथ उनसे पहले राजा अज उनसे पहले राजा रघु, राजा दिलीप, राजा भगीरथ, राजा सगर, राजा हरिश्चन्द्र जैसे विख्यात नाम अंकित हैं. राजाराम के बाद राजा के रूप में कुश का नाम अंकित है. इस पुस्तकालय में मौजूद सूर्यवंशवाली में कुल 187 नाम अंकित हैं. जिसमें राजा के रूप में आखिरी नाम राजा गोरखा बहादुर का नाम लिखा हुआ है. हेडकर बहुगुणा की डायरी में सूर्यवंश और चंद्रवंश समेत कई और वंशावली अंकित है.

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राम की वंशावली देखने दूर दूर से आते हैं लोग: राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय के पांडुलिपि अधिकारी गुलाम सरवर ने बताया कि, राम की वंशावली जो कि एक रजिस्टर में अंकित है, उसे देखने के लिए दूर-दूर से शोधार्थी और अन्य लोग यहां आते रहते हैं. पांडुलिपि अधिकारी ने बताया कि यह रजिस्टर 1750 ई का है. इसमें हिंदी, अंग्रेजी के साथ ही अन्य भाषाओं में वंशावली और अन्य जानकरियां अंकित हैं, उन्होंने बताया कि यह डायरी हेडकर बहुगुणा की है. इसे सालों से पांडुलिपि पुस्तकालय में रखा गया है. इस डायरी की निरंतर देखरेख की जाती है. वहीं, राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय के प्राविधिक सहायक संस्कृत हरिश्चन्द्र दुबे ने बताया कि इस डायरी को जिन्होंने लिखा है ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने कई पुस्तकों के अध्ययन के आधार पर अलग-अलग वंशावली बनायी होगी. हरिश्चन्द्र दुबे ने बताया कि पुस्तकालय में तमाम पांडुलिपियों को संरक्षित करके रखा गया है. यहां इस पुस्तकालय में लोग पांडुलिपियों को देख सकते हैं.

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पांडुलिपि पुस्तकालय में देख सकते हैं भगवान राम के पूर्वजों के नाम

प्रयागराज : मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के बारे में हम सभी जानते हैं. उनके पिता दशरथ और पुत्र लवकुश के बारे में भी श्रीराम के भक्तों को पूरी जानकारी है, लेकिन सूर्यवंशी राजा राम के पूर्वजों और उनके वंशजों की विस्तृत जानकारी बहुत ही कम लोगों के पास है. प्रयागराज के राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय में आपको सूर्यवंशी भगवान राम के साथ ही 187 राजाओं के नाम मिल जाएंगे. राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय में 250 साल पुराने दस्तावेज मौजूद हैं. इसमें भगवान श्रीराम का नाम सूर्यवंशवाली में 64वें नम्बर पर दर्ज है.

1750 ई. के आसपास लिखा गया रजिस्टर : संगम नगरी प्रयागराज स्थित राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय में कई दुर्लभ पांडुलिपियां संजो कर रखी गयी हैं. इन्हीं पांडुलिपियों के बीच एक रजिस्टर भी मौजूद है. जिसमें सूर्यवंश के साथ ही चंद्र वंश और मुगल बादशाहों तक की वंशावली दर्ज है. 1750 ई. के करीब लिखे गए इस रजिस्टर में हिंदी के साथ ही अंग्रेजी, उर्दू और अरबी भाषा में लिखावट मिलती है. 250 साल से ज्यादा पुराने इस रजिस्टर को इन पांडुलिपि पुस्तकालय में सुरक्षित ढंग से रखा गया है. आज भी लोग रामायण महाभारत काल से लेकर मुगल शासनकाल तक के राजाओं महाराजाओं की वंशावली को यहां देख सकते हैं. इसमें सबसे खास वंशावली है मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की वंशावली. सूर्यवंश की वंशावली की शुरुआत राजा ज्योतिस्वरूप से हुई है. इसके बाद दूसरे नंबर पर राजा परमशिव का नाम अंकित है. जबकि, इसी वंशावली में भगवान श्रीराम का नाम 64वें स्थान पर लिखा हुआ है. इसी तरह से श्री राम के ऊपर राजा दशरथ उनसे पहले राजा अज उनसे पहले राजा रघु, राजा दिलीप, राजा भगीरथ, राजा सगर, राजा हरिश्चन्द्र जैसे विख्यात नाम अंकित हैं. राजाराम के बाद राजा के रूप में कुश का नाम अंकित है. इस पुस्तकालय में मौजूद सूर्यवंशवाली में कुल 187 नाम अंकित हैं. जिसमें राजा के रूप में आखिरी नाम राजा गोरखा बहादुर का नाम लिखा हुआ है. हेडकर बहुगुणा की डायरी में सूर्यवंश और चंद्रवंश समेत कई और वंशावली अंकित है.

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राम की वंशावली देखने दूर दूर से आते हैं लोग: राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय के पांडुलिपि अधिकारी गुलाम सरवर ने बताया कि, राम की वंशावली जो कि एक रजिस्टर में अंकित है, उसे देखने के लिए दूर-दूर से शोधार्थी और अन्य लोग यहां आते रहते हैं. पांडुलिपि अधिकारी ने बताया कि यह रजिस्टर 1750 ई का है. इसमें हिंदी, अंग्रेजी के साथ ही अन्य भाषाओं में वंशावली और अन्य जानकरियां अंकित हैं, उन्होंने बताया कि यह डायरी हेडकर बहुगुणा की है. इसे सालों से पांडुलिपि पुस्तकालय में रखा गया है. इस डायरी की निरंतर देखरेख की जाती है. वहीं, राजकीय पांडुलिपि पुस्तकालय के प्राविधिक सहायक संस्कृत हरिश्चन्द्र दुबे ने बताया कि इस डायरी को जिन्होंने लिखा है ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने कई पुस्तकों के अध्ययन के आधार पर अलग-अलग वंशावली बनायी होगी. हरिश्चन्द्र दुबे ने बताया कि पुस्तकालय में तमाम पांडुलिपियों को संरक्षित करके रखा गया है. यहां इस पुस्तकालय में लोग पांडुलिपियों को देख सकते हैं.

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