प्रयागराज: दो अप्रैल से चैत्र नवरात्र शुरू हो रहा है. ऐसे में नवरात्रि के प्रत्येक दिन मां अंबे के अलग स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है. पहले दिन की बात करें तो इस दिन माता के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा होती है. सफेद वस्त्र धारण किए मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल शोभायमान है. मां के माथे पर चंद्रमा सुशोभित है.
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पौराणिक कथाएं
पौराणिक कथाओं के मुताबिक राजा दक्ष ने अपने निवास पर एक यज्ञ किया जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को बुलाया. उन्होंने शिव जी को नहीं बुलाया. माता सती ने भगवान शिव से अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की इच्छा जताई. सती के आग्रह पर भगवान शिव ने भी उन्हें जाने की अनुमति दे दी. जब सती यज्ञ स्थल पर पहुंची तो वहां पिता दक्ष ने सबके सामने भगवान शिव के लिए अपमानजनक शब्द कहे. अपने पिता की बाते सुनकर मां सती बेहद निराश हुईं और उन्होंने यज्ञ की वेदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए. इसके बाद मां सती शैलराज हिमालय के घर में जनमीं और वह शैलपुत्री कहलाईं.
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