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गुरु तेग बहादुर ने 6 माह 9 दिन किया था संगम नगरी में प्रवास

गुरु तेग बहादुर में 6 माह 9 दिन संगम नगरी में प्रवास किया था. संगन किनारे स्नान और दान किया था. यहीं से उन्होंने श्री अखंड पाठ साहिब की शुरूआत भी की थी. उनके संगम नगरी प्रवास से जुड़ी खास बाते देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में.

देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Jan 22, 2021, 10:36 PM IST

प्रयागराज: सिक्खों का संगम नगरी से अटूट संबंध रहा है. यहां पर सिखों से 9वें गुरु, गुरु तेग बहादुर ने अपने परिवार से साथ 6 महीने 9 दिन बताएं थे. इतना ही नहीं उन्होंने संगम नगरी में पवित्र श्री अखंड पाठ साहिब की शुरुआत भी कराई थी. गुरु तेग बहादुर ने मां ननकी के लिए 48 घंटे का पहली बार श्री अखंड पाठ साहिब कराया था. उन्होंने 600 सिक्खों से साथ मकर संक्रांति के दिन संगम पहुंच कर स्नान किया था. आज भी अहियापुर गुरुद्वारा इस बात की गवाही देता है.

देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

यहां से होते हुए पहुंचे थे संगम नगरी
गुरु तेग बहादुर आनंदपुर साहिब पंजाब से तीर्थयात्रा के बहाने रोपड़, पटियाला, पिहोवा, कैथल, रोहतक, मथुरा, आगरा,कानपुर जैसे शहरों में उपदेश देते हुए 1723 वी. स.1666 ई. में प्रयागराज में मकर संक्रांति के दिन पहुंचे थे.

संगन किनारे किया था दान
उनके साथ माता ननकी, पत्नी गुजरी सहित अनेक सेवक भी प्रयागराज आए थे. वह सिखों के प्रथम गुरु थे, जिन्होंने मकर संक्रांति के दिन संगम में स्नान किया. उन्होंने संगन किनारे ब्राह्मणों को दान भी दिया था. उनके आगमन की सूचना पाकर बहुत से ब्राह्मण और वाचक संगन किनारे पहुंच गए थे.

अपनी शक्ति से कुएं में गंगा को कराया था प्रवेश
गुरुद्वारे के सेवादार निशान सिंह ने बताया कि प्रयागराज प्रवास के दौरान एक दिन माता ननकी ने गुरु तेग बहादुर से पौत्र की इच्छा प्रकट की उन्होंने अपने पति व सिखों के छठे गुरु गोबिंद साहिब के वचन को स्मरण करके उसे गुरु तेग बहादुर को बताया. जिस पर गुरु तेग बहादुर ने कहा कि परमात्मा आपकी इच्छा जरूर पूरी करेंगे. गुरु के वचन सुनने के बाद वहां मौजूद लोग गंगा स्नान के लिए चले गए. वृद्धावस्था के कारण माता ननकी गंगा स्नान के लिए नहीं जा पाई, जिसके बाद गुरु तेग बहादुर में अपनी शक्ति से कुएं में गंगा-यमुना के जल का प्रवेश कराया था. आज भी गुरुद्वारे में कुआ स्थापित है.

यहीं से अखंड पाठ की हुई थी शुरूआत
ऐसी मान्यता है कि यहीं से ही गुरु तेग बहादुर ने अखंड पाठ की शुरुआत की. तब गुरु गोविंद सिंह माता गुजरी के गर्भ में आए. गुरु गोविंद सिंह ने अपनी नाटक में लिखा है कि जब हमारे पिता भारत की यात्रा में अनेक तीर्थ स्थलों में होते हुए प्रयागराज त्रिवेणी पहुंचे वहां पुण्य दान तप करते हुए कुछ दिन व्यतीत किए वहां पर ही मैं अपनी माता के गर्भ में प्रवेश हुआ.

यह है कुएं की मान्यता
ऐसी मान्यता है कि इस कुएं के जल से जो लोग स्नान करते हैं, जलपान करते हैं और तप स्थान में आकर 40 दिन हाजिरी लगाते हैं. उनके सभी दुख दूर होते हैं और संतान की प्राप्ति सहित सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. आज भी इस स्थान पर गुरु के दर्शनीय चीजों में गुरु की चौकी के पावा, तलवार, शंख कुआं आज भी मौजूद है. उनकी याद में हमेशा लंगर चलता रहता है. मौजूदा समय में गुरुद्वारे तप स्थान पक्की संगत का प्रबंध पंचायती अखाड़ा निर्मला करता है. यहीं से गुरु गोविंद सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना भी की थी.

प्रयागराज: सिक्खों का संगम नगरी से अटूट संबंध रहा है. यहां पर सिखों से 9वें गुरु, गुरु तेग बहादुर ने अपने परिवार से साथ 6 महीने 9 दिन बताएं थे. इतना ही नहीं उन्होंने संगम नगरी में पवित्र श्री अखंड पाठ साहिब की शुरुआत भी कराई थी. गुरु तेग बहादुर ने मां ननकी के लिए 48 घंटे का पहली बार श्री अखंड पाठ साहिब कराया था. उन्होंने 600 सिक्खों से साथ मकर संक्रांति के दिन संगम पहुंच कर स्नान किया था. आज भी अहियापुर गुरुद्वारा इस बात की गवाही देता है.

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यहां से होते हुए पहुंचे थे संगम नगरी
गुरु तेग बहादुर आनंदपुर साहिब पंजाब से तीर्थयात्रा के बहाने रोपड़, पटियाला, पिहोवा, कैथल, रोहतक, मथुरा, आगरा,कानपुर जैसे शहरों में उपदेश देते हुए 1723 वी. स.1666 ई. में प्रयागराज में मकर संक्रांति के दिन पहुंचे थे.

संगन किनारे किया था दान
उनके साथ माता ननकी, पत्नी गुजरी सहित अनेक सेवक भी प्रयागराज आए थे. वह सिखों के प्रथम गुरु थे, जिन्होंने मकर संक्रांति के दिन संगम में स्नान किया. उन्होंने संगन किनारे ब्राह्मणों को दान भी दिया था. उनके आगमन की सूचना पाकर बहुत से ब्राह्मण और वाचक संगन किनारे पहुंच गए थे.

अपनी शक्ति से कुएं में गंगा को कराया था प्रवेश
गुरुद्वारे के सेवादार निशान सिंह ने बताया कि प्रयागराज प्रवास के दौरान एक दिन माता ननकी ने गुरु तेग बहादुर से पौत्र की इच्छा प्रकट की उन्होंने अपने पति व सिखों के छठे गुरु गोबिंद साहिब के वचन को स्मरण करके उसे गुरु तेग बहादुर को बताया. जिस पर गुरु तेग बहादुर ने कहा कि परमात्मा आपकी इच्छा जरूर पूरी करेंगे. गुरु के वचन सुनने के बाद वहां मौजूद लोग गंगा स्नान के लिए चले गए. वृद्धावस्था के कारण माता ननकी गंगा स्नान के लिए नहीं जा पाई, जिसके बाद गुरु तेग बहादुर में अपनी शक्ति से कुएं में गंगा-यमुना के जल का प्रवेश कराया था. आज भी गुरुद्वारे में कुआ स्थापित है.

यहीं से अखंड पाठ की हुई थी शुरूआत
ऐसी मान्यता है कि यहीं से ही गुरु तेग बहादुर ने अखंड पाठ की शुरुआत की. तब गुरु गोविंद सिंह माता गुजरी के गर्भ में आए. गुरु गोविंद सिंह ने अपनी नाटक में लिखा है कि जब हमारे पिता भारत की यात्रा में अनेक तीर्थ स्थलों में होते हुए प्रयागराज त्रिवेणी पहुंचे वहां पुण्य दान तप करते हुए कुछ दिन व्यतीत किए वहां पर ही मैं अपनी माता के गर्भ में प्रवेश हुआ.

यह है कुएं की मान्यता
ऐसी मान्यता है कि इस कुएं के जल से जो लोग स्नान करते हैं, जलपान करते हैं और तप स्थान में आकर 40 दिन हाजिरी लगाते हैं. उनके सभी दुख दूर होते हैं और संतान की प्राप्ति सहित सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. आज भी इस स्थान पर गुरु के दर्शनीय चीजों में गुरु की चौकी के पावा, तलवार, शंख कुआं आज भी मौजूद है. उनकी याद में हमेशा लंगर चलता रहता है. मौजूदा समय में गुरुद्वारे तप स्थान पक्की संगत का प्रबंध पंचायती अखाड़ा निर्मला करता है. यहीं से गुरु गोविंद सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना भी की थी.

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