प्रयागराज: प्रदेश में गंगा सफाई को लेकर सरकारी विभागों की उदासीनता पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा(National Mission for Clean Ganga) का पूरा प्रोजेक्ट ही आंखों में धूल झोंकने वाला है. गंगा प्रदूषण को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की पीठ ने गंगा में प्रदूषण स्तर की जांच रिपोर्ट की लीपापोती पर केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड व राज्य प्रदूषण बोर्ड को आड़े हाथों लिया.
आईआईटी कानपुर और बीएचयू की प्रदूषण रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करने पर कोर्ट ने केंद्रीय और राज्य प्रदूषण बोर्ड कि खिंचाई की. कोर्ट ने इससे पूर्व निदेशक नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के निदेशक से पूछा था कि नमामि गंगे योजना(Namami Gange Scheme) के तहत अब तक कुल कितनी रकम खर्च की गई है. बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान निदेशक की ओर से कोई जानकारी कोर्ट को नहीं दी जा सकी. साथ ही अन्य जिन विभागों से कोर्ट ने जानकारियां मांगी थीं, उन सभी ने जानकारी उपलब्ध कराने के लिए और समय की मांग की है. कोर्ट ने कहा कि गंगा सफाई को लेकर कोई भी गंभीर नहीं है और विभागों के पास कोई जानकारी नहीं है. कोर्ट ने जल निगम के पास एनवायरनमेंट का विशेषज्ञ नहीं होने पर भी नाराजगी जाहिर की.
प्रदेश के 26 जिलों से बहती है गंगा
न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण कुमार गुप्ता ने कोर्ट को बताया की गंगा उत्तर प्रदेश के 26 जिलों से होकर के बहती है. शहरों से निकलने वाले सीवर के पानी को शुद्ध करने के लिए प्रदेश में मात्र 35 एसटीपी लगाए गए हैं. जिनमें से 3 काम नहीं कर रहे हैं. इसके अलावा 15 शहरों में एसटीपी प्लांट नहीं हैं. इन जिलों में सीवर का पानी सीधे गंगा में गिराया जाता है. इस पर कोर्ट ने अगली सुनवाई पर यह बताने का निर्देश दिया है कि प्रदेश में कुल कितने नाले गंगा में गिराए जा रहे हैं. इनमें से कितन नालों का पानी एसटीपी द्वारा शोधित किया जा रहा है व कितने ऐसे नाले हैं, जो सीधे गंगा में गिर रहे हैं. कोर्ट ने कानपुर के चमड़ा फैक्ट्रियों को वहां से शिफ्ट किए जाने के मामले में भी जानकारी मांगी है. इस मामले की अगली सुनवाई 26 सितंबर को होगी.