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नाबालिग की सुरक्षा न्यायिक बोर्ड और मजिस्ट्रेट का वैधानिक दायित्व: हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय पूर्णपीठ ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि मजिस्ट्रेट या बाल कल्याण समिति के आदेश से यदि नाबालिग को संरक्षण गृह या बाल गृह में रखा गया है, तो इसे अवैध निरुद्धि नहीं माना जा सकता. ऐसे मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल नहीं की जा सकती.

इलाहाबाद हाईकोर्ट.
इलाहाबाद हाईकोर्ट.
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Published : Mar 8, 2021, 7:49 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय पूर्णपीठ ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि मजिस्ट्रेट या बाल कल्याण समिति के आदेश से यदि नाबालिग को संरक्षण गृह या बाल गृह में रखा गया है, तो इसे अवैध निरुद्धि नहीं माना जा सकता. ऐसे मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल नहीं की जा सकती. यह फैसला न्यायमूर्ति संजय यादव, न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की पूर्णपीठ ने सहारनपुर की कुमारी रचना और अन्य की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर उठे वैधानिक प्रश्नों का निस्तारण करते हुए दिया.

'बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय नहीं'

पूर्णपीठ ने यह भी कहा कि किशोर न्याय बोर्ड या बाल कल्याण समिति या मजिस्ट्रेट नाबालिग की देखभाल व सुरक्षा जरूरतों के अनुसार किशोर न्याय एक्ट की धारा 37 के उपबंध के तहत सामाजिक विवेचना रिपोर्ट और नाबालिग की इच्छा को देखते हुए उचित आदेश जारी कर सकेंगे. इस आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण या अपील दाखिल की जा सकती है. बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय नहीं है. हाईकोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय बोर्ड, मजिस्ट्रेट या कल्याण समिति का वैधानिक दायित्व है कि वह नाबालिग की सुरक्षा और हित में उचित आदेश जारी करे.

मजिस्ट्रेट के आदेश पर किशोरी को रखा गया था बाल संरक्षण गृह में

घर से जेवर और नकदी लेकर गई 17 वर्षीय याची रचना के माता-पिता के साथ जाने से इनकार करने पर मजिस्ट्रेट के आदेश पर बाल संरक्षण गृह सहारनपुर में रखा गया था. इसकी निरुद्धि को अवैध बताते हुए यह याचिका दाखिल की गई. लड़की ने कोर्ट को बताया कि मां ने उसे पीटा इसलिए वह अपनी मर्जी से अपनी सहेली के घर रहने चली गई. जबकि परिवार की तरफ से दर्ज प्राथमिकी में सहेली के भाई अर्जुन और उसके परिवार पर लड़की के घर से भाग जाने का प्रोत्साहन और सहयोग देने का आरोप लगाया गया.

तीन सवालों को लेकर मामला पूर्णपीठ को सौंपा गया

सवाल उठा कि मजिस्ट्रेट के न्यायिक आदेश से संरक्षण गृह में रखना क्या अवैध निरुद्धि मानी जाएगी? ऐसे ही तीन सवालों पर विचार करने के लिए मामला पूर्णपीठ को सौंपा गया. पूर्णपीठ ने कहा कि किशोर न्याय कानून ने न्याय बोर्ड, मजिस्ट्रेट या कल्याण कमेटी पर नाबालिग की सुरक्षा व देखभाल का वैधानिक दायित्व सौंपा है. ऐसे में यदि नाबालिग अपने माता-पिता या रिश्तेदार के साथ जाने से इनकार करे तो मजिस्ट्रेट उसे संरक्षण प्रदान करेगा. यदि वह मैच्योर है तो उसकी इच्छा के अनुसार स्वतंत्र भी कर सकता है. ऐसे आदेश के खिलाफ अपील की व्यवस्था दी गई है. ऐसे में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल नहीं की जा सकती.

हाईकोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट या कमेटी के आदेश से अभिरक्षा में रखना अवैध निरुद्धि नहीं है. यदि ऐसा आदेश देते समय अधिकारिता या प्रक्रियात्मक खामी है, तो भी निरुद्धि अवैध नहीं होगी. मजिस्ट्रेट या कमेटी के नाबालिग की सुरक्षा और हित में उचित संरक्षण आदेश जारी करने का अधिकार है.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय पूर्णपीठ ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि मजिस्ट्रेट या बाल कल्याण समिति के आदेश से यदि नाबालिग को संरक्षण गृह या बाल गृह में रखा गया है, तो इसे अवैध निरुद्धि नहीं माना जा सकता. ऐसे मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल नहीं की जा सकती. यह फैसला न्यायमूर्ति संजय यादव, न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की पूर्णपीठ ने सहारनपुर की कुमारी रचना और अन्य की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर उठे वैधानिक प्रश्नों का निस्तारण करते हुए दिया.

'बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय नहीं'

पूर्णपीठ ने यह भी कहा कि किशोर न्याय बोर्ड या बाल कल्याण समिति या मजिस्ट्रेट नाबालिग की देखभाल व सुरक्षा जरूरतों के अनुसार किशोर न्याय एक्ट की धारा 37 के उपबंध के तहत सामाजिक विवेचना रिपोर्ट और नाबालिग की इच्छा को देखते हुए उचित आदेश जारी कर सकेंगे. इस आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण या अपील दाखिल की जा सकती है. बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय नहीं है. हाईकोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय बोर्ड, मजिस्ट्रेट या कल्याण समिति का वैधानिक दायित्व है कि वह नाबालिग की सुरक्षा और हित में उचित आदेश जारी करे.

मजिस्ट्रेट के आदेश पर किशोरी को रखा गया था बाल संरक्षण गृह में

घर से जेवर और नकदी लेकर गई 17 वर्षीय याची रचना के माता-पिता के साथ जाने से इनकार करने पर मजिस्ट्रेट के आदेश पर बाल संरक्षण गृह सहारनपुर में रखा गया था. इसकी निरुद्धि को अवैध बताते हुए यह याचिका दाखिल की गई. लड़की ने कोर्ट को बताया कि मां ने उसे पीटा इसलिए वह अपनी मर्जी से अपनी सहेली के घर रहने चली गई. जबकि परिवार की तरफ से दर्ज प्राथमिकी में सहेली के भाई अर्जुन और उसके परिवार पर लड़की के घर से भाग जाने का प्रोत्साहन और सहयोग देने का आरोप लगाया गया.

तीन सवालों को लेकर मामला पूर्णपीठ को सौंपा गया

सवाल उठा कि मजिस्ट्रेट के न्यायिक आदेश से संरक्षण गृह में रखना क्या अवैध निरुद्धि मानी जाएगी? ऐसे ही तीन सवालों पर विचार करने के लिए मामला पूर्णपीठ को सौंपा गया. पूर्णपीठ ने कहा कि किशोर न्याय कानून ने न्याय बोर्ड, मजिस्ट्रेट या कल्याण कमेटी पर नाबालिग की सुरक्षा व देखभाल का वैधानिक दायित्व सौंपा है. ऐसे में यदि नाबालिग अपने माता-पिता या रिश्तेदार के साथ जाने से इनकार करे तो मजिस्ट्रेट उसे संरक्षण प्रदान करेगा. यदि वह मैच्योर है तो उसकी इच्छा के अनुसार स्वतंत्र भी कर सकता है. ऐसे आदेश के खिलाफ अपील की व्यवस्था दी गई है. ऐसे में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल नहीं की जा सकती.

हाईकोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट या कमेटी के आदेश से अभिरक्षा में रखना अवैध निरुद्धि नहीं है. यदि ऐसा आदेश देते समय अधिकारिता या प्रक्रियात्मक खामी है, तो भी निरुद्धि अवैध नहीं होगी. मजिस्ट्रेट या कमेटी के नाबालिग की सुरक्षा और हित में उचित संरक्षण आदेश जारी करने का अधिकार है.

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