प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साढ़े चार हज़ार रुपये के हर्जाने के खिलाफ सात साल तक मुकदमा लड़ने के लिए डाक विभाग को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण विभाग ने लोक अदालत के फैसले का सम्मान करने की बजाय उसे कानूनी पेचीदगियों में उलझाकर रखा. साढ़े चार हज़ार रुपये का भुगतान करने की बजाय उससे कई गुना ज्यादा की रकम अदालती लड़ाई में खर्च कर दी. डाक विभाग का यह फैसला उचित नहीं है.
यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक चौधरी ने डाक विभाग के सीनियर सुपरिटेंडेंट की याचिका को खारिज करते हुए दिया है. कोर्ट ने कहा कि वैसे भी 25 हजार रुपये से कम के भुगतान के मामले में द्वितीय अपील दाखिल नहीं की जा सकती. मामले के तथ्यों के अनुसार मुरादाबाद की स्थायी लोक अदालत ने डाक विभाग पर वर्ष 2014 में साढ़े चार हजार रुपये का हर्जाना लगाया था.
यह हर्जाना स्पीड पोस्ट द्वारा भेजे गए पासपोर्ट और डिमांड ड्राफ्ट के खो जाने पर लगाया गया था. डाक विभाग ने पीड़ित को हर्जाना देने की बजाय लोक अदालत के इस फैसले को चुनौती देते हुए वर्ष 2015 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी. पिछले सात साल से यह याचिका विचाराधीन थी. कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई पूरी होने के बाद गत 16 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था.
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