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संगम में मिला लुप्त सरस्वती नदी का अवशेष, साधु संत बोले- पुरातन कथाओं पर वैज्ञानिकों ने लगाई मुहर - लुप्त सरस्वती नदी का अवशेष

प्रयागराज के संगम क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने पाया कि विंध्य फॉर्मेशन के अंतर्गत आने वाली एक अति प्राचीन नदी गंगा और यमुना की तलहटी में मौजूद है. इस प्राचीन नदी का एक्वीफर सिस्टम और पुरातन नहरें आपस में जुड़ी हुई हैं और एक-दूसरे की पानी की जरूरतों को पूरा कर रही हैं. सरस्वती के प्रमाण मिलने से संगम के साधु संतों में हर्ष का माहौल है.

संगम में मिला लुप्त सरस्वती नदी का अवशेष
संगम में मिला लुप्त सरस्वती नदी का अवशेष
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Published : Dec 17, 2021, 9:18 AM IST

प्रयागराज: आप सभी ने अपने पूर्वजों से पवित्र सरस्वती नदी की कहानियां तो सुनी ही होंगी. पूर्वज बताते थे कि ऋग्वैदिक काल में सरस्वती नदी बहा करती थी. इस बात की पुष्टि समय-समय पर विज्ञान शोधों में मिलने वाले सबूत करते रहते हैं. अब तक मान्यता यही रही है कि हिंदुओं की धर्मनगरी प्रयागराज में तीन प्राचीन एवं पवित्र नदियों- गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है. एक वैज्ञानिक शोध ने इस बात की और भी पुष्टि कर दी है.

साधू संतों ने जाहिर की खुशी

सरस्वती नदी के अवशेष मिलने से साधु संतों और श्रद्धलुओं में काफी खुशी है. संगम स्थित बड़े हनुमान मंदिर के महंत बलबीर गिरी का कहना है कि श्रद्धलुओं ने हमेशा सरस्वती नदी के बारे में सुना था लेकिन अब वो सच साबित हो रहा. जो आस्था को और भी मजबूत करता है. जो हिन्दू धर्म और आस्था को और भी मजबूत करता है. वहीं सरस्वती नदी के अवशेष मिलने पर श्रद्धलुओं में काफी खुशी है. श्रद्धालु पंडित उदय तिवारी का कहना है बुजुर्गों से सुना था, सरस्वती नदी यहां पर है, लेकिन अब पूरी दुनिया को पता चल गया है. ये सनातन धर्म के लिए बहुत हर्ष की बात है.

संगम.

इस भी पढ़ें- संगम में हजारों किलोमीटर की उड़ान भरकर आता है यह खास मेहमान, बढ़ जाती है मेले की रौनक

क्या पता चला है खोज में

भारतीय वैज्ञानिकों को संगम के नीचे लगभग 12,000 साल पुरानी नदी मिली है. माना जा रहा है कि यह ऋग्वैदिक काल की पूज्य और अब विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी हो सकती है. नेशनल जियोग्राफिकल रिसर्च इंस्टिटीट्यूट के वैज्ञानिकों के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्वे में इस बात के ठोस प्रमाण मिले हैं कि संगम के नीचे 45 किलोमीटर लंबी यह प्राचीन नदी मौजूद है. वैज्ञानिकों के शोध के मुताबिक गंगा और यमुना के संगम तट की तलहटी में मौजूद सरस्वती नदी में जल का विशाल भंडार होने का अनुमान है. CSIR-NGRI के वैज्ञानिकों के इस संयुक्त अध्ययन को अडवांस्टड अर्थ एंड स्पेस साइंस में प्रकाशित भी किया गया है.

संगम, फाइल फोटो.
संगम, फाइल फोटो.

कब हुई थी शुरुआत

प्राचीन नदियों की खोज के लिए जल संसाधन मंत्रालय द्वारा गठित 7 सदस्यीय आयोग ने 2016 में अपनी रिपोर्ट दी थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भूतल में प्राचीन नदी सरस्वती के बहने के साक्ष्य मौजूद हैं. वैज्ञानिकों ने 2018 में जल संसाधन मंत्रालय के तत्वाधान में प्रयागराज से कौशांबी तक सरस्वती की खोज शुरू की थी, जिसके प्रमाण अब सामने आने लगे हैं. वैज्ञानिकों का दावा है कि इस प्राचीन नदी की लंबाई 45 किलोमीटर, चौड़ाई 4 किलोमीटर और गहराई 15 मीटर है. इसमें 2700 MCM रेत है और जब यह पानी से पूरी तरह भरी रहती है तो यह जमीन के ऊपर 1300 से 2000 वर्ग किलोमीटर के इलाके को सिंचित करने योग्य भूजल देती है. 1000 MCM जल क्षमता वाली यह नदी गंगा और यमुना में जल के स्तर को संतुलित करने का भी काम करती है.

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प्रयागराज: आप सभी ने अपने पूर्वजों से पवित्र सरस्वती नदी की कहानियां तो सुनी ही होंगी. पूर्वज बताते थे कि ऋग्वैदिक काल में सरस्वती नदी बहा करती थी. इस बात की पुष्टि समय-समय पर विज्ञान शोधों में मिलने वाले सबूत करते रहते हैं. अब तक मान्यता यही रही है कि हिंदुओं की धर्मनगरी प्रयागराज में तीन प्राचीन एवं पवित्र नदियों- गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है. एक वैज्ञानिक शोध ने इस बात की और भी पुष्टि कर दी है.

साधू संतों ने जाहिर की खुशी

सरस्वती नदी के अवशेष मिलने से साधु संतों और श्रद्धलुओं में काफी खुशी है. संगम स्थित बड़े हनुमान मंदिर के महंत बलबीर गिरी का कहना है कि श्रद्धलुओं ने हमेशा सरस्वती नदी के बारे में सुना था लेकिन अब वो सच साबित हो रहा. जो आस्था को और भी मजबूत करता है. जो हिन्दू धर्म और आस्था को और भी मजबूत करता है. वहीं सरस्वती नदी के अवशेष मिलने पर श्रद्धलुओं में काफी खुशी है. श्रद्धालु पंडित उदय तिवारी का कहना है बुजुर्गों से सुना था, सरस्वती नदी यहां पर है, लेकिन अब पूरी दुनिया को पता चल गया है. ये सनातन धर्म के लिए बहुत हर्ष की बात है.

संगम.

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क्या पता चला है खोज में

भारतीय वैज्ञानिकों को संगम के नीचे लगभग 12,000 साल पुरानी नदी मिली है. माना जा रहा है कि यह ऋग्वैदिक काल की पूज्य और अब विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी हो सकती है. नेशनल जियोग्राफिकल रिसर्च इंस्टिटीट्यूट के वैज्ञानिकों के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सर्वे में इस बात के ठोस प्रमाण मिले हैं कि संगम के नीचे 45 किलोमीटर लंबी यह प्राचीन नदी मौजूद है. वैज्ञानिकों के शोध के मुताबिक गंगा और यमुना के संगम तट की तलहटी में मौजूद सरस्वती नदी में जल का विशाल भंडार होने का अनुमान है. CSIR-NGRI के वैज्ञानिकों के इस संयुक्त अध्ययन को अडवांस्टड अर्थ एंड स्पेस साइंस में प्रकाशित भी किया गया है.

संगम, फाइल फोटो.
संगम, फाइल फोटो.

कब हुई थी शुरुआत

प्राचीन नदियों की खोज के लिए जल संसाधन मंत्रालय द्वारा गठित 7 सदस्यीय आयोग ने 2016 में अपनी रिपोर्ट दी थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भूतल में प्राचीन नदी सरस्वती के बहने के साक्ष्य मौजूद हैं. वैज्ञानिकों ने 2018 में जल संसाधन मंत्रालय के तत्वाधान में प्रयागराज से कौशांबी तक सरस्वती की खोज शुरू की थी, जिसके प्रमाण अब सामने आने लगे हैं. वैज्ञानिकों का दावा है कि इस प्राचीन नदी की लंबाई 45 किलोमीटर, चौड़ाई 4 किलोमीटर और गहराई 15 मीटर है. इसमें 2700 MCM रेत है और जब यह पानी से पूरी तरह भरी रहती है तो यह जमीन के ऊपर 1300 से 2000 वर्ग किलोमीटर के इलाके को सिंचित करने योग्य भूजल देती है. 1000 MCM जल क्षमता वाली यह नदी गंगा और यमुना में जल के स्तर को संतुलित करने का भी काम करती है.

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