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किशोरी से दुष्कर्म और हत्या के आरोपी की फांसी की सजा रद्द, तत्काल रिहा करने का निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के बाद 14 वर्ष की बालिग की जलाकर हत्या के आरोपी की फांसी की सजा रद्द कर दी है. संदेह से परे अपराध साबित करना अभियोजन का दायित्व है. यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने मानू ठाकुर की अपील को स्वीकार करते हुए दिया है.

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Published : Mar 8, 2022, 10:30 PM IST

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इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के बाद 14 वर्ष की बालिग की जलाकर हत्या के आरोपी की फांसी की सजा रद्द कर दी है. कोर्ट ने कहा कि पाक्सो एक्ट के तहत स्वीकार्य आधार भूत सबूतों के बगैर मात्र इस अवधारणा पर सजा नहीं दी जा सकती कि अभियुक्त स्वयं को निर्दोष साबित करने में नाकाम रहा है. कोर्ट ने कहा कि निश्चित तौर पर अभियुक्त पर स्वयं को निर्दोष साबित करने का भार होता है, उसे साबित करना चाहिए, किन्तु अभियोजन को उसके अपराध में लिप्त होने का प्रथमदृष्टया पर्याप्त तथ्य और आधार भूत साक्ष्य होना चाहिए.

संदेह से परे अपराध साबित करना अभियोजन का दायित्व है. केवल अभियुक्त अपने को निर्दोष साबित नहीं कर सका. इसकी अवधारणा पर सजा नहीं सुनाई जा सकती. कोर्ट ने आरोपों से मुक्त करते हुए फांसी और आजीवन कैद और जुर्माने की सजाएं रद्द कर दी है और उसे तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने मानू ठाकुर की अपील को स्वीकार करते हुए दिया है.

कोर्ट ने कहा कि अभियोजन ने पीड़िता के मृत्युकालिक बयान को साबित करने के लिए मजिस्ट्रेट और डाक्टर का बयान नहीं लिया और न ही फोरेंसिक और डीएनए जांच करायी. ट्रायल कोर्ट में पीड़िता का बयान दर्ज करने वाले मजिस्ट्रेट को सम्मन करने की अर्जी भी नहीं दी. कोर्ट ने कहा कि अधीनस्थ अदालतों ने सबूतों को समझने में गलती की.

आरोप साबित किए बगैर इस आधार पर सजा सुना दी कि आरोपी अपने को निर्दोष साबित नहीं कर सका. अभियोजन का कहना था कि पीड़िता अपनी नानी के घर में थी. आरोपी ने घर में आकर छेड़छाड़ की. दुराचार कर मिट्टी तेल डालकर आग लगा दी. गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती कराया गया. 20 दिन बाद उसकी मौत हो गई, जिसकी एफआईआर हाथरस के सिकंदर राव थाने में दर्ज कराई गई.

इसे भई पढ़ेंः FIR के बाद निष्पक्ष विवेचना कराने की भी है मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारीः HC

पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की और ट्रायल कोर्ट ने फांसी, आजीवन कारावास सहित विभिन्न अपराधों में सजा और लाखों रुपये का जुर्माना लगाया. सत्र अदालत ने अपील खारिज करते हुए सजा बहाल रखी. वरिष्ठ अधीक्षक जिला जेल अलीगढ़ ने फांसी की सजा की पुष्टि के लिए हाईकोर्ट को अपील संदर्भित की. आरोपी की तरफ से कहा गया है कि पीड़िता खाना बना रही थी. मसाला लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो मिट्टी तेल की बोतल गैस बर्नर पर गिर पड़ी और आग भड़क उठी. जिसमें वह 85 फीसदी जल गई. अस्पताल में उसकी लंबे इलाज के बाद मौत हो गई.

कोर्ट ने कहा कि आरोपी के अपराध सिद्ध होने तक निर्दोष होने की अवधारणा मानवाधिकार हैं किन्तु इसके वैधानिक अपवाद हो सकते हैं. आरोपी को दोषी मानने के लिए उचित, निष्पक्ष और तर्कपूर्ण अवधारणा होनी चाहिए. पाक्सो एक्ट की धारा 29 में अवधारणा का उपबंध है.

कोर्ट ने कहा कि आरोपी पर स्वयं को निर्दोष साबित करने का भार है. यह अनुच्छेद 14 और 21 के मूल अधिकारों के विपरीत नहीं है. किन्तु जरूरी है कि सजा संतोषजनक और विश्वसनीय सबूतों के आधार पर दी जाय. अगर अभियोजन तथ्यों और आधार भूत सबूतों के आधार पर प्रथमदृष्टया अपराध साबित करने में सफल रहा हो तो वहीं, यह अवधारणा लागू होगी कि आरोपी स्वयं को निर्दोष साबित करें. कोर्ट ने कहा नकारात्मक तथ्य साबित करना कठिन है किन्तु असंभव नहीं है.सजा के लिए आरोप संदेह से परे साबित होना चाहिए.

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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के बाद 14 वर्ष की बालिग की जलाकर हत्या के आरोपी की फांसी की सजा रद्द कर दी है. कोर्ट ने कहा कि पाक्सो एक्ट के तहत स्वीकार्य आधार भूत सबूतों के बगैर मात्र इस अवधारणा पर सजा नहीं दी जा सकती कि अभियुक्त स्वयं को निर्दोष साबित करने में नाकाम रहा है. कोर्ट ने कहा कि निश्चित तौर पर अभियुक्त पर स्वयं को निर्दोष साबित करने का भार होता है, उसे साबित करना चाहिए, किन्तु अभियोजन को उसके अपराध में लिप्त होने का प्रथमदृष्टया पर्याप्त तथ्य और आधार भूत साक्ष्य होना चाहिए.

संदेह से परे अपराध साबित करना अभियोजन का दायित्व है. केवल अभियुक्त अपने को निर्दोष साबित नहीं कर सका. इसकी अवधारणा पर सजा नहीं सुनाई जा सकती. कोर्ट ने आरोपों से मुक्त करते हुए फांसी और आजीवन कैद और जुर्माने की सजाएं रद्द कर दी है और उसे तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने मानू ठाकुर की अपील को स्वीकार करते हुए दिया है.

कोर्ट ने कहा कि अभियोजन ने पीड़िता के मृत्युकालिक बयान को साबित करने के लिए मजिस्ट्रेट और डाक्टर का बयान नहीं लिया और न ही फोरेंसिक और डीएनए जांच करायी. ट्रायल कोर्ट में पीड़िता का बयान दर्ज करने वाले मजिस्ट्रेट को सम्मन करने की अर्जी भी नहीं दी. कोर्ट ने कहा कि अधीनस्थ अदालतों ने सबूतों को समझने में गलती की.

आरोप साबित किए बगैर इस आधार पर सजा सुना दी कि आरोपी अपने को निर्दोष साबित नहीं कर सका. अभियोजन का कहना था कि पीड़िता अपनी नानी के घर में थी. आरोपी ने घर में आकर छेड़छाड़ की. दुराचार कर मिट्टी तेल डालकर आग लगा दी. गंभीर अवस्था में अस्पताल में भर्ती कराया गया. 20 दिन बाद उसकी मौत हो गई, जिसकी एफआईआर हाथरस के सिकंदर राव थाने में दर्ज कराई गई.

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पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की और ट्रायल कोर्ट ने फांसी, आजीवन कारावास सहित विभिन्न अपराधों में सजा और लाखों रुपये का जुर्माना लगाया. सत्र अदालत ने अपील खारिज करते हुए सजा बहाल रखी. वरिष्ठ अधीक्षक जिला जेल अलीगढ़ ने फांसी की सजा की पुष्टि के लिए हाईकोर्ट को अपील संदर्भित की. आरोपी की तरफ से कहा गया है कि पीड़िता खाना बना रही थी. मसाला लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो मिट्टी तेल की बोतल गैस बर्नर पर गिर पड़ी और आग भड़क उठी. जिसमें वह 85 फीसदी जल गई. अस्पताल में उसकी लंबे इलाज के बाद मौत हो गई.

कोर्ट ने कहा कि आरोपी के अपराध सिद्ध होने तक निर्दोष होने की अवधारणा मानवाधिकार हैं किन्तु इसके वैधानिक अपवाद हो सकते हैं. आरोपी को दोषी मानने के लिए उचित, निष्पक्ष और तर्कपूर्ण अवधारणा होनी चाहिए. पाक्सो एक्ट की धारा 29 में अवधारणा का उपबंध है.

कोर्ट ने कहा कि आरोपी पर स्वयं को निर्दोष साबित करने का भार है. यह अनुच्छेद 14 और 21 के मूल अधिकारों के विपरीत नहीं है. किन्तु जरूरी है कि सजा संतोषजनक और विश्वसनीय सबूतों के आधार पर दी जाय. अगर अभियोजन तथ्यों और आधार भूत सबूतों के आधार पर प्रथमदृष्टया अपराध साबित करने में सफल रहा हो तो वहीं, यह अवधारणा लागू होगी कि आरोपी स्वयं को निर्दोष साबित करें. कोर्ट ने कहा नकारात्मक तथ्य साबित करना कठिन है किन्तु असंभव नहीं है.सजा के लिए आरोप संदेह से परे साबित होना चाहिए.

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