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इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने संग्रहालय को सौंपी 16वीं शताब्दी की ऐतिहासिक बंदूक - prayagraj today news

यूपी के इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग ने 16वीं सदी की मुगलकालीन बंदूक इलाहाबाद संग्रहालय को सौंप दी. 400 साल पुरानी बंदूक अब इलाहाबाद संग्रहालय की शोभा बढ़ाएगी.

16वीं शताब्दी की ऐतिहासिक बंदूक
16वीं शताब्दी की ऐतिहासिक बंदूक
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Published : Feb 3, 2020, 3:30 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के तहखाने में मिली 16वीं शताब्दी की मुगलकालीन बंदूक सोमवार को इलाहाबाद संग्रहालय को सौंपी गई. कई सालों से यह नायाब बंदूक इतिहास विभाग के तहखाने में रखी हुई थी.

संग्रहालय को सौंपी गई 16वीं शताब्दी की ऐतिहासिक बंदूक.

इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी ने सोमवार को इस बंदूक को इलाहाबाद संग्रहालय के निदेशक डॉ. सुनील गुप्ता को सौंप दिया. अब यह मुगलकालीन बंदूक इलाहाबाद संग्रहालय की शोभा बढ़ाएगी. साढ़े चार सौ साल पुरानी यह बंदूक अब इलाहाबाद संग्रहालय में देखने को मिलेगी.

युवा पीढ़ी धरोहर से होगी रूबरू
मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी ने बताया कि विभाग के स्टोर में सफाई का काम चल रहा था. वहां कार्य करने वाले सफाईकर्मी ने इस बंदूक के बारे में जानकारी दी. कुलपति को सूचना देने के बाद नायाब बंदूक इलाहाबाद संग्रहालय को सौंप दी गई. अब यह बंदूक इलाहाबाद संग्रहालय की शोभा बढ़ाएगी.

तीन से अधिक जवान मिलकर चलाते थे बंदूक
इलाहाबाद संग्रहालय के सदस्य ओमकार वानखेड़े ने जानकारी देते हुए बताया कि इलाहाबाद संग्रहालय को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग ने बहुत नायाब बंदूक दी है. बंदूक की सबसे खास बात बंदूक और तोप के बीच की कड़ी है. इस बंदूक को तीन से चार लोग मिलकर ही चला पाते थे. इस बंदूक में कुछ भाग लकड़ी का लगा है, जिससे इसका वजन कम हो जाता है. इस नायाब बंदूक को इलाहाबाद संग्रहालय की आर्म गैलरी में रखा जाएगा.

किले पर रखकर करते थे वार
इलाहाबाद संग्रहालय के सदस्य ओमकार वानखेड़े ने बताया कि 16वीं-17वीं शताब्दी की इस नायाब गन का इस्तेमाल किले के ऊपर से किया जाता था. इस बंदूक का वजन 90 से 120 किलो तक होता है. बंदूक के साथ एक कैनल बॉक्स और बारूद रखने का बॉक्स मिला है. अब इन सभी को इलाहाबाद संग्रहालय में रखकर लोगों की इसकी जानकारी दी जाएगी.

प्रयागराज: इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के तहखाने में मिली 16वीं शताब्दी की मुगलकालीन बंदूक सोमवार को इलाहाबाद संग्रहालय को सौंपी गई. कई सालों से यह नायाब बंदूक इतिहास विभाग के तहखाने में रखी हुई थी.

संग्रहालय को सौंपी गई 16वीं शताब्दी की ऐतिहासिक बंदूक.

इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी ने सोमवार को इस बंदूक को इलाहाबाद संग्रहालय के निदेशक डॉ. सुनील गुप्ता को सौंप दिया. अब यह मुगलकालीन बंदूक इलाहाबाद संग्रहालय की शोभा बढ़ाएगी. साढ़े चार सौ साल पुरानी यह बंदूक अब इलाहाबाद संग्रहालय में देखने को मिलेगी.

युवा पीढ़ी धरोहर से होगी रूबरू
मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी ने बताया कि विभाग के स्टोर में सफाई का काम चल रहा था. वहां कार्य करने वाले सफाईकर्मी ने इस बंदूक के बारे में जानकारी दी. कुलपति को सूचना देने के बाद नायाब बंदूक इलाहाबाद संग्रहालय को सौंप दी गई. अब यह बंदूक इलाहाबाद संग्रहालय की शोभा बढ़ाएगी.

तीन से अधिक जवान मिलकर चलाते थे बंदूक
इलाहाबाद संग्रहालय के सदस्य ओमकार वानखेड़े ने जानकारी देते हुए बताया कि इलाहाबाद संग्रहालय को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग ने बहुत नायाब बंदूक दी है. बंदूक की सबसे खास बात बंदूक और तोप के बीच की कड़ी है. इस बंदूक को तीन से चार लोग मिलकर ही चला पाते थे. इस बंदूक में कुछ भाग लकड़ी का लगा है, जिससे इसका वजन कम हो जाता है. इस नायाब बंदूक को इलाहाबाद संग्रहालय की आर्म गैलरी में रखा जाएगा.

किले पर रखकर करते थे वार
इलाहाबाद संग्रहालय के सदस्य ओमकार वानखेड़े ने बताया कि 16वीं-17वीं शताब्दी की इस नायाब गन का इस्तेमाल किले के ऊपर से किया जाता था. इस बंदूक का वजन 90 से 120 किलो तक होता है. बंदूक के साथ एक कैनल बॉक्स और बारूद रखने का बॉक्स मिला है. अब इन सभी को इलाहाबाद संग्रहालय में रखकर लोगों की इसकी जानकारी दी जाएगी.

Intro:प्रयागराज: इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने संग्रहालय को सौंपी 16वीं सताब्दी की ऐतिहासिक बंदूक

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प्रयागराज: इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन एंव आधुनिक इतिहास विभाग के तैखाने में मिली 16वीं की मुगलकालीन की बंदूक आज इलाहाबाद संग्रह को सौंपी गईं. कई सालों से यह नायाब बंदूक इतिहास विभाग के तैखाने में रखी हुई थी. विभागाध्यक्ष प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी ने सोमवार को यह यूनिक बंदूक इलाहाबाद संग्रहालय के निदेशक डॉ. सुनील गुप्ता को सौंप दी. अब यह मुगलकालीन बंदूक इलाहाबाद संग्रहालय की शोभा बढ़ेगी. डेढ़ सौ साल पुरानी यह बंदूक किसी और संग्रहालय में ही नहीं बल्कि इलाहाबाद संग्रहालय में देखने को मिलेगी.


Body:युवा पीढ़ी धरोहर से होंगे जागरूक

मध्यकालीन इतिहास के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी ने जानकारी देते हुए बताया कि विभाग के स्टोर में सफाई का काम चल रहा था तभी मेरी नजर इस नायाब बंदूक पर पड़ी और मैं कुलपति जी को सूचना देकर इस ऐतिहासिक बंदूक इलाहाबाद संग्रहालय को सौंपी है. अब इलाहाबाद संग्रहालय इस बंदूक की खूबसूरती बढ़ाकर म्यूजियम में सजाने काम करेगा. 16वीं सताब्दी के मुगलकालीन बंदूक से युवा पीढी रुबरु होंगे.

तीन से अधिक जवान मिलकर करते थे हैंडिल

इलाहाबाद संग्रहालय से ओमकार वामखडे ने जानकारी देते हुए बताया कि इलाहाबाद संग्रहालय को आज इलाहाबाद विश्वविद्यालय के इतिहास डिपार्टमेंट में बहुत नायाब बंदूक दी है. यह बंदूक की सबसे खास बात यह कि बंदूक और तोप के बीच की कड़ी है. इस बंदूक को लगभग तीन से चार लोग आसानी से हैंडल करते थे. इस बंदूक में कुछ भाग लकड़ी का लगा है जिससे इसका वजन कम हो जाता है. इस नायाब बंदूक के जाने से इलाहाबाद संग्रहालय की आर्म गैलरी देश के सभी गैलरी और अलग हो जाएगी.



Conclusion:
किला पर रखकर करते थे वार

इलाहाबाद संग्रहालय के टीम मेम्बर ओमकार वानखेड़े ने जानकारी देते हुए बताया कि 16-17 वीं सताब्दी की यह नायाब गन का इस्तेमाल किला के ऊपर रखकर किया जाता था. यह बंदूक की तरह होता है लेकिन आसानी से मूमेंट कर एक से अधिक दुश्मनों को मारने में मददगार होता था. इस बंदूक का वजह 90 से 120 किलो तक है. इसके साथ ही बंदूक के साथ एक कैनल बॉक्स मिला और एक बारूद रखने का बॉक्स मिला है. अब इन सभी को इलाहाबाद संग्रहालय में रखकर लोगों की इसकी जानकारी दी जाएगी.

बाईट-1- प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी, विभागाध्यक्ष आधुनिक इतिहास विभाग, इविवि

बाईट-2- ओमकार वामखड़े, टीम मेंबर, इलाहाबाद संग्रहालय
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