प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विद्युत लोकपाल के खिलाफ (prosecution against Electricity Ombudsman) अवमानना का केस दर्ज किए जाने के लिए अभियोजन स्वीकृति दिए जाने की मांग को लेकर दाखिल याचिका खारिज कर दी है. याचिका हाईकोर्ट के अधिवक्ता अरुण मिश्रा ने दाखिल की थी. इस पर न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी और न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार जौहरी की खंडपीठ में सुनवाई है.
याची अधिवक्ता का कहना था कि विद्युत लोकपाल ने उसे एक केस की पैरवी करने से इनकार कर दिया और साथ ही जब उसने विद्युत लोकपाल के यहां दाखिल एक अवमानना याचिका की प्रति मांगी तो उसके साथ बदसलूकी की गई. इस मामले में अधिवक्ता अरुण मिश्रा ने एसीजेएम न्यायालय में अवमानना का वाद दाखिल किया था. एसीजेएम ने अभियोजन स्वीकृति के बिना वाद स्वीकार करने से इंकार कर दिया. जिस पर याची अधिवक्ता ने सक्षम प्राधिकारी के यहां याचिका दाखिल कर अभियोजन स्वीकृति की मांग की. सक्षम प्राधिकारी ने अभियोजन स्वीकृति देने से इनकार कर दिया. इसके खिलाफ याची की रिव्यू पिटिशन भी खारिज कर दी. जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी.
कोर्ट ने कहा कि याची ने अवमानना का आरोप लगाते हुए सक्षम प्राधिकारी के यहां अभियोजन स्वीकृति के लिए जो अर्जी दी थी, उसमें पर्याप्त तथ्य नहीं है. जिससे की अवमानना का आरोप साबित होता हो. इसलिए सक्षम प्राधिकारी ने याची की अर्जी खारिज कर कोई गलती नहीं की है.
मामले के अनुसार अधिवक्ता अरुण मिश्रा ने वादी दिनेश कुमार शुक्ला की ओर से उपभोक्ता शिकायत निवारण फोरम में बिजली के बिल में गड़बड़ी को लेकर एक शिकायत दर्ज की थी. जिस पर फोरम ने बिजली की बिल में संशोधन का आदेश पारित किया, मगर इस आदेश का पालन ना होने पर याची विद्युत लोकपाल के यहां अवमानना याचिका दाखिल की. यहां पर भी कोई सुनवाई ना होने पर उसने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. हाईकोर्ट ने लोकपाल के यहां दाखिल याचिका के प्रति मांगी.
अधिवक्ता का आरोप है कि जब वह लोकपाल के यहां प्रति लेने गया तो उसके साथ बदसलूकी की गई और गार्ड से बाहर निकलवा देने की धमकी दी गई. साथ ही उसे बताया गया कि अरुण मिश्रा को इस मामले की पैरवी करने से डी बार कर दिया गया है. इसके खिलाफ उन्होंने मानहानि का मुकदमा दर्ज करने के लिए एसीजेएम के यहां परिवाद दाखिल किया था.
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