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हाईकोर्ट का फैसला, DNA टेस्ट से सामने आएगी पत्नी की बेवफाई की सच्चाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि बच्चे का पिता कौन है, यह प्रमाणित करने के लिए डीएनए सबसे ज्यादा वैध और वैज्ञानिक तरीका है. कोर्ट ने यह भी कहा कि डीएनए टेस्ट से यह भी साबित किया जा सकता है कि पत्नी बेवफा, बेईमान या फिर व्यभिचारी नहीं है.

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Published : Nov 18, 2020, 9:32 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट.
इलाहाबाद हाईकोर्ट.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि डीएनए टेस्ट साइंटिफिक, वैध और परफेक्ट तरीका है, जिससे (अवैध संबंध) जारता के आरोप की पुष्टि की जा सकती है या आरोप को गलत साबित किया जा सकता है. यह पति और पत्नी दोनों के लिए उपयोगी है. जारता के आरोप साबित करने, आरोप से बेदाग बरी होने या भरोसा कायम रखने के लिए डीएनए टेस्ट सबसे विश्वसनीय साक्ष्य है.

कोर्ट ने कहा कि जहां उपधारणा के आधार पर निष्कर्ष निकालने की स्थिति वहां वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित साक्ष्य को अधिक विश्वसनीय माना जाना चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने फैसलों में डीएनए टेस्ट को सबसे विश्वसनीय और प्रमाणिक साक्ष्य की मान्यता दी है.

कोर्ट ने महिला नीलम की उस याचिका पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है, जिसमें अपर प्रमुख परिवार न्यायाधीश हमीरपुर के पति-पत्नी के अलग होने के तीन साल बाद पैदा हुए बेटे के पितृत्व को लेकर डीएनए टेस्ट की पति की मांग स्वीकार करने को चुनौती दी गई थी. यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने दिया है.

कोर्ट के समक्ष सवाल था कि क्या हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक अर्जी, जिसमें पति ने पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाया है के तहत सुनवाई करते हुए अदालत क्या यह निर्देश दे सकती है कि पत्नी या तो डीएनए टेस्टिंग कराए या ऐसा करने से इनकार कर दे और यदि पत्नी डीएनए टेस्टिंग कराना स्वीकार करती है तो क्या टेस्ट के निष्कर्ष उस पर लगाए गए आरोपों पर अंतिम रूप से साक्ष्य के रूप में स्वीकार किये जायेंगे और यदि पत्नी डीएनए टेस्टिंग कराने से इनकार करती है तो क्या अदालत पत्नी के खिलाफ जारता की अवधारणा बना सकती है.

कोर्ट ने इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने डीएनए टेस्ट को सबसे वैधानिक और वैज्ञानिक रूप से पुष्ट जरिया माना है, जिसका इस्तेमाल पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाने वाला पति कर सकता है. वैज्ञानिक साक्ष्य पुख्ता होते हैं, यहां अनुमान की गुंजाइश नहीं है. इसलिए अदालतों को निष्कर्ष निकालने के लिए अनुमान पर आश्रित होने की जरूरत नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इसे सबसे विश्वसनीय और सही माध्यम माना जा सकता है. यह पत्नी के लिए भी पति के आरोपों को झूठा सबित करने के लिए उपयोगी है. वह बेदाग होकर अपनी विश्वसनीयता व भरोसे को कायम रख सकती है. कोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले में कोई अवैधानिकता न पाते हुए याचिका खारिज कर दी है.

याची नीलम की रामआसरे से वर्ष 2004 में शादी हुई थी. दोनों से तीन बेटियां हैं. पति का कहना है कि वह 15 जनवरी 2013 से पत्नी से अलग हो गया है और इसके बाद वह दोनों कभी भी एक साथ नहीं हुए. 2014 से प्रथागत तलाक देकर पत्नी को गुजारा भत्ता भी दे रहा है. इसके बाद 26 जनवरी 2016 को पत्नी ने अपने मायके में एक बेटे को जन्म दिया. इसके बाद पति ने व्यभिचार को आधार बनाते हुए तलाक का मुकदमा दाखिल किया है, जिसमें बच्चे से अपना डीएनए टेस्ट कराने की अर्जी दाखिल की है.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि डीएनए टेस्ट साइंटिफिक, वैध और परफेक्ट तरीका है, जिससे (अवैध संबंध) जारता के आरोप की पुष्टि की जा सकती है या आरोप को गलत साबित किया जा सकता है. यह पति और पत्नी दोनों के लिए उपयोगी है. जारता के आरोप साबित करने, आरोप से बेदाग बरी होने या भरोसा कायम रखने के लिए डीएनए टेस्ट सबसे विश्वसनीय साक्ष्य है.

कोर्ट ने कहा कि जहां उपधारणा के आधार पर निष्कर्ष निकालने की स्थिति वहां वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित साक्ष्य को अधिक विश्वसनीय माना जाना चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने फैसलों में डीएनए टेस्ट को सबसे विश्वसनीय और प्रमाणिक साक्ष्य की मान्यता दी है.

कोर्ट ने महिला नीलम की उस याचिका पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है, जिसमें अपर प्रमुख परिवार न्यायाधीश हमीरपुर के पति-पत्नी के अलग होने के तीन साल बाद पैदा हुए बेटे के पितृत्व को लेकर डीएनए टेस्ट की पति की मांग स्वीकार करने को चुनौती दी गई थी. यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने दिया है.

कोर्ट के समक्ष सवाल था कि क्या हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक अर्जी, जिसमें पति ने पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाया है के तहत सुनवाई करते हुए अदालत क्या यह निर्देश दे सकती है कि पत्नी या तो डीएनए टेस्टिंग कराए या ऐसा करने से इनकार कर दे और यदि पत्नी डीएनए टेस्टिंग कराना स्वीकार करती है तो क्या टेस्ट के निष्कर्ष उस पर लगाए गए आरोपों पर अंतिम रूप से साक्ष्य के रूप में स्वीकार किये जायेंगे और यदि पत्नी डीएनए टेस्टिंग कराने से इनकार करती है तो क्या अदालत पत्नी के खिलाफ जारता की अवधारणा बना सकती है.

कोर्ट ने इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने डीएनए टेस्ट को सबसे वैधानिक और वैज्ञानिक रूप से पुष्ट जरिया माना है, जिसका इस्तेमाल पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाने वाला पति कर सकता है. वैज्ञानिक साक्ष्य पुख्ता होते हैं, यहां अनुमान की गुंजाइश नहीं है. इसलिए अदालतों को निष्कर्ष निकालने के लिए अनुमान पर आश्रित होने की जरूरत नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इसे सबसे विश्वसनीय और सही माध्यम माना जा सकता है. यह पत्नी के लिए भी पति के आरोपों को झूठा सबित करने के लिए उपयोगी है. वह बेदाग होकर अपनी विश्वसनीयता व भरोसे को कायम रख सकती है. कोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले में कोई अवैधानिकता न पाते हुए याचिका खारिज कर दी है.

याची नीलम की रामआसरे से वर्ष 2004 में शादी हुई थी. दोनों से तीन बेटियां हैं. पति का कहना है कि वह 15 जनवरी 2013 से पत्नी से अलग हो गया है और इसके बाद वह दोनों कभी भी एक साथ नहीं हुए. 2014 से प्रथागत तलाक देकर पत्नी को गुजारा भत्ता भी दे रहा है. इसके बाद 26 जनवरी 2016 को पत्नी ने अपने मायके में एक बेटे को जन्म दिया. इसके बाद पति ने व्यभिचार को आधार बनाते हुए तलाक का मुकदमा दाखिल किया है, जिसमें बच्चे से अपना डीएनए टेस्ट कराने की अर्जी दाखिल की है.

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