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प्रतापगढ़ के इस मंदिर में माता के दर्शन मात्र से ही पूरी होती हैं मनोकामनाएं

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Published : Nov 4, 2020, 7:16 PM IST

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में स्थित मां बेल्हा देवी मंदिर बहुत प्रसिद्ध है. लोगों की मान्यता के अनुसार यहां यहां माता सती की कमर (बेला) गिरी थी. कुछ अन्य मान्यताओं के मुताबिक वनगमन के समय प्रभु श्री राम ने यहां पूजा की थी. इस मंदिर में बच्चों का मुंडन, कर्ण छेदन आदि संस्कार और अन्य सभी तरह के मांगलिक कार्य संपन्न किए जाते हैं.

मां बेल्हा देवी मंदिर
मां बेल्हा देवी मंदिर

प्रतापगढ: जिले में अपनी अद्भुत विशेषता और चमत्कारों को लेकर बेल्हा देवी मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. मां बेल्हा देवी के पुजारी मनोज पंडित के मुताबिक, यहां माता सती की कमर (बेला) गिरी थी, इसलिए इस मंदिर को बेल्हा मंदिर कहा जाता है. लोक मान्यता के अनुसार, जो भी भक्त देवी मां के पास मनोकामनाओं लेकर आते हैं, मां बेल्हा देवी उन्हें जरूर ही पूरा करती हैं.

'प्रभु श्री राम ने यहां की थी पूजा'

बेल्हा मंदिर को लेकर लोगों का मानना है कि त्रेता युग में श्री राम ने वनवास के दौरान सई नदी को पार कर मंदिर वाली जगह पर पूजन कर अपने संकल्प को पूरा करने के लिए ऊर्जा ली थी. एक अन्य मान्यता के अनुसार, चित्रकूट से अयोध्या लौटते समय श्रीराम के भाई भरत ने भी यहां पूजन किया था. जिसके बाद ही मंदिर लोगों के अस्तित्व में आया और इसके प्रति लोगों की आस्था बढ़ गई. इन सबके अलावा मंदिर को लेकर एक इतिहास ये भी है कि चाहमान वंश के राजा पृथ्वी राज चौहान की एक बेटी बेला थी, जिसका विवाह इस क्षेत्र रहने वाले ब्रह्मा नामक एक युवक से हुआ था. लेकिन, बेला के विदाई के ही दिन उसके पति की मृत्य हो गई. बेला इस गम को सहन नहीं कर पाई और उसने नदी में खुद को सती कर लिया, इसलिए इस जगह को सती स्थल के नाम से भी जाना जाता है.

यहां पूरी होती है हर मनोकामना

नवरात्रों में मां के अलग-अलग स्वरूपों का श्रृंगार बहुत खूबसूरत तरीके से किया जाता है. बेल्हा देवी मंदिर में बच्चों का मुंडन, कर्ण छेदन आदि संस्कार और अन्य सभी तरह के मांगलिक कार्य संपन्न किए जाते हैं. श्रद्धालु अनुराग कुमार खरे ने बताया कि यह बहुत पुराना मंदिर है. हम लोग यहां दर्शन करने के लिए आते हैं. श्रद्धालु यहां सच्चे मन जो मनोकामना मांगते हैं वह जरूर पूरी होती है. यहां एक मेले का भी आयोजन होता है.

कोरोना को लेकर बरती जा रही सतर्कता

कोरोना काल में मंदिर के पुजारी और श्रद्धालु दोनों सतर्क हैं. कोरोना से बचाव के लिए मंदिर परिसर के मुख्य गेट पर सैनिटाइजर की व्यवस्था की गई है. सैनिटाइज होकर ही लोगों को मंदिर के अंदर प्रवेश करने की अनुमति दी जा रही है.

प्रतापगढ: जिले में अपनी अद्भुत विशेषता और चमत्कारों को लेकर बेल्हा देवी मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. मां बेल्हा देवी के पुजारी मनोज पंडित के मुताबिक, यहां माता सती की कमर (बेला) गिरी थी, इसलिए इस मंदिर को बेल्हा मंदिर कहा जाता है. लोक मान्यता के अनुसार, जो भी भक्त देवी मां के पास मनोकामनाओं लेकर आते हैं, मां बेल्हा देवी उन्हें जरूर ही पूरा करती हैं.

'प्रभु श्री राम ने यहां की थी पूजा'

बेल्हा मंदिर को लेकर लोगों का मानना है कि त्रेता युग में श्री राम ने वनवास के दौरान सई नदी को पार कर मंदिर वाली जगह पर पूजन कर अपने संकल्प को पूरा करने के लिए ऊर्जा ली थी. एक अन्य मान्यता के अनुसार, चित्रकूट से अयोध्या लौटते समय श्रीराम के भाई भरत ने भी यहां पूजन किया था. जिसके बाद ही मंदिर लोगों के अस्तित्व में आया और इसके प्रति लोगों की आस्था बढ़ गई. इन सबके अलावा मंदिर को लेकर एक इतिहास ये भी है कि चाहमान वंश के राजा पृथ्वी राज चौहान की एक बेटी बेला थी, जिसका विवाह इस क्षेत्र रहने वाले ब्रह्मा नामक एक युवक से हुआ था. लेकिन, बेला के विदाई के ही दिन उसके पति की मृत्य हो गई. बेला इस गम को सहन नहीं कर पाई और उसने नदी में खुद को सती कर लिया, इसलिए इस जगह को सती स्थल के नाम से भी जाना जाता है.

यहां पूरी होती है हर मनोकामना

नवरात्रों में मां के अलग-अलग स्वरूपों का श्रृंगार बहुत खूबसूरत तरीके से किया जाता है. बेल्हा देवी मंदिर में बच्चों का मुंडन, कर्ण छेदन आदि संस्कार और अन्य सभी तरह के मांगलिक कार्य संपन्न किए जाते हैं. श्रद्धालु अनुराग कुमार खरे ने बताया कि यह बहुत पुराना मंदिर है. हम लोग यहां दर्शन करने के लिए आते हैं. श्रद्धालु यहां सच्चे मन जो मनोकामना मांगते हैं वह जरूर पूरी होती है. यहां एक मेले का भी आयोजन होता है.

कोरोना को लेकर बरती जा रही सतर्कता

कोरोना काल में मंदिर के पुजारी और श्रद्धालु दोनों सतर्क हैं. कोरोना से बचाव के लिए मंदिर परिसर के मुख्य गेट पर सैनिटाइजर की व्यवस्था की गई है. सैनिटाइज होकर ही लोगों को मंदिर के अंदर प्रवेश करने की अनुमति दी जा रही है.

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