मुरादाबाद: उत्तर प्रदेश सरकार भले ही स्वास्थ्य सेवाओं के सुधरने का दावा करती हो लेकिन जमीनी हकीकत सरकार के दावों की पोल खोलती नजर आती है. जनपद के देहात क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली आम लोगों के लिए मुसीबत का सबब बनती जा रहीं है. मझोला थाना क्षेत्र स्थित चौधरपुर गांव में सालों पहले बना प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र कबाड़ घर में तब्दील हो गया है. गन्दगी और आवारा पशुओं का अड्डा बनें इस अस्पताल में कोई कर्मचारी झांकने भी नहीं आता.
स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली की जीती-जागती तस्वीर अगर आपको देखनी हो तो मुरादाबाद जनपद के चौधरपुर गांव की इस जर्जर होती बिल्डिंग को देख लीजिए. दस साल पहले लाखों रुपये खर्च कर बनी इस बिल्डिंग में कुछ ही दिन स्वास्थ्य विभाग के कर्मी तैनात रहें. पिछले नौ साल से भी ज्यादा का वक्त हो गया जब से इस स्वास्थ्य उपकेंद्र की बिल्डिंग का ताला नहीं खुला. गन्दगी के ढेर में तब्दील हो चुकी बिल्डिंग के बाहर नालों का पानी जमा होने से बिल्डिंग के अंदर जाने का रास्ता भी नहीं रह गया है.
जिस स्वास्थ्य उपकेंद्र में मरीजों का इलाज होना था, उन्हें दवाइयां दी जानी थी उस उपकेंद्र की हालत देख ग्रामीण भी निराश है. मजबूरी में गर्भवती महिला हो या फिर कोई बीमार बुजुर्ग उसको मामूली इलाज के लिए भी कई किलोमीटर दूर मुरादाबाद आना पड़ता है. ग्रामीणों ने इस स्वास्थ्य उपकेंद्र में स्टाफ की तैनाती के लिए कई बार अधिकारियों से भी दरख्वास्त लगाई लेकिन नतीजा हमेशा सिफर ही रहा.
गांव में ज्यादातर संख्या में मजदूर और गरीब किसान रहते है जो सुबह होते ही अपने काम से खेत और शहरों को चले जाते है. गरीबी के चलते यह अस्पताल उनके इलाज का सबसे बड़ा सहारा था लेकिन अब अस्पताल की बिल्डिंग में गांव के आवारा जानवर रहते है. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी स्वीकार करते है कि इस बिल्डिंग में असमाजिक तत्व भी जमा होते है और गन्दगी चारो तरफ पसरी है. लेकिन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी सरकार द्वारा एएनएम की तैनाती न करने की बात कहकर पल्ला झाड़ लेते है. प्रभारी डॉक्टर के मुताबिक इस वक्त भी इस अस्पताल में किसी कर्मचारी की नियुक्ति नहीं है जिसकी वजह से इस अस्पताल में ताला लगाना मजबूरी है.
एक तरफ वादें, दावे और गरीबों को बेहतर इलाज देने का भरोसा दूसरी तरफ गन्दगी के ढेर में बीमार अस्पताल, गेट पर लगा ताला और सार्वजनिक शौचालय बन चुकी बिल्डिंग. जी हां सरकारी दावों की यही असलियत है. मेहनत मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण करने वाले लोगों के लिए इससे बड़ी सजा क्या होगी कि उन्हें अस्पताल की बिल्डिंग तो सामने नजर आए लेकिन डॉक्टर और दवाइयां कभी मयस्सर न हों.