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विश्व पर्यावरण दिवस: अपनों की मौत के बाद पेड़ों के जरिए यादों को सहेज कर रखता है यह गांव - demise of family people plant trees

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में एक गांव ऐसा है जो पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए, साथ ही अपनों की मौत होने के बाद उन्हें आसपास महसूस करने के लिए पौधा लगाते हैं. लालपुर गंगवारी गांव में यह सिलसिला दस साल पहले गांव के रहने वाले एक सरकारी कर्मचारी मुहम्मद जावेद ने शुरू किया था.

plantation
पौधारोपण कर अपनों को लोग करते हैं याद
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Published : Jun 5, 2020, 3:35 PM IST

मुरादाबाद: पांच जून को पूरी दुनिया में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. पर्यावरण संरक्षण के लिए दुनिया के तमाम देशों की चिंता के बीच पर्यावरण को संरक्षित रखना समय की मांग है. सरकारों के स्तर पर विशेष प्रयासों के साथ कई लोग अपने स्तर से भी पर्यावरण संरक्षण के कार्यों में जुटे हैं.

परिजनों की मौत पर लगाते हैं पेड़
मुरादाबाद जनपद के लालपुर गंगवारी गांव में स्थानीय लोग अनोखे तरीके से पेड़ों को जीवन देने की मुहिम में जुटे हैं. इस गांव में रहने वाले परिवार अपने परिजनों की मौत के बाद उनकी याद में एक पेड़ लगाते हैं और ताउम्र उस पेड़ की देखभाल करते हैं. गांव के रहने वाले एक शख्स के प्रयासों से शुरू हुई इस मुहिम से लोग जहां अपने परिजनों को अपने आस-पास होने का अनुभव करते हैं, वहीं पर्यावरण को भी नया जीवन देते नजर आते हैं.

पौधारोपण कर अपनों को लोग करते हैं याद

पोतियों की याद में लगाए दो पेड़
लालपुर गंगवारी गांव में रहने वाली सत्तर साल की बुजुर्ग बानो बेगम के घर के आंगन में लगे ये दो पेड़ उनके लिए जिंदगी को जीने और अपनों का अहसास करने का जरिया हैं. सात साल पहले बानो बेगम की दो पोतियों की मौत हो गई थी, जिसके बाद उन्होंने पोतियों की याद में इन पेड़ों को अपने आंगन में जगह दी. ये पेड़ हर रोज बढ़ रहे हैं. साथ ही बानो बेगम का पेड़ों से रिश्ता भी.

नम आंखों से पेड़ों को पानी देती बानो बेगम के लिए ये पेड़ अपनी पोतियों को याद करने का जरिया होने के साथ उनके होने का अहसास भी कराते हैं. लालपुर गंगवारी के ही रहने वाले फौजी सईद अहमद कश्मीर में तैनात हैं और आजकल छुट्टियों में घर पर हैं. कुछ दिन पहले सईद की मां की मौत हो गई थी, जिसके बाद उन्होंने मां की कब्र के पास एक पेड़ लगाया. हर रोज पेड़ की देखरेख के लिए सईद कब्र पर जाते हैं. सईद कहते हैं कब्र पर लगे पेड़ की चिंता उन्हें हर रोज यहां ले आती है और इसी बहाने वह अपनी मां के साथ होने का भी एहसास करते हैं.

मोहम्मद जावेद ने शुरू किया था मुहिम
इस गांव में मृतक की याद में पेड़ लगाने का यह सिलसिला दस साल पहले गांव के रहने वाले एक सरकारी कर्मी मोहम्मद जावेद ने शुरू किया था. जावेद ने अपनी मां की मौत के बाद उन्हें याद करने के लिए घर की छत पर उगे एक बरगद के पौधे को उनकी कब्र के पास लगाया था, जिसके बाद उन्हें काफी सकून मिला. अपनों को याद करने और पर्यावरण संरक्षण में उपयोगी इस मुहिम से जावेद ने धीरे-धीरे अन्य लोगों को जोड़ना शुरू किया और आज यह गांव की परंपरा बन चुकी है.

मुहिम शुरू करने वाले जावेद खुद पेड़ लाकर उन परिवारों को देते हैं, जिनके परिजनों की मौत हो जाती है. हिन्दू परिवार अपने बगीचे में इन पेड़ों को लगाते हैं जबकि मुस्लिम परिवार कब्रिस्तान में पेड़ लगाकर उनकी देखभाल कर रहें है. गांव के कब्रिस्तान में चारों तरफ पेड़ों को बड़ी संख्या है जो गांव के लोगों को उनके अपनों को याद करने का जरिया बन चुका है.

अपनों की याद में लगाए पौधे धीरे-धीरे पेड़ों में तब्दील हो रहें हैं. साल दर साल ये पौधे बढ़ते रहेंगे और इसी के साथ अपनों की यादें भी लोगों के जेहन में ताजा रहेंगी. अपनी पोतियों को याद कर रहीं बानो बेगम भी कहती है कि उनकी मौत के बाद उनकी याद में भी एक पेड़ लगाया जाए ताकि इस मिट्टी से उनका नाता वर्षों वर्ष जुड़ा रहे. मुहम्मद जावेद की इस मुहिम से अब आस-पास के लोग भी प्रभावित हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रकृति से इंसान के इस रिश्ते को पेड़ एक नया आयाम देंगे.

मुरादाबाद: पांच जून को पूरी दुनिया में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. पर्यावरण संरक्षण के लिए दुनिया के तमाम देशों की चिंता के बीच पर्यावरण को संरक्षित रखना समय की मांग है. सरकारों के स्तर पर विशेष प्रयासों के साथ कई लोग अपने स्तर से भी पर्यावरण संरक्षण के कार्यों में जुटे हैं.

परिजनों की मौत पर लगाते हैं पेड़
मुरादाबाद जनपद के लालपुर गंगवारी गांव में स्थानीय लोग अनोखे तरीके से पेड़ों को जीवन देने की मुहिम में जुटे हैं. इस गांव में रहने वाले परिवार अपने परिजनों की मौत के बाद उनकी याद में एक पेड़ लगाते हैं और ताउम्र उस पेड़ की देखभाल करते हैं. गांव के रहने वाले एक शख्स के प्रयासों से शुरू हुई इस मुहिम से लोग जहां अपने परिजनों को अपने आस-पास होने का अनुभव करते हैं, वहीं पर्यावरण को भी नया जीवन देते नजर आते हैं.

पौधारोपण कर अपनों को लोग करते हैं याद

पोतियों की याद में लगाए दो पेड़
लालपुर गंगवारी गांव में रहने वाली सत्तर साल की बुजुर्ग बानो बेगम के घर के आंगन में लगे ये दो पेड़ उनके लिए जिंदगी को जीने और अपनों का अहसास करने का जरिया हैं. सात साल पहले बानो बेगम की दो पोतियों की मौत हो गई थी, जिसके बाद उन्होंने पोतियों की याद में इन पेड़ों को अपने आंगन में जगह दी. ये पेड़ हर रोज बढ़ रहे हैं. साथ ही बानो बेगम का पेड़ों से रिश्ता भी.

नम आंखों से पेड़ों को पानी देती बानो बेगम के लिए ये पेड़ अपनी पोतियों को याद करने का जरिया होने के साथ उनके होने का अहसास भी कराते हैं. लालपुर गंगवारी के ही रहने वाले फौजी सईद अहमद कश्मीर में तैनात हैं और आजकल छुट्टियों में घर पर हैं. कुछ दिन पहले सईद की मां की मौत हो गई थी, जिसके बाद उन्होंने मां की कब्र के पास एक पेड़ लगाया. हर रोज पेड़ की देखरेख के लिए सईद कब्र पर जाते हैं. सईद कहते हैं कब्र पर लगे पेड़ की चिंता उन्हें हर रोज यहां ले आती है और इसी बहाने वह अपनी मां के साथ होने का भी एहसास करते हैं.

मोहम्मद जावेद ने शुरू किया था मुहिम
इस गांव में मृतक की याद में पेड़ लगाने का यह सिलसिला दस साल पहले गांव के रहने वाले एक सरकारी कर्मी मोहम्मद जावेद ने शुरू किया था. जावेद ने अपनी मां की मौत के बाद उन्हें याद करने के लिए घर की छत पर उगे एक बरगद के पौधे को उनकी कब्र के पास लगाया था, जिसके बाद उन्हें काफी सकून मिला. अपनों को याद करने और पर्यावरण संरक्षण में उपयोगी इस मुहिम से जावेद ने धीरे-धीरे अन्य लोगों को जोड़ना शुरू किया और आज यह गांव की परंपरा बन चुकी है.

मुहिम शुरू करने वाले जावेद खुद पेड़ लाकर उन परिवारों को देते हैं, जिनके परिजनों की मौत हो जाती है. हिन्दू परिवार अपने बगीचे में इन पेड़ों को लगाते हैं जबकि मुस्लिम परिवार कब्रिस्तान में पेड़ लगाकर उनकी देखभाल कर रहें है. गांव के कब्रिस्तान में चारों तरफ पेड़ों को बड़ी संख्या है जो गांव के लोगों को उनके अपनों को याद करने का जरिया बन चुका है.

अपनों की याद में लगाए पौधे धीरे-धीरे पेड़ों में तब्दील हो रहें हैं. साल दर साल ये पौधे बढ़ते रहेंगे और इसी के साथ अपनों की यादें भी लोगों के जेहन में ताजा रहेंगी. अपनी पोतियों को याद कर रहीं बानो बेगम भी कहती है कि उनकी मौत के बाद उनकी याद में भी एक पेड़ लगाया जाए ताकि इस मिट्टी से उनका नाता वर्षों वर्ष जुड़ा रहे. मुहम्मद जावेद की इस मुहिम से अब आस-पास के लोग भी प्रभावित हैं और उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रकृति से इंसान के इस रिश्ते को पेड़ एक नया आयाम देंगे.

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