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लखनऊ की कुकरैल; 200 साल पुरानी नदी, कुत्ते के काटने पर नहाते थे लोग, अब योगी सरकार करेगी पुनर्जीवित - KUKRAIL RIVER

नाले में तब्दील हो चुकी कुकरैल नदी के पुनर्जीवन के लिए जल शक्ति मंत्रालय की ओर से चलाई जाएगी परियोजना, जानिए क्या है इतिहास?

नदी पुनर्जीवन परियोजना का जल्द होगा आगाज.
नदी पुनर्जीवन परियोजना का जल्द होगा आगाज. (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 6, 2025, 5:50 PM IST

लखनऊ: नवाबों के शहर लखनऊ में जल्द ही एक और नदी बहेगी. बख्शी का तालाब क्षेत्र के अस्ति गांव से शुरू होकर पेपर मिल कॉलोनी के पास गोमती में मिलने वाली नाले में तब्दील हो चुकी कुकरैल नदी को पुनर्जीवित करने की कवायद शुरू हो गई है. नदी किनारे अवैध रूप से बसी अकबरनगर बस्ती ध्वस्त करने के बाद पुनर्जीवन की परियोजना का आगाज होगा.

डीपीआर को मंजूरी के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) को सौंप दिया गया है, जो दो महीने में आ सकती है. 28 किमी लंबी नदी में कई चरणों में गाद निकालने का काम होगा. इसके साथ ही कुकरैल नदी में गिरने वाले 51 नालों का दोहन एवं मार्ग परिवर्तन किया जाएगा.

डीपीआर तैयार : जल शक्ति मंत्रालय की ओर से कुकरैल नदी के पुनर्जीवन की इस परियोजना को चलाया जाएगा. प्रदेश की जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने बताया कि इस परियोजना में न केवल नदी को स्वच्छ बनाने के लिए अलग-अलग प्रयास किए जाएंगे. बल्कि शारदा सहायक परियोजना की इंदिरा कैनाल से पानी लिया जाएगा. अनुमोदन के बाद परियोजना ग्रामीण विकास, वन और सिंचाई विभागों के समन्वित प्रयासों से आगे बढ़ेगी. जल शक्ति मंत्रालय की ओर से इस संबंध में विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की जा चुकी है. जिसमें परियोजना के बजट के अलावा इसकी पूरी रूपरेखा और टाइमलाइन दर्ज की गई है.

कुकरैल नदी के पुनर्जीवन के लिए योजना तैयार.
कुकरैल नदी के पुनर्जीवन के लिए योजना तैयार. (Photo Credit; ETV Bharat)
डीपीआर एनएमसीजी को सौंपा: कुकरैल नदी पेपर मिल कॉलोनी के पास गोमती में मिलती है. जबकि गोमती आगे जौनपुर के पास गंगा में उसका संगम हो जाता है. इसलिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन में यह परियोजना शामिल हो सकती थी. जिसका फायदा उत्तर प्रदेश सरकार उठा रही है और इसकी वजह से केंद्र सरकार इसके लिए बजट भी देगी. डीपीआर को मंजूरी के लिए एनएमसीजी को सौंप दिया गया है, जो दो महीने में इसको स्वीकृत कर देगा.

नदी का नाम कुकरैल क्यों पड़ा: स्थानीय लोककथाओं के अनुसार कुकरैल नदी की उत्पत्ति लगभग 200 साल पहले हुई थी. पहली बार 1904 के गजेटियर में दर्ज किया गया था. 1960 में इस नदी का जल स्तर 113.2 मीटर तक पहुंच गया था. जिसके कारण 1962 में नदी के किनारे तटबंधों का निर्माण किया गया. 1980 में, कुकरैल और गोमती की अन्य सहायक नदियों के बीच की भूमि (म्यूनिसिपल स्लेज फार्म) को विकास के लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) को दे दिया गया था. पुरानी मान्यता है कि नदी में नहाने से कुत्ते के काटने का इलाज हो जाता है. अभी भी ग्रामीण इलाकों में कुछ लोग कुत्ते के काटने पर नाला बन चुकी नदी में स्नान करते हैं. बताया जाता है कि यह 28 किलोमीटर लंबी नदी, जो शहरीकरण और अतिक्रमण के कारण छह दशकों में सिकुड़ती चली गई. कभी इस दनी पानी साफ होता था और जमीन दिखती थी. ग्रामीण इलाकों में खेतों की सिंचाई और पीने के पानी का यह नदी प्रमुख स्रोत हुआ करती थी. शहरीकरण के बीच नालों का रुख कुकरैल में मोड़ दिया गया था. जिसकी वजह से कुकरैल नदी अब नाले के रूप में जानी जाने लगी.

इसे भी पढ़ें-जिस अकबरनगर पर चला बुलडोजर वहां CM Yogi ने लगाए पौधे; बोले- भू-माफिया ने नदी को नाला बना डाला - CM Yogi Adityanath

नदी पुनर्जीवित के लिए ये होंगे कार्य

  • अस्ति गांव से पेपर मिल कॉलोनी तक कुकरेल नदी करीब 28 किलोमीटर की रेंज में है. माना जा रहा है इसके तल में बहुत गाद है. जिसको मशीनों के जरिए निकाला जाएगा.
  • अतिरिक्त पानी की आपूर्ति के लिए कुकरैल नदी में शारदा नहर से पानी आएगा. शारदा नहर इससे पहले कठोरता झील में भी पानी देती रही है. यह पानी आने से कुकरेल नदी सदानीरा रहेगी.
  • कुकरैल में लखनऊ के लगभग 51 नाले गिर रहे हैं. जो की नदी को लगातार गंदा कर रहे हैं. इन नालों का मार्ग बदल जाएगा या यहां बनने वाले नई सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से जोड़ा जाएगा.
  • अकबरनगर कॉलोनी को ध्वस्त करने के बाद यहां बनाए गए सौमित्र वन के पास में 40 MLD का STP बनाया जाएगा. जिससे अपनी ट्रीट होकर गोमती में गिरेगा. अस्ति गांव में नदी को उसके भूजल आधारित स्रोत से दोबारा जोड़ा जाएगा. ताकि नदी प्राकृतिक तरीके से भी रिचार्ज होती रहे.

लखनऊ: नवाबों के शहर लखनऊ में जल्द ही एक और नदी बहेगी. बख्शी का तालाब क्षेत्र के अस्ति गांव से शुरू होकर पेपर मिल कॉलोनी के पास गोमती में मिलने वाली नाले में तब्दील हो चुकी कुकरैल नदी को पुनर्जीवित करने की कवायद शुरू हो गई है. नदी किनारे अवैध रूप से बसी अकबरनगर बस्ती ध्वस्त करने के बाद पुनर्जीवन की परियोजना का आगाज होगा.

डीपीआर को मंजूरी के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) को सौंप दिया गया है, जो दो महीने में आ सकती है. 28 किमी लंबी नदी में कई चरणों में गाद निकालने का काम होगा. इसके साथ ही कुकरैल नदी में गिरने वाले 51 नालों का दोहन एवं मार्ग परिवर्तन किया जाएगा.

डीपीआर तैयार : जल शक्ति मंत्रालय की ओर से कुकरैल नदी के पुनर्जीवन की इस परियोजना को चलाया जाएगा. प्रदेश की जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने बताया कि इस परियोजना में न केवल नदी को स्वच्छ बनाने के लिए अलग-अलग प्रयास किए जाएंगे. बल्कि शारदा सहायक परियोजना की इंदिरा कैनाल से पानी लिया जाएगा. अनुमोदन के बाद परियोजना ग्रामीण विकास, वन और सिंचाई विभागों के समन्वित प्रयासों से आगे बढ़ेगी. जल शक्ति मंत्रालय की ओर से इस संबंध में विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की जा चुकी है. जिसमें परियोजना के बजट के अलावा इसकी पूरी रूपरेखा और टाइमलाइन दर्ज की गई है.

कुकरैल नदी के पुनर्जीवन के लिए योजना तैयार.
कुकरैल नदी के पुनर्जीवन के लिए योजना तैयार. (Photo Credit; ETV Bharat)
डीपीआर एनएमसीजी को सौंपा: कुकरैल नदी पेपर मिल कॉलोनी के पास गोमती में मिलती है. जबकि गोमती आगे जौनपुर के पास गंगा में उसका संगम हो जाता है. इसलिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन में यह परियोजना शामिल हो सकती थी. जिसका फायदा उत्तर प्रदेश सरकार उठा रही है और इसकी वजह से केंद्र सरकार इसके लिए बजट भी देगी. डीपीआर को मंजूरी के लिए एनएमसीजी को सौंप दिया गया है, जो दो महीने में इसको स्वीकृत कर देगा.

नदी का नाम कुकरैल क्यों पड़ा: स्थानीय लोककथाओं के अनुसार कुकरैल नदी की उत्पत्ति लगभग 200 साल पहले हुई थी. पहली बार 1904 के गजेटियर में दर्ज किया गया था. 1960 में इस नदी का जल स्तर 113.2 मीटर तक पहुंच गया था. जिसके कारण 1962 में नदी के किनारे तटबंधों का निर्माण किया गया. 1980 में, कुकरैल और गोमती की अन्य सहायक नदियों के बीच की भूमि (म्यूनिसिपल स्लेज फार्म) को विकास के लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) को दे दिया गया था. पुरानी मान्यता है कि नदी में नहाने से कुत्ते के काटने का इलाज हो जाता है. अभी भी ग्रामीण इलाकों में कुछ लोग कुत्ते के काटने पर नाला बन चुकी नदी में स्नान करते हैं. बताया जाता है कि यह 28 किलोमीटर लंबी नदी, जो शहरीकरण और अतिक्रमण के कारण छह दशकों में सिकुड़ती चली गई. कभी इस दनी पानी साफ होता था और जमीन दिखती थी. ग्रामीण इलाकों में खेतों की सिंचाई और पीने के पानी का यह नदी प्रमुख स्रोत हुआ करती थी. शहरीकरण के बीच नालों का रुख कुकरैल में मोड़ दिया गया था. जिसकी वजह से कुकरैल नदी अब नाले के रूप में जानी जाने लगी.

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नदी पुनर्जीवित के लिए ये होंगे कार्य

  • अस्ति गांव से पेपर मिल कॉलोनी तक कुकरेल नदी करीब 28 किलोमीटर की रेंज में है. माना जा रहा है इसके तल में बहुत गाद है. जिसको मशीनों के जरिए निकाला जाएगा.
  • अतिरिक्त पानी की आपूर्ति के लिए कुकरैल नदी में शारदा नहर से पानी आएगा. शारदा नहर इससे पहले कठोरता झील में भी पानी देती रही है. यह पानी आने से कुकरेल नदी सदानीरा रहेगी.
  • कुकरैल में लखनऊ के लगभग 51 नाले गिर रहे हैं. जो की नदी को लगातार गंदा कर रहे हैं. इन नालों का मार्ग बदल जाएगा या यहां बनने वाले नई सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से जोड़ा जाएगा.
  • अकबरनगर कॉलोनी को ध्वस्त करने के बाद यहां बनाए गए सौमित्र वन के पास में 40 MLD का STP बनाया जाएगा. जिससे अपनी ट्रीट होकर गोमती में गिरेगा. अस्ति गांव में नदी को उसके भूजल आधारित स्रोत से दोबारा जोड़ा जाएगा. ताकि नदी प्राकृतिक तरीके से भी रिचार्ज होती रहे.
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