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मिर्जापुर: सहेलियां जगा रहीं शिक्षा की अलख, घाट पर चलती है अनूठी पाठशाला

गरीब बच्चों को शिक्षा देने के लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा को दिल में लेकर मिर्जापुर जिले की रहने वालीं शिखा मिश्रा और पूर्णिमा सिंह डेढ़ महीने से प्रतिदिन घाट पर गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रही हैं. इनका मानना है कि शिक्षा सबका अधिकार है. हर चीज सरकार नहीं कर सकती है. हम यूथ को आगे आना होगा तभी कुछ हो पाएगा.

मिर्जापुर में दो सहेलियां जगा रहीं शिक्षा की अलख.
मिर्जापुर में दो सहेलियां जगा रहीं शिक्षा की अलख.
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Published : Nov 5, 2020, 6:58 PM IST

मिर्जापुर: कोरोना संकट के चलते देशभर के स्कूल-कॉलेज बंद चल रहे हैं. कुछ स्कूल-कॉलेज तो ऑनलाइन शिक्षा अपने बच्चों को दे रहे हैं, लेकिन गरीब बच्चों के पास मोबाइल और इंटरनेट का पैसा न होने से उनकी पढ़ाई बाधित हो रही है. हालांकि जिले में गरीब बच्चों की शिक्षा को लेकर दो सहेलियों ने नजीर पेश की है. दोनों ने गंगा नदी के घाट को ही पाठशाला बना दी है. शिखा मिश्रा और पूर्णिमा सिंह डेढ़ महीने से प्रतिदिन घाट पर गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहे रही हैं. इन दोनों सहेलियों के घाट पर पहुंचने से पहले बच्चे इंतजार करते रहते हैं. इन गरीब बच्चों की रुकी हुई पढ़ाई को आगे बढ़ाने का काम कर रहीं इन सहेलियों के जज्बे को हर कोई सलाम कर रहा है.

देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

ऑनलाइन पढ़ाई से गरीब बच्चे दूर
कोविड-19 संक्रमण के कारण शिक्षकों और छात्रों ने ऑनलाइन माध्यम से दूरस्थ शिक्षा का सहारा लिया है. वहीं गरीब बच्चे शिक्षा से चूक रहे हैं, क्योंकि उनके पास ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं है. बीते सात महीनों से कोरोना और लॉकडाउन के चलते स्कूल बंद हैं. सरकार की तरफ से ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था तो की गई है, लेकिन कई जगहों पर गरीब बच्चों के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट की सुविधा के अभाव के कारण वह इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं.

घाट पर बनी इनकी पाठशाला
इसी समस्या को देखकर मिर्जापुर जिले की रहने वालीं दो बचपन की दोस्त शिखा मिश्रा और पूर्णिमा सिंह गंगा नदी के बरिया घाट पर पहुंचकर प्रतिदिन इलाके के गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रही हैं. इन्होंने घाट को ही पाठशाला बना दिया है. यहां पर दो घंटे का समय देकर यह दोनों बच्चों को विषय पढ़ाने के साथ ही योगा और खेल भी सिखाती हैं. बच्चों के अभिभावक प्रतिदिन जिम्मेदारी के साथ घाट पर पढ़ाई कराने के लिए भेजते हैं, ताकि बच्चों की पढ़ाई चलती रहे, क्योंकि यह सभी बच्चे सरकारी स्कूल के हैं. इनके पास ऑनलाइन की पढ़ाई के लिए कोई सुविधा नहीं है.

निःशुल्क में बच्चों को मिल रही है शिक्षा
जनपद में स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई तो ऑनलाइन की जा रही है, लेकिन आर्थिक हालात की वजह से ऐसे कई परिवार हैं, जिनके बच्चे अब भी नहीं पढ़ पा रहे हैं. जब तक हालात नहीं सुधरते हैं, इनकी पढ़ाई अधूरी ही रहेगी. स्कूल खुलने का इंतजार है, लेकिन जब तक स्कूल नहीं खुलते हैं, इनकी पढ़ाई बंद रहेगी. सात महीने से बाधित पढ़ाई को आगे बढ़ाने के लिए मिर्जापुर की दो सहेलियों ने आपस में मिलकर गरीब बच्चों को शिक्षा देने का बीड़ा उठाया है.

बरिया घाट पर चल रही पाठशाला में पढ़ते बच्चे.
बरिया घाट पर चल रही पाठशाला में पढ़ते बच्चे.

दोनों सहेलियों ने गंगा घाट की सीढ़ियों को ही पाठशाला बना दिया है. ये दोनों डेढ़ महीने से प्रतिदिन 3 बजे से 5 बजे तक निःशुल्क शिक्षा देती हैं. शुरू में एक दो-बच्चे आते थे. वहींं अब यहां पर 25 बच्चे पढ़ रहे हैं. यह दोनों बच्चों को विषय के साथ ही योगा, खेल और अन्य गतिविधियों से उनका विकास करने की प्रयास कर रही हैं. यहां तक की कभी-कभी 10वीं और 12वीं के भी बच्चे मैथ, इंग्लिश के साथ और विषय लेकर पढ़ने आते हैं. सभी को जितना संभव हो रहा है, यह दोनों मिलकर पढ़ाती हैं.

ओपन लाइब्रेरी खोलने की है तैयारी
मिर्जापुर को शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ाने के लिए शिखा मिश्रा और पूर्णिमा सिंह एक और प्रयास करने जा रही हैं. दोनों सहेलियां मिलकर ओपन लाइब्रेरी खोलने की तैयारी कर रही हैं. इसके लिए किताबों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया है. दो घंटे की निशुल्क पढ़ाई के दौरान घाट पर आने वाले लोग ओपन लाइब्रेरी से निशुल्क किताबों को लेकर पढ़ सकते हैं. इस लाइब्रेरी में शिक्षाप्रद किताबों को रखा जाएगा. एनसीईआरटी की किताबें, वेद, गीता, नावेल के अलावा और सारी किताबें रहेंगी.

घाट के आलवा 'द मंथ ऑफ ड्रीम' पेज पर जाकर ट्विटर या इंस्टाग्राम से लोग किताबें मांग सकते हैं. यह किताबें इस घाट पर दो घंटे की पढ़ाई के बीच मिल जाएंगी. आप एक हफ्ते के लिए घर भी ले जाना चाहते हैं तो ले जा सकते हैं. बस किताब के मूल्य को जमा करना होगा. किताब वापस करने पर आपको पूरा पैसा वापस कर दिया जाएगा. कुल मिलाकर यह निशुल्क लाइब्रेरी रहेगी.

शिखा मिश्रा और पूर्णिमा सिंह ने उठाया बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा.
शिखा मिश्रा और पूर्णिमा सिंह ने उठाया बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा.

कौन हैं दोनों सहेलियां
शहर के महुवरिया की रहने वालीं शिखा मिश्रा और पूर्णिमा सिंह बचपन की दोस्त हैं. शिखा मिश्रा बीएचयू से एमए और पूर्णिमा सिंह नगर के केबी पीजी कॉलेज से एमएससी कर रही हैं. कोरोना महामारी के चलते इनके कॉलेज बंद हैं. इस बीच दोनों सहेलियां बरिया घाट पर अक्सर गंगा दर्शन और घूमने आती थीं. तभी दोनों ने घाट पर बच्चों को पढ़ाने के लिए सोचा और आपस में तय किया कि कई शहरों के घाटों पर कार्यक्रम किए जाते हैं. यहां पर माहौल बेहतर होता है. अपने शहर के घाटों का माहौल बदलने के लिए क्यों न पाठशाला और ओपन लाइब्रेरी शुरू किया जाए. इसी को लेकर डेढ़ महीने से यह दोनों सहेलियां घाट पर गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रही हैं.

यूथ को आना होगा आगे
दोनों सहेलियों ने बताया कि यह सभी गरीब बच्चे हैं और सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं. लगभग सात महीने से इनकी पढ़ाई रुकी है. यहां पर हम लोग सभी विषयों हिंदी, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान के साथ ड्राइंग की क्लास चलाते हैं. साथ ही अन्य गतिविधियां भी बच्चों को सिखाई जाती हैं. इनका मानना है कि शिक्षा सबका अधिकार है. हर चीज सरकार नहीं कर सकती है. हम यूथ को आगे आना होगा तभी कुछ हो पाएगा. कॉपी, पेंसिल जिनके पास नहीं होता है, उनको उपलब्ध कराया जाता है. यह सब करने के लिए इन दोनों सहेलियों को घर वालों का भी सपोर्ट प्राप्त है. जिनके बच्चे यहां पर पड़ रहे हैं, उनके अभिभावक इनको धन्यवाद दे रहे हैं कि आप लोगों की वजह से हमारे बच्चों की पढ़ाई हो पा रही है.

मिर्जापुर: कोरोना संकट के चलते देशभर के स्कूल-कॉलेज बंद चल रहे हैं. कुछ स्कूल-कॉलेज तो ऑनलाइन शिक्षा अपने बच्चों को दे रहे हैं, लेकिन गरीब बच्चों के पास मोबाइल और इंटरनेट का पैसा न होने से उनकी पढ़ाई बाधित हो रही है. हालांकि जिले में गरीब बच्चों की शिक्षा को लेकर दो सहेलियों ने नजीर पेश की है. दोनों ने गंगा नदी के घाट को ही पाठशाला बना दी है. शिखा मिश्रा और पूर्णिमा सिंह डेढ़ महीने से प्रतिदिन घाट पर गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहे रही हैं. इन दोनों सहेलियों के घाट पर पहुंचने से पहले बच्चे इंतजार करते रहते हैं. इन गरीब बच्चों की रुकी हुई पढ़ाई को आगे बढ़ाने का काम कर रहीं इन सहेलियों के जज्बे को हर कोई सलाम कर रहा है.

देखें ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

ऑनलाइन पढ़ाई से गरीब बच्चे दूर
कोविड-19 संक्रमण के कारण शिक्षकों और छात्रों ने ऑनलाइन माध्यम से दूरस्थ शिक्षा का सहारा लिया है. वहीं गरीब बच्चे शिक्षा से चूक रहे हैं, क्योंकि उनके पास ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं है. बीते सात महीनों से कोरोना और लॉकडाउन के चलते स्कूल बंद हैं. सरकार की तरफ से ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था तो की गई है, लेकिन कई जगहों पर गरीब बच्चों के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट की सुविधा के अभाव के कारण वह इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं.

घाट पर बनी इनकी पाठशाला
इसी समस्या को देखकर मिर्जापुर जिले की रहने वालीं दो बचपन की दोस्त शिखा मिश्रा और पूर्णिमा सिंह गंगा नदी के बरिया घाट पर पहुंचकर प्रतिदिन इलाके के गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रही हैं. इन्होंने घाट को ही पाठशाला बना दिया है. यहां पर दो घंटे का समय देकर यह दोनों बच्चों को विषय पढ़ाने के साथ ही योगा और खेल भी सिखाती हैं. बच्चों के अभिभावक प्रतिदिन जिम्मेदारी के साथ घाट पर पढ़ाई कराने के लिए भेजते हैं, ताकि बच्चों की पढ़ाई चलती रहे, क्योंकि यह सभी बच्चे सरकारी स्कूल के हैं. इनके पास ऑनलाइन की पढ़ाई के लिए कोई सुविधा नहीं है.

निःशुल्क में बच्चों को मिल रही है शिक्षा
जनपद में स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई तो ऑनलाइन की जा रही है, लेकिन आर्थिक हालात की वजह से ऐसे कई परिवार हैं, जिनके बच्चे अब भी नहीं पढ़ पा रहे हैं. जब तक हालात नहीं सुधरते हैं, इनकी पढ़ाई अधूरी ही रहेगी. स्कूल खुलने का इंतजार है, लेकिन जब तक स्कूल नहीं खुलते हैं, इनकी पढ़ाई बंद रहेगी. सात महीने से बाधित पढ़ाई को आगे बढ़ाने के लिए मिर्जापुर की दो सहेलियों ने आपस में मिलकर गरीब बच्चों को शिक्षा देने का बीड़ा उठाया है.

बरिया घाट पर चल रही पाठशाला में पढ़ते बच्चे.
बरिया घाट पर चल रही पाठशाला में पढ़ते बच्चे.

दोनों सहेलियों ने गंगा घाट की सीढ़ियों को ही पाठशाला बना दिया है. ये दोनों डेढ़ महीने से प्रतिदिन 3 बजे से 5 बजे तक निःशुल्क शिक्षा देती हैं. शुरू में एक दो-बच्चे आते थे. वहींं अब यहां पर 25 बच्चे पढ़ रहे हैं. यह दोनों बच्चों को विषय के साथ ही योगा, खेल और अन्य गतिविधियों से उनका विकास करने की प्रयास कर रही हैं. यहां तक की कभी-कभी 10वीं और 12वीं के भी बच्चे मैथ, इंग्लिश के साथ और विषय लेकर पढ़ने आते हैं. सभी को जितना संभव हो रहा है, यह दोनों मिलकर पढ़ाती हैं.

ओपन लाइब्रेरी खोलने की है तैयारी
मिर्जापुर को शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ाने के लिए शिखा मिश्रा और पूर्णिमा सिंह एक और प्रयास करने जा रही हैं. दोनों सहेलियां मिलकर ओपन लाइब्रेरी खोलने की तैयारी कर रही हैं. इसके लिए किताबों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया है. दो घंटे की निशुल्क पढ़ाई के दौरान घाट पर आने वाले लोग ओपन लाइब्रेरी से निशुल्क किताबों को लेकर पढ़ सकते हैं. इस लाइब्रेरी में शिक्षाप्रद किताबों को रखा जाएगा. एनसीईआरटी की किताबें, वेद, गीता, नावेल के अलावा और सारी किताबें रहेंगी.

घाट के आलवा 'द मंथ ऑफ ड्रीम' पेज पर जाकर ट्विटर या इंस्टाग्राम से लोग किताबें मांग सकते हैं. यह किताबें इस घाट पर दो घंटे की पढ़ाई के बीच मिल जाएंगी. आप एक हफ्ते के लिए घर भी ले जाना चाहते हैं तो ले जा सकते हैं. बस किताब के मूल्य को जमा करना होगा. किताब वापस करने पर आपको पूरा पैसा वापस कर दिया जाएगा. कुल मिलाकर यह निशुल्क लाइब्रेरी रहेगी.

शिखा मिश्रा और पूर्णिमा सिंह ने उठाया बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा.
शिखा मिश्रा और पूर्णिमा सिंह ने उठाया बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा.

कौन हैं दोनों सहेलियां
शहर के महुवरिया की रहने वालीं शिखा मिश्रा और पूर्णिमा सिंह बचपन की दोस्त हैं. शिखा मिश्रा बीएचयू से एमए और पूर्णिमा सिंह नगर के केबी पीजी कॉलेज से एमएससी कर रही हैं. कोरोना महामारी के चलते इनके कॉलेज बंद हैं. इस बीच दोनों सहेलियां बरिया घाट पर अक्सर गंगा दर्शन और घूमने आती थीं. तभी दोनों ने घाट पर बच्चों को पढ़ाने के लिए सोचा और आपस में तय किया कि कई शहरों के घाटों पर कार्यक्रम किए जाते हैं. यहां पर माहौल बेहतर होता है. अपने शहर के घाटों का माहौल बदलने के लिए क्यों न पाठशाला और ओपन लाइब्रेरी शुरू किया जाए. इसी को लेकर डेढ़ महीने से यह दोनों सहेलियां घाट पर गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रही हैं.

यूथ को आना होगा आगे
दोनों सहेलियों ने बताया कि यह सभी गरीब बच्चे हैं और सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं. लगभग सात महीने से इनकी पढ़ाई रुकी है. यहां पर हम लोग सभी विषयों हिंदी, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान के साथ ड्राइंग की क्लास चलाते हैं. साथ ही अन्य गतिविधियां भी बच्चों को सिखाई जाती हैं. इनका मानना है कि शिक्षा सबका अधिकार है. हर चीज सरकार नहीं कर सकती है. हम यूथ को आगे आना होगा तभी कुछ हो पाएगा. कॉपी, पेंसिल जिनके पास नहीं होता है, उनको उपलब्ध कराया जाता है. यह सब करने के लिए इन दोनों सहेलियों को घर वालों का भी सपोर्ट प्राप्त है. जिनके बच्चे यहां पर पड़ रहे हैं, उनके अभिभावक इनको धन्यवाद दे रहे हैं कि आप लोगों की वजह से हमारे बच्चों की पढ़ाई हो पा रही है.

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