मिर्जापुरः शक्ति आराधाना के लिए विंध्य पर्वत पौराणिक काल से ही प्रसिद्ध है. यहां पर मां विंध्यवासिनी के साथ मां अष्टभुजा और महाकाली का मंदिर विराजमान है. महाकाली मंदिर को लोग काली खोह के नाम से ज्यादा जानते हैं. इस मंदिर का तंत्र साधना के लिए विशेष महत्व है. काली खोह मंदिर में तंत्र साधना के लिए तांत्रिक नवरात्र की सप्तमी तिथि को मां के सातवें स्वरूप कालरात्रि की साधना करते हैं.
देवताओं के आग्रह पर किया था रूप धारण
आम भक्त भी पूरी श्रद्धा के साथ मां का दर्शन करते हैं. कहा जाता है कि यहां पर तंत्र विद्याओं की बड़ी आसानी से सिद्धि हो जाती है, इस वजह से तांत्रिकों का यहां बड़ा जमावड़ा लगता है. भक्त यहां पर अपनी मनोकामना पूर्ण कराने के लिए मां के दर्शन करने आते हैं. इस मंदिर की सबसे अलग विशेषता है कि मां का मुख यहां पर खेचरी मुद्रा में यानी ऊपर की तरफ है. पुराणों के अनुसार जब रक्तबीज दानव ने स्वर्ग लोक पर कब्जा कर सभी देवताओं को वहां से भगा दिया था. तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश सहित अन्य देवताओं की प्रार्थना पर मां विंध्यवासिनी ने महाकाली का ऐसा रूप धारण किया था.
मां के मुंह में प्रसाद का नहीं चलता पता
रक्तबीज नामक दानव को ब्रह्मा जी का वरदान था कि अगर उसका एक बूंद खून धरती पर गिरेगा तो उससे लाखों दानव पैदा होंगे. इसी दानव के वध हेतु महाकाली ने रक्त पान करने के लिए अपना मुंह खोल दिया जिससे एक बूंद भी खून धरती पर न गिरने पाये. रक्तबीज नामक दानव का वध करने के बाद से मां का एक रूप ऐसा भी है. कहा जाता है इस मुख में चाहे जितना प्रसाद चढ़ा दीजिए कहां जाता है आज तक इसका पता कोई नहीं कर पाया.
तीन रूपों में विराजमान हैं मां
विंध्य पर्वत पर स्थित मां विंध्यवासिनी का मंदिर देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है. यहां पर माता अपने तीन रूप में विराजमान हैं. महालक्ष्मी के रूप में मां विंध्यवासिनी, महाकाली के रूप में मां कालिखोह की देवी और महासरस्वती के रूप में मां अष्टभुजा देवी विराजमान हैं. यही कारण है कि इसे महा शक्तियों का त्रिकोण भी कहा जाता है, जो श्रद्धालु यहां मां से कोई कामना करता है, मां उसे जरूर पूरा करती हैं.