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मेरठ के इस गांव में मुंह को नुकीले औजारों से बांधकर इस तरह मनाते हैं होली, जानकर दंग रह जाएंगे आप - etv bharat up news

मेरठ के बिजौली गांव में होली के दिन तख्त यात्रा में युवा अपने मुंह को नुकीले औजारों से बींध लेते हैं.

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तख्त यात्रा
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Published : Mar 18, 2022, 10:21 PM IST

मेरठ. होली का पर्व देश में धूमधाम से मनाया जाता हैं. साथ ही दशकों से चली आ रही परंपराओं का भा पालन किया जाता है. कुछ ऐसा ही अनोखा नजारा जनपद के बिजौली गांव में देखने को मिला. यहां हर साल होली के दिन तख्त यात्रा निकाली जाती है.

अहम बात यह है कि इस यात्रा में युवा अपने मुंह को नुकीले औजारो से बांध लेते हैं. इसके बाद तख्त पर खड़े होकर पूरे गांव में उनका जुलूस निकाला जाता है. मान्यता है कि इस तख्त पर जो भी मन्नत सच्चे मन से मांगी जाती है, वह पूरी होती है. यह भी मान्यता है कि यदि यात्रा नहीं निकाली गई तो अनर्थ भी हो सकता है.

तख्त यात्रा

बिजौली गांव वासियों के मुताबिक यह परंपरा लगभग 500 साल पुरानी है. होली के दिन इस निर्वहन करते हुए गांव की 6 दिशाओं से 6 तख्त निकाले जाते हैं. इस पर गांव के ही कुछ युवाओं को नुकीले औजारो से बांधकर तख्त पर खड़ा किया जाता है और इन युवाओं को यात्रा के दौरान देवता स्वरूप माना जाता है.

यही नहीं, उनकी पूजा की जाती है. यह जुलूस बाबा गंगापुरी के समाधि स्थल पर समाप्त होता है. इसके बाद यह नुकीले औजार इन युवाओं के चेहरे से निकाले जाते हैं. हैरानी की बात यह है कि लोहे औजारों को शरीर के आर पार करने के बावजूद कोई भी इन्फेक्शन नहीं होता ना ही किसी दवा की जरूरत पड़ती है.

यह भी पढ़ें- मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 25 मार्च को लेंगे शपथ, शाम चार बजे इकाना स्टेडियम में होगा आयोजन


वहीं, ग्रामीणों ने बताया कि करीब 500 साल पहले बिजौली में आपदा के समय महाराज के कहने पर बाबा गंगापुरी ने इसी तरीके से पूजा अर्चना की थी. इसके बाद से आज तक यह परंपरा चली आ रही है. एक बार गांव में इस परंपरा को रोका भी गया लेकिन ग्रामीणों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा. तब से अब कोई इस परंपरा को रोकने की सोचता भी नहीं है.

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मेरठ. होली का पर्व देश में धूमधाम से मनाया जाता हैं. साथ ही दशकों से चली आ रही परंपराओं का भा पालन किया जाता है. कुछ ऐसा ही अनोखा नजारा जनपद के बिजौली गांव में देखने को मिला. यहां हर साल होली के दिन तख्त यात्रा निकाली जाती है.

अहम बात यह है कि इस यात्रा में युवा अपने मुंह को नुकीले औजारो से बांध लेते हैं. इसके बाद तख्त पर खड़े होकर पूरे गांव में उनका जुलूस निकाला जाता है. मान्यता है कि इस तख्त पर जो भी मन्नत सच्चे मन से मांगी जाती है, वह पूरी होती है. यह भी मान्यता है कि यदि यात्रा नहीं निकाली गई तो अनर्थ भी हो सकता है.

तख्त यात्रा

बिजौली गांव वासियों के मुताबिक यह परंपरा लगभग 500 साल पुरानी है. होली के दिन इस निर्वहन करते हुए गांव की 6 दिशाओं से 6 तख्त निकाले जाते हैं. इस पर गांव के ही कुछ युवाओं को नुकीले औजारो से बांधकर तख्त पर खड़ा किया जाता है और इन युवाओं को यात्रा के दौरान देवता स्वरूप माना जाता है.

यही नहीं, उनकी पूजा की जाती है. यह जुलूस बाबा गंगापुरी के समाधि स्थल पर समाप्त होता है. इसके बाद यह नुकीले औजार इन युवाओं के चेहरे से निकाले जाते हैं. हैरानी की बात यह है कि लोहे औजारों को शरीर के आर पार करने के बावजूद कोई भी इन्फेक्शन नहीं होता ना ही किसी दवा की जरूरत पड़ती है.

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वहीं, ग्रामीणों ने बताया कि करीब 500 साल पहले बिजौली में आपदा के समय महाराज के कहने पर बाबा गंगापुरी ने इसी तरीके से पूजा अर्चना की थी. इसके बाद से आज तक यह परंपरा चली आ रही है. एक बार गांव में इस परंपरा को रोका भी गया लेकिन ग्रामीणों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा. तब से अब कोई इस परंपरा को रोकने की सोचता भी नहीं है.

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