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Meerut में देवलोक के वृक्ष कल्पतरु को संजीवनी देने के लिए हो रहा ये काम, ये है मान्यता

मेरठ में देवलोक के वृक्ष कल्पतरु को संजीवनी देने के लिए खास काम हो रहा है. चलिए जानते हैं इस वृक्ष से जुड़ी मान्यता और अन्य जानकारियों के बारे में.

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Published : Feb 6, 2023, 12:29 PM IST

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मेरठ: आपको जानकर हैरानी होगी कि देवलोक का वृक्ष कल्पतरू यानी कल्पवृक्ष मेरठ में भी हैं. इस वृक्ष को लेकर मान्यता है कि इसके नीचे जो भी इच्छा की जाती है वह पूरी जरूर होती है. इस विलुप्त हो रहे वृक्ष को लेकर शोध भी किया जा रहा है. यह शोध मेरठ की एक निजी यूनिवर्सिटी कर रही है. इस शोध के जरिए इस वृक्ष को संजीवनी देने का काम हो रहा है.

मेरठ में कल्पतरु वृक्ष को लेकर किया जा रहा शोध.

दरअसल, मेरठ की शोभित यूनिवर्सिटी में विदेश से मंगवाकर कल्पतरु वृक्ष लगवाया गया है. इस बारे में कुलाधिपति कुंवर शेखर बिजेंद्र ने बताया कि इस वृक्ष के संरक्षण पर शोध किया जा रहा है. शोध में समय लगता है. पता लगाया जा रहा है कि कैसे और कल्पतरु पौधे को उगाया जा सकता है. आम लोगों तक इसे कैसे पहुंचाया जा सकता है साथ ही इसका संरक्षण कैसे किया जाए. ऐसे कई बिंदुओं को लेकर इस पर शोध किया है. इसका उद्देश्य इस वृक्ष का संरक्षण है. उन्होंने कहा कि इस वृक्ष को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं हैं. हमारे प्राचीन ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि तीन पहलुओं पर कार्य कर रहे हैं. पहला पहलू यह है कि इसे इच्छा पूर्ण करने वाला वृक्ष कहा गया है. कहीं न कहीं इसके अंदर या तो मेडिकली रूप में या फिर किसी अन्य रूप में कोई न कोई ऐसा विज्ञान रहा होगा जिस कारण हमारे पूर्वजों ने इसे इच्छा वृक्ष माना. इस वृक्ष पर हमारा बॉयो मेडिकल, मनोविज्ञान और माइक्रोबायोलॉजी विभाग कार्य कर रहे हैं. यह लुप्त प्रायः प्रजाति का वृक्ष है. हम यह भी पता लगा रहे हैं कि क्या इसे टिश्यू कल्चर से बनाया जा सकता है. हम इसकी जड़ों को उगाने पर भी काम कर रहे हैं ताकि नई जड़े निकलें और यह पौधा तैयार किया जा सके. उन्होंने कहा कि हमारा मानना है कि यह वृक्ष हर घर में होना चाहिए ताकि सभी की इच्छाएं पूरी हो सकें. उन्होंने कहा कि इस वृक्ष पर कुलपति एके गर्ग के नेतृत्व में काम चल रहा है. इतना ही नहीं विश्वविद्यालय में एक खास लेबोरेट्री तैयार की गई है जहां कल्पतरु के पौधे विशेष विधि से विकसित करने की कोशिश हो रही है.

कल्पतरु की रिसर्च के लिए बनाया स्टडी ग्रुप
उन्होंने बताया कि इसके लिए एक स्टडी ग्रुप भी बनाया गया है जो कि यह देख रहा है कि कल्पतरु के नीचे बैठने से हमारा मेंटल स्टेट्स बदलता है या फिर कोई और ऊर्जा मिलती है. इस वर्ष इस वृक्ष को लेकर शोधपत्र प्रकाशित होने की संभावना है.

देवलोक का वृक्ष कहा जाता है कल्पतरु
मान्यता है कि कल्पतरु को देवलोक का वृक्ष कहा जाता है. इसे कल्पद्रुप, कल्पतरु, सुरतरु देवतरु इत्यादि नामों से जाना जाता है. पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में कल्पवृक्ष भी शामिल था. यह इंद्र को दे दिया गया था और इंद्र ने इसकी स्थापना सुरकानन में कर दी थी, ऐसा पद्मपुराण में भी वर्णित है. जनश्रुति यह भी है कि कल्पवृक्ष से जिस वस्तु की भी याचना की जाए वह इच्छा पूर्ण हो जाती है. मान्यता है कि इस वृक्ष का नाश कल्पांत तक नहीं होता.

रुद्राक्ष पर भी किया जा रहा शोध
मेरठ में बीते दस साल से इस विश्वविद्यालय में रुद्राक्ष पर भी रिसर्च जारी है. यहां एक मुखी से लेकर चौदह मुखी रुद्राक्ष पर शोध किया गया है. रुद्राक्ष पर देश की पहली पीएचडी करने वाली एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शिवा हैं. रुद्राक्ष पर हुए शोध में यह सामने आया है कि यह इलेक्ट्रो मैगनेटिक बिहेवियर पर भी काम करता है. रुद्राक्ष की मैग्नेटिक वैल्यू बहुत ज्यादा है. इसे पहनने पर सोचने, लिखने, प्रतिक्रिया देने और याद्दाश्त की क्षमता को लेकर सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं.

(डिस्क्लेमर: यह खबर पौराणिक मान्यता पर आधारित है, ईटीवी भारत इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

ये भी पढ़ेंः Varanasi News: मंदिर में अराजक तत्वों ने खंडित की देव प्रतिमाएं, तनाव

मेरठ: आपको जानकर हैरानी होगी कि देवलोक का वृक्ष कल्पतरू यानी कल्पवृक्ष मेरठ में भी हैं. इस वृक्ष को लेकर मान्यता है कि इसके नीचे जो भी इच्छा की जाती है वह पूरी जरूर होती है. इस विलुप्त हो रहे वृक्ष को लेकर शोध भी किया जा रहा है. यह शोध मेरठ की एक निजी यूनिवर्सिटी कर रही है. इस शोध के जरिए इस वृक्ष को संजीवनी देने का काम हो रहा है.

मेरठ में कल्पतरु वृक्ष को लेकर किया जा रहा शोध.

दरअसल, मेरठ की शोभित यूनिवर्सिटी में विदेश से मंगवाकर कल्पतरु वृक्ष लगवाया गया है. इस बारे में कुलाधिपति कुंवर शेखर बिजेंद्र ने बताया कि इस वृक्ष के संरक्षण पर शोध किया जा रहा है. शोध में समय लगता है. पता लगाया जा रहा है कि कैसे और कल्पतरु पौधे को उगाया जा सकता है. आम लोगों तक इसे कैसे पहुंचाया जा सकता है साथ ही इसका संरक्षण कैसे किया जाए. ऐसे कई बिंदुओं को लेकर इस पर शोध किया है. इसका उद्देश्य इस वृक्ष का संरक्षण है. उन्होंने कहा कि इस वृक्ष को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं हैं. हमारे प्राचीन ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि तीन पहलुओं पर कार्य कर रहे हैं. पहला पहलू यह है कि इसे इच्छा पूर्ण करने वाला वृक्ष कहा गया है. कहीं न कहीं इसके अंदर या तो मेडिकली रूप में या फिर किसी अन्य रूप में कोई न कोई ऐसा विज्ञान रहा होगा जिस कारण हमारे पूर्वजों ने इसे इच्छा वृक्ष माना. इस वृक्ष पर हमारा बॉयो मेडिकल, मनोविज्ञान और माइक्रोबायोलॉजी विभाग कार्य कर रहे हैं. यह लुप्त प्रायः प्रजाति का वृक्ष है. हम यह भी पता लगा रहे हैं कि क्या इसे टिश्यू कल्चर से बनाया जा सकता है. हम इसकी जड़ों को उगाने पर भी काम कर रहे हैं ताकि नई जड़े निकलें और यह पौधा तैयार किया जा सके. उन्होंने कहा कि हमारा मानना है कि यह वृक्ष हर घर में होना चाहिए ताकि सभी की इच्छाएं पूरी हो सकें. उन्होंने कहा कि इस वृक्ष पर कुलपति एके गर्ग के नेतृत्व में काम चल रहा है. इतना ही नहीं विश्वविद्यालय में एक खास लेबोरेट्री तैयार की गई है जहां कल्पतरु के पौधे विशेष विधि से विकसित करने की कोशिश हो रही है.

कल्पतरु की रिसर्च के लिए बनाया स्टडी ग्रुप
उन्होंने बताया कि इसके लिए एक स्टडी ग्रुप भी बनाया गया है जो कि यह देख रहा है कि कल्पतरु के नीचे बैठने से हमारा मेंटल स्टेट्स बदलता है या फिर कोई और ऊर्जा मिलती है. इस वर्ष इस वृक्ष को लेकर शोधपत्र प्रकाशित होने की संभावना है.

देवलोक का वृक्ष कहा जाता है कल्पतरु
मान्यता है कि कल्पतरु को देवलोक का वृक्ष कहा जाता है. इसे कल्पद्रुप, कल्पतरु, सुरतरु देवतरु इत्यादि नामों से जाना जाता है. पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में कल्पवृक्ष भी शामिल था. यह इंद्र को दे दिया गया था और इंद्र ने इसकी स्थापना सुरकानन में कर दी थी, ऐसा पद्मपुराण में भी वर्णित है. जनश्रुति यह भी है कि कल्पवृक्ष से जिस वस्तु की भी याचना की जाए वह इच्छा पूर्ण हो जाती है. मान्यता है कि इस वृक्ष का नाश कल्पांत तक नहीं होता.

रुद्राक्ष पर भी किया जा रहा शोध
मेरठ में बीते दस साल से इस विश्वविद्यालय में रुद्राक्ष पर भी रिसर्च जारी है. यहां एक मुखी से लेकर चौदह मुखी रुद्राक्ष पर शोध किया गया है. रुद्राक्ष पर देश की पहली पीएचडी करने वाली एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शिवा हैं. रुद्राक्ष पर हुए शोध में यह सामने आया है कि यह इलेक्ट्रो मैगनेटिक बिहेवियर पर भी काम करता है. रुद्राक्ष की मैग्नेटिक वैल्यू बहुत ज्यादा है. इसे पहनने पर सोचने, लिखने, प्रतिक्रिया देने और याद्दाश्त की क्षमता को लेकर सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं.

(डिस्क्लेमर: यह खबर पौराणिक मान्यता पर आधारित है, ईटीवी भारत इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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