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मेरठ: धान की फसल में अधिक उपज के लिए काम आ रही ये देसी तकनीक

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Published : Jul 16, 2020, 10:07 PM IST

उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में किसान बासमती धान की इन दिनों रोपाई कर रहे हैं. किसान फसल में अधिक बढ़वार के लिए कई रसायनों का प्रयोग करते हैं. इसको लेकर बीईडीएफ के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रितेश शर्मा ने किसानों को रसायनों का प्रयोग नहीं करने की सलाह दी है.

बासमती धान की फसल की रोपाई
बासमती धान की फसल की रोपाई

मेरठ: बासमती धान में अधिक बढ़वार के लिए किसान कई प्रकार की रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, जबकि कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अधिक फुटाव के लिए किसी भी रसायन की संस्तुति नहीं की गई है. बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान के कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसान खेत में देसी पाटा तकनीक का इस्तेमाल करें तो फसल में फुटाव अधिक होगा.

बासमती धान की फसल की रोपाई.
बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान (बीईडीएफ) के प्रभारी और प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रितेश शर्मा ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि पाटा तकनीक संस्थान द्वारा ही विकसित की गई है. इस तकनीक का इस्तेमाल धान के खेत में करने से आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए हैं. उन्होंने बताया कि खेत में देसी पाटा चलाने से न केवल फसल में अधिक फुटाव होता है, बल्कि किसान जो रसायन फुटाव के लिए इस्तेमाल करते हैं उसका भी खर्च बच जाता है.
डॉ. रितेश शर्मा ने बताया कि धान की रोपाई के 15 से 25 दिन के बीच एक हल्का पटाया या लकड़ी का कोई सीधा लट्ठा लेकर खेत में एक या दो बार चलाना चाहिए. इस बात का ध्यान रखना होगा कि जिस समय खेत में पाटा चलाया जा रहा है, उस वक्त खेत में पानी भरा होना चाहिए.
पाटा चलाने से होंगे ये फायदे
डाॅ. रितेश शर्मा ने बताया कि बासमती धान के खेत में पाटा चलाने से धान में कल्ले अधिक निकलते हैं. मिट्टी की ऊपरी सतह पर पाटा चलाने से भूमि में वायु का संचार अधिक होता है, जिसका सीधा लाभ फसल को होता है. यही कारण है कि धान की जड़ों में तेजी से और अधिक विकास होता है. इस तकनीक का इस्तेमाल करने से खेत में दरार नहीं पड़ती और पानी की बचत होती है.
कीट से भी होता है बचाव
धान की फसल में लगने वाले पत्ती लपेटक और तना छेदक कीट से भी प्रारंभिक अवस्था में इस तकनीक का इस्तेमाल करने से बचाव होता है. पाटा तकनीक का इस्तेमाल करने से छोटे-छोटे खरपतवार नष्ट हो जाते हैं. पूरे पौधे की बढ़वार होने से अधिक उपज प्राप्त होती है.
किसानों को हो रहा लाभ
डाॅ. रितेश शर्मा ने बताया कि इस तकनीक को वेस्ट यूपी के किसानों के अलावा पंजाब और हरियाणा के किसान भी धीरे-धीरे करने लगे हैं. किसानों को इस तकनीक का इस्तेमाल करने से काफी लाभ हो रहा है. किसानों को रिसर्च फार्म पर भी इस तकनीक का इस्तेमाल कैसे किया जाए यह बताया जा रहा है.

मेरठ: बासमती धान में अधिक बढ़वार के लिए किसान कई प्रकार की रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, जबकि कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अधिक फुटाव के लिए किसी भी रसायन की संस्तुति नहीं की गई है. बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान के कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसान खेत में देसी पाटा तकनीक का इस्तेमाल करें तो फसल में फुटाव अधिक होगा.

बासमती धान की फसल की रोपाई.
बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान (बीईडीएफ) के प्रभारी और प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रितेश शर्मा ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि पाटा तकनीक संस्थान द्वारा ही विकसित की गई है. इस तकनीक का इस्तेमाल धान के खेत में करने से आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए हैं. उन्होंने बताया कि खेत में देसी पाटा चलाने से न केवल फसल में अधिक फुटाव होता है, बल्कि किसान जो रसायन फुटाव के लिए इस्तेमाल करते हैं उसका भी खर्च बच जाता है.
डॉ. रितेश शर्मा ने बताया कि धान की रोपाई के 15 से 25 दिन के बीच एक हल्का पटाया या लकड़ी का कोई सीधा लट्ठा लेकर खेत में एक या दो बार चलाना चाहिए. इस बात का ध्यान रखना होगा कि जिस समय खेत में पाटा चलाया जा रहा है, उस वक्त खेत में पानी भरा होना चाहिए.
पाटा चलाने से होंगे ये फायदे
डाॅ. रितेश शर्मा ने बताया कि बासमती धान के खेत में पाटा चलाने से धान में कल्ले अधिक निकलते हैं. मिट्टी की ऊपरी सतह पर पाटा चलाने से भूमि में वायु का संचार अधिक होता है, जिसका सीधा लाभ फसल को होता है. यही कारण है कि धान की जड़ों में तेजी से और अधिक विकास होता है. इस तकनीक का इस्तेमाल करने से खेत में दरार नहीं पड़ती और पानी की बचत होती है.
कीट से भी होता है बचाव
धान की फसल में लगने वाले पत्ती लपेटक और तना छेदक कीट से भी प्रारंभिक अवस्था में इस तकनीक का इस्तेमाल करने से बचाव होता है. पाटा तकनीक का इस्तेमाल करने से छोटे-छोटे खरपतवार नष्ट हो जाते हैं. पूरे पौधे की बढ़वार होने से अधिक उपज प्राप्त होती है.
किसानों को हो रहा लाभ
डाॅ. रितेश शर्मा ने बताया कि इस तकनीक को वेस्ट यूपी के किसानों के अलावा पंजाब और हरियाणा के किसान भी धीरे-धीरे करने लगे हैं. किसानों को इस तकनीक का इस्तेमाल करने से काफी लाभ हो रहा है. किसानों को रिसर्च फार्म पर भी इस तकनीक का इस्तेमाल कैसे किया जाए यह बताया जा रहा है.
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