मथुरा: 1965 और 1971 के युद्ध में दुश्मनों को परास्त करने वाले वीर सपूत ग्रेनेडियर छतर सिंह की वीर गाथा याद करके शहीद के परिजन आज भी भावुक हो जाते हैं. दशकों बीत जाने के बाद भी शहीद के पैतृक गांव में स्मारक नहीं बन सका है. वर्षों की आस आज तक अधूरी ही है. स्मारक बनवाने के लिए शहीद के परिजन जिला मुख्यालय पर अधिकारियों के चक्कर काट चुके हैं, लेकिन अभी तक स्मारक नहीं बन सका है.
दशकों से आस अधूरी
मथुरा में मुख्यालय गोवर्धन तहसील स्थित भवनपुरा गांव निवासी शहीद ग्रेनेडियर छतर सिंह का स्मारक बनवाने के लिए दशकों से आस आज भी अधूरी है. स्मारक बनवाने के लिए शहीद के परिजन अधिकारी कार्यालयों के चक्कर काट चुका है, लेकिन आज तक पैतृक गांव में शहीद का स्मारक नहीं बन पाया.
1965 और 1971 के युद्ध में दुश्मनों को चटाई धूल
ग्रेनेडियर बटालियन में सिपाही के पद पर तैनात छतर सिंह ने 1965 और 1971 के युद्ध में दुश्मनों से लोहा लिया. दुश्मनों के कई बंकरों को तबाह करते हुए देश की रक्षा करते हुए 11 दिसंबर, 1971 को मातृभूमि पर अपने प्राण न्योछावर कर दिए. शहीद छतर सिंह की पुरानी यादों को याद करके परिजन आज भी भावुक हो जाते हैं. शहीद की वीर गाथाएं परिवार में कहानी के तौर पर सुनाई जाती हैं. छतर सिंह अपने परिवार में बहादुर और पढ़ाई में होनहार थे.
शहीद की पत्नी रामा देवी ने बताया कि छतर सिंह ने सन 1965 और 1971 के युद्ध में दुश्मनों को कड़ी टक्कर दी थी. देश की रक्षा करते हुए छतर सिंह शहीद हो गए थे. लेकिन आज तक गांव में शहीद का स्मारक नहीं बना है. उन्होंने बताया कि कई बार अधिकारियों के चक्कर काटे, लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला.
मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गए पिता
शहीद के बेटे रविंदर ने बताया कि पिता के शहीद स्मारक बनवाने के लिए अधिकारियों के कार्यालय में जाकर प्रार्थना पत्र दिए गए, लेकिन आज तक गांव में कोई स्मारक नहीं बना. पिता 1965 और 1971 के युद्ध में मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे.