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श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मामला पहुंचा कोर्ट, शाही ईदगाह मस्जिद हटाने की मांग - मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि

उत्तर प्रदेश के मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर को शाही ईदगाह मस्जिद से मुक्त कराने के लिए मांग तेज होने लगी है. इस संबंध में लखनऊ के पांच अधिवक्ताओं ने मथुरा जिला एवं सत्र न्यायालय में याचिका दाखिल की है. इस याचिका पर सोमवार सुबह 11 बजे सिविल जज की अदालत में सुनवाई होगी.

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श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामला
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Published : Sep 27, 2020, 7:04 PM IST

मथुरा : अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू हो चुका है. अब मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मस्थान का मामला सुर्खियों में है. बजरंग दल समेत कई हिंदू संगठनों ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान को मस्जिद मुक्त बनाने के लिए आंदोलन की बात कही है. इसी क्रम में लखनऊ की अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री सहित पांच अधिवक्ताओं ने मथुरा जिला एवं सत्र न्यायालय में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को मस्जिद मुक्त बनाने के लिए शुक्रवार को याचिका दाखिल की. इस याचिका में श्रीकृष्ण जन्मस्थान स्थित मंदिर को ईदगाह मुक्त बनाने की बात कही गई है. सोमवार को इस मामले में सुनवाई होगी.

श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मामला पहुंचा कोर्ट.

यह है दावा
कंस मथुरा का राजा हुआ करता था. श्रीकृष्ण जन्मस्थान का प्राचीन केशव देव मंदिर जो पूर्व में मलपुरा के नाम से जाना जाता था. चार किलोमीटर का एरिया केशव देव की संपत्ति मानी जाती है. प्राचीन केशव देव मंदिर के पास कंस का कारागार हुआ करता था. 5247 वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र ब्रजनाभ ने उसी स्थान पर केशव देव मंदिर की प्रथम स्थापना की. मुगल साम्राज्य के दौरान औरंगजेब ने 1669 में मंदिर को ध्वस्त कर दिया और शाही ईदगाह मस्जिद बनवाई गई, जोकि वर्तमान में बनी हुई है.

सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा बनवाए गए मंदिरों को मोहम्मद गजनवी ने 1017 ईसवीं में आक्रमण करने के बाद मंदिर तोड़े दिए थे. विक्रमादित्य ने दोबारा मंदिर का निर्माण कराया. संस्कृति और कला के बड़े केंद्र के रूप में स्थापित किया गया. हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म और जैन धर्म का भी मथुरा में विकास हुआ. मथुरा में तीसरी बार मंदिर सिकंदर लोदी के शासनकाल में तोड़े गए थे. शासक जहांगीर के शासनकाल में चौथी बार मंदिर का निर्माण कराया गया, लेकिन मुगल शासक औरंगजेब ने 1669 में मथुरा के मंदिरों को तुड़वाया और मस्जिद बनवाई गई.

ब्रिटिश शासनकाल में 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनीमल ने इस जगह को खरीदा और 1940 में पंडित मदन मोहन मालवीय जब मथुरा आए तो श्रीकृष्ण जन्म स्थान की दुर्दशा को देखकर दुखी हुए और स्थानीय लोगों ने भी मदन मोहन मालवीय से कहा कि यहां भव्य मंदिर बनना चाहिए. मदन मोहन मालवीय ने मथुरा के उद्योगपति जुगल किशोर बिरला को पत्र लिखकर जन्मभूमि पुनरुद्धार के लिए पत्र लिखा. 21 फरवरी 1951 में श्रीकृष्ण जन्म भूमि ट्रस्ट की स्थापना की गई. 12 अक्टूबर 1968 को कटरा केशव देव मंदिर की जमीन का समझौता श्रीकृष्ण जन्मस्थान सोसायटी द्वारा किया गया. 20 जुलाई 1973 को यह जमीन डिक्री की गई.

कोर्ट का फैसला स्वीकार
प्राचीन केशव देव मंदिर अध्यक्ष सोहन लाल शर्मा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता द्वारा मालिकाना हक को लेकर कोर्ट में याचिका डाली गई है. प्राचीन केशव देव मंदिर जो वर्तमान में उपस्थित है, वह पूरा क्षेत्र मलपुरा के नाम से जाना जाता था. जोकि राजा कंस का कारागार हुआ करता था. यही भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली भी है. पूरा परिसर 13.27 एकड़ में बना हुआ है. डेढ़ एकड़ में शाही ईदगाह मस्जिद है. उसे हटाने को लेकर कोर्ट में याचिका डाली गई है. प्राचीन काल से ही इतिहास रहा है कि भारत पर मुगल शासकों ने साम्राज्य किया और मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनवाई गई. इस मामले में कोर्ट का जो फैसला आएगा, वही मान्य होगा.

विदेशी आक्रांताओं ने तोड़ा मंदिर
इतिहासकार शत्रुघ्न शर्मा ने बताया कि प्रथम ईसा पूर्व में शकों के राजा शोडास के शासनकाल में बसु नामक सेठ ने कृष्ण जन्मभूमि मंदिर का निर्माण कराया. विदेशी आक्रांताओं ने आकर मंदिर को तोड़ दिया. दूसरी बार पांचवीं सदी में गुप्तकाल के शासक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया गया जोकि पूरे एशिया में प्रसिद्ध था. 1017 में मोहम्मद गजनवी ने भारत में 17 बार आक्रमण किया. नौवां आक्रमण श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर हुआ था और मंदिर को तहस-नहस कर दिया. मंदिर में से 5 सोने की मूर्तियां गजनवी अपने साथ ले गया. 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान को तोड़ा था और शाही ईदगाह मस्जिद बना दी गई, जोकि वर्तमान में भी स्थापित है.

मथुरा : अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू हो चुका है. अब मथुरा का श्रीकृष्ण जन्मस्थान का मामला सुर्खियों में है. बजरंग दल समेत कई हिंदू संगठनों ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान को मस्जिद मुक्त बनाने के लिए आंदोलन की बात कही है. इसी क्रम में लखनऊ की अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री सहित पांच अधिवक्ताओं ने मथुरा जिला एवं सत्र न्यायालय में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को मस्जिद मुक्त बनाने के लिए शुक्रवार को याचिका दाखिल की. इस याचिका में श्रीकृष्ण जन्मस्थान स्थित मंदिर को ईदगाह मुक्त बनाने की बात कही गई है. सोमवार को इस मामले में सुनवाई होगी.

श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मामला पहुंचा कोर्ट.

यह है दावा
कंस मथुरा का राजा हुआ करता था. श्रीकृष्ण जन्मस्थान का प्राचीन केशव देव मंदिर जो पूर्व में मलपुरा के नाम से जाना जाता था. चार किलोमीटर का एरिया केशव देव की संपत्ति मानी जाती है. प्राचीन केशव देव मंदिर के पास कंस का कारागार हुआ करता था. 5247 वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र ब्रजनाभ ने उसी स्थान पर केशव देव मंदिर की प्रथम स्थापना की. मुगल साम्राज्य के दौरान औरंगजेब ने 1669 में मंदिर को ध्वस्त कर दिया और शाही ईदगाह मस्जिद बनवाई गई, जोकि वर्तमान में बनी हुई है.

सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा बनवाए गए मंदिरों को मोहम्मद गजनवी ने 1017 ईसवीं में आक्रमण करने के बाद मंदिर तोड़े दिए थे. विक्रमादित्य ने दोबारा मंदिर का निर्माण कराया. संस्कृति और कला के बड़े केंद्र के रूप में स्थापित किया गया. हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म और जैन धर्म का भी मथुरा में विकास हुआ. मथुरा में तीसरी बार मंदिर सिकंदर लोदी के शासनकाल में तोड़े गए थे. शासक जहांगीर के शासनकाल में चौथी बार मंदिर का निर्माण कराया गया, लेकिन मुगल शासक औरंगजेब ने 1669 में मथुरा के मंदिरों को तुड़वाया और मस्जिद बनवाई गई.

ब्रिटिश शासनकाल में 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनीमल ने इस जगह को खरीदा और 1940 में पंडित मदन मोहन मालवीय जब मथुरा आए तो श्रीकृष्ण जन्म स्थान की दुर्दशा को देखकर दुखी हुए और स्थानीय लोगों ने भी मदन मोहन मालवीय से कहा कि यहां भव्य मंदिर बनना चाहिए. मदन मोहन मालवीय ने मथुरा के उद्योगपति जुगल किशोर बिरला को पत्र लिखकर जन्मभूमि पुनरुद्धार के लिए पत्र लिखा. 21 फरवरी 1951 में श्रीकृष्ण जन्म भूमि ट्रस्ट की स्थापना की गई. 12 अक्टूबर 1968 को कटरा केशव देव मंदिर की जमीन का समझौता श्रीकृष्ण जन्मस्थान सोसायटी द्वारा किया गया. 20 जुलाई 1973 को यह जमीन डिक्री की गई.

कोर्ट का फैसला स्वीकार
प्राचीन केशव देव मंदिर अध्यक्ष सोहन लाल शर्मा ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता द्वारा मालिकाना हक को लेकर कोर्ट में याचिका डाली गई है. प्राचीन केशव देव मंदिर जो वर्तमान में उपस्थित है, वह पूरा क्षेत्र मलपुरा के नाम से जाना जाता था. जोकि राजा कंस का कारागार हुआ करता था. यही भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली भी है. पूरा परिसर 13.27 एकड़ में बना हुआ है. डेढ़ एकड़ में शाही ईदगाह मस्जिद है. उसे हटाने को लेकर कोर्ट में याचिका डाली गई है. प्राचीन काल से ही इतिहास रहा है कि भारत पर मुगल शासकों ने साम्राज्य किया और मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनवाई गई. इस मामले में कोर्ट का जो फैसला आएगा, वही मान्य होगा.

विदेशी आक्रांताओं ने तोड़ा मंदिर
इतिहासकार शत्रुघ्न शर्मा ने बताया कि प्रथम ईसा पूर्व में शकों के राजा शोडास के शासनकाल में बसु नामक सेठ ने कृष्ण जन्मभूमि मंदिर का निर्माण कराया. विदेशी आक्रांताओं ने आकर मंदिर को तोड़ दिया. दूसरी बार पांचवीं सदी में गुप्तकाल के शासक चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया गया जोकि पूरे एशिया में प्रसिद्ध था. 1017 में मोहम्मद गजनवी ने भारत में 17 बार आक्रमण किया. नौवां आक्रमण श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर हुआ था और मंदिर को तहस-नहस कर दिया. मंदिर में से 5 सोने की मूर्तियां गजनवी अपने साथ ले गया. 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान को तोड़ा था और शाही ईदगाह मस्जिद बना दी गई, जोकि वर्तमान में भी स्थापित है.

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