महोबा: पूरे देश में रक्षाबंधन का त्योहार पूर्णमासी के दिन मनाया जाता है, लेकिन महोबा जिले में यह एक दिन बाद मनाया जाता है. दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान और आल्हा ऊदल के बीच रक्षाबंधन के दिन युद्ध चलता रहा और जीत के बाद अगले दिन कजली विसर्जित कर बहनों ने भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधी. तभी से यह परम्परा चली आ रही है.
जानें पूरी कहानी
सन् 1181 में श्रावण पूर्णिमा के दिन चन्देल शासक परमाल की रानी मल्हना और राजकुमारी चन्द्रावल अपनी सखियों के साथ कीरत सागर सरोवर पर भुजरियां विसर्जन करने जा रहीं थीं. तभी दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान के सेनापति चामुंडाराय ने राजकुमारी चन्द्रावल को अपहरण कर महोबा पर चारों ओर से आक्रमण कर दिया. महोबा के शूरवीर उस्ताद चाचा ताला सैय्यद और आल्हा ऊदल के नेतृत्व में चन्देली सेना ने कीरत सागर तट पर पृथ्वीराज चौहान की सेना को मुंह तोड़ जबाब देते हुये भीषण युद्ध किया.
इस युद्ध में पृथ्वीराज का पुत्र सूरज सिंह मारा गया और सेनापति चामुंडाराय बुरी तरह घायल हुआ. नतीजन पृथ्वीराज की सेना बुरी तरह पराजित हुई. चन्देल शासक परमाल और पृथ्वीराज चौहान के बीच 24 घण्टे चले युद्ध के कारण महोबा राज्य में रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जा सका था. युद्ध समाप्त हो जाने के दूसरे दिन रानी मल्हना और राजकुमारी चन्द्रावल ने अपनी सखियों से साथ कीरत सागर सरोवर पर कजरिया विसर्जन की थी. इसके बाद पूरे राज्य में रक्षाबंधन का का पर्व मनाया गया था. तभी से परम्परागत क्षेत्र के लोग रक्षाबंधन के एक दिन बाद अपनी बहनों से राखी बंधवाते हैं.