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लखनऊ: खाद्य श्रृंखला के लिए जरूरी हैं बाघ, संरक्षण के लिए मनाया जाता है 'वर्ल्ड टाइगर डे' - उत्तर प्रदेश समाचार

यूपी की राजधानी लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान में 29 जुलाई को 'वर्ल्ड टाइगर डे' मनाया गया. वर्ल्ड टाइगर डे मनाने का मुख्य उद्देश्य बाघों का संरक्षण करना है. प्राणी उद्यान के निदेशक ने बताया कि बाघ हमारे खाद्य श्रंखला के शीर्ष पर विराजमान हैं.

बाघों के संरक्षण के लिए मनाया जाता है 'वर्ल्ड टाइगर डे'.
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Published : Jul 29, 2019, 9:04 PM IST

लखनऊ: हर साल 29 जुलाई को 'इंटरनेशनल टाइगर डे' के रूप में मनाया जाता है. 2010 से शुरू किए गए वर्ल्ड टाइगर डे का मुख्य उद्देश्य बाघों का संरक्षण करना है. दुनिया भर में बाघों की घटती संख्या के बाद इसके संरक्षण के लिए एक मुहिम चलाई गई और इसीलिए पिछले 9 सालों से 'वर्ल्ड टाइगर डे' मनाया जाता है.

बाघों के संरक्षण के लिए मनाया जाता है 'वर्ल्ड टाइगर डे'.

मनाया गया 'वर्ल्ड टाइगर डे'

  • नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान के निदेशक राजेंद्र कुमार सिंह के अनुसार बाघों की गणना की गई तो पाया गया कि यह संख्या तेजी से घटती जा रही है.
  • सदी के शुरुआत में जहां इनकी संख्या लगभग 40 हजार के आसपास रही होगी.
  • 1973 की गणना में बाघ महज 18 सौ के आसपास पाए गए. इसके बाद उनके संरक्षण पर काम करना शुरू किया गया.
  • बाघों की गिनती के लिए 2010 से हर 4 साल के अंतराल पर उनकी गणना की जाती है.
  • 2014 की गणना के अनुसार विश्व भर में 6 हजार बाघ ही बचे हैं.
  • भारत में बाघों की संख्या पर बात की जाए तो यह संख्या 3891 बची है.
  • उत्तर प्रदेश में 2014 के आंकड़ों के अनुसार महज 117 बाघ ही शेष हैं.

बाघ हमारे खाद्य श्रंखला के शीर्ष पर विराजमान हैं. अगर एक जंगल में बाघ है तो यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि जंगल पूरी तरह से सुरक्षित है. इसके अलावा जंगलों का भी रहना मनुष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. ऐसे में बाघों का जंगल में रहना भी जरूरी है और इसलिए बाघों के संरक्षण के लिए मनाया जाने वाला 'इंटरनेशनल टाइगर डे' एक बेहद सकारात्मक पहल कही जा सकती है.
- राजेंद्र कुमार सिंह, निदेशक, चिड़ियाघर लखनऊ

लखनऊ: हर साल 29 जुलाई को 'इंटरनेशनल टाइगर डे' के रूप में मनाया जाता है. 2010 से शुरू किए गए वर्ल्ड टाइगर डे का मुख्य उद्देश्य बाघों का संरक्षण करना है. दुनिया भर में बाघों की घटती संख्या के बाद इसके संरक्षण के लिए एक मुहिम चलाई गई और इसीलिए पिछले 9 सालों से 'वर्ल्ड टाइगर डे' मनाया जाता है.

बाघों के संरक्षण के लिए मनाया जाता है 'वर्ल्ड टाइगर डे'.

मनाया गया 'वर्ल्ड टाइगर डे'

  • नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान के निदेशक राजेंद्र कुमार सिंह के अनुसार बाघों की गणना की गई तो पाया गया कि यह संख्या तेजी से घटती जा रही है.
  • सदी के शुरुआत में जहां इनकी संख्या लगभग 40 हजार के आसपास रही होगी.
  • 1973 की गणना में बाघ महज 18 सौ के आसपास पाए गए. इसके बाद उनके संरक्षण पर काम करना शुरू किया गया.
  • बाघों की गिनती के लिए 2010 से हर 4 साल के अंतराल पर उनकी गणना की जाती है.
  • 2014 की गणना के अनुसार विश्व भर में 6 हजार बाघ ही बचे हैं.
  • भारत में बाघों की संख्या पर बात की जाए तो यह संख्या 3891 बची है.
  • उत्तर प्रदेश में 2014 के आंकड़ों के अनुसार महज 117 बाघ ही शेष हैं.

बाघ हमारे खाद्य श्रंखला के शीर्ष पर विराजमान हैं. अगर एक जंगल में बाघ है तो यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि जंगल पूरी तरह से सुरक्षित है. इसके अलावा जंगलों का भी रहना मनुष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. ऐसे में बाघों का जंगल में रहना भी जरूरी है और इसलिए बाघों के संरक्षण के लिए मनाया जाने वाला 'इंटरनेशनल टाइगर डे' एक बेहद सकारात्मक पहल कही जा सकती है.
- राजेंद्र कुमार सिंह, निदेशक, चिड़ियाघर लखनऊ

Intro:लखनऊ। हर साल 29 जुलाई को इंटरनेशनल टाइगर डे के रूप में मनाया जाता है। 2010 से शुरू किए गए वर्ल्ड टाइगर डे का मुख्य उद्देश्य बाघों का संरक्षण करना है। दुनिया भर में बाघों की घटती संख्या के बाद इसके संरक्षण के तरफ एक मुहिम चलाई गई और इसीलिए पिछले 9 सालों से वर्ल्ड टाइगर डे मनाया जाता है।


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नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान के निदेशक राजेंद्र कुमार सिंह के अनुसार 1973 में जब पहली बार बाघों की गणना की गई तो पाया गया कि यह संख्या तेजी से घटती जा रही है। सदी के शुरुआत में जहां इनकी संख्या लगभग 40 हजार के आसपास रही होगी वहीं 1973 की गणना में यह महज 18 सौ के आस पास पाए गए। इसके बाद उनके संरक्षण पर काम करना शुरू किया गया।

बाघों की गिनती के लिए 2010 से हर 4 साल के अंतराल पर उनकी गणना की जाती है । 2014 की गणना के अनुसार विश्व भर में 6000 बाघ ही बचे हैं। भारत में बाघों की संख्या पर बात की जाए तो यह संख्या 3891 बची है। वहीं उत्तर प्रदेश में 2014 के आंकड़ों के अनुसार महज 117 बाघ ही शेष हैं।


Conclusion:लखनऊ चिड़ियाघर के निदेशक, सिंह कहते हैं कि बाघ हमारे खाद्य श्रंखला के शीर्ष पर विराजमान हैं। अगर एक जंगल में बाघ है तो यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि जंगल पूरी तरह से सुरक्षित है। इसके अलावा जंगलों का भी रहना मनुष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसे में बाघों का जंगल में रहना भी जरूरी है और इसलिए बाघों के संरक्षण के लिए मनाया जाने वाला 'इंटरनेशनल टाइगर डे' एक बेहद सकारात्मक पहल कही जा सकती है।

बाइट- राजेंद्र कुमार सिंह, निदेशक, चिड़ियाघर लखनऊ

पीटीसी- रामांशी मिश्रा
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