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...क्या अपने सांसदों को पार्टी का साथ छोड़ने से रोक पाएगी समाजवादी पार्टी?

समाजवादी पार्टी से एक के बाद कई नेताओं के इस्तीफे के बाद पार्टी सवालों के कटघरे में खड़ी नजर आ रही है. पार्टी कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर संशय बना हुआ है कि अखिलेश यादव के नेतृत्व में पार्टी की स्थिति कितनी अच्छी हो पाएगी?

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Published : Aug 7, 2019, 12:00 AM IST

मुश्किल में पड़ी अखिलेश की सपा.

लखनऊ: समाजवादी पार्टी नेतृत्व को इन दिनों पार्टी छोड़कर जाने वाले राज्यसभा सदस्यों ने मुश्किल में डाल रखा है. अब तक तीन सांसद समाजवादी पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं. बताया जा रहा है कि पार्टी के और भी सांसद इस्तीफा दे सकते हैं. ऐसे में समाजवादी पार्टी केवल भारतीय जनता पार्टी को कोसने तक ही सीमित है, जबकि यह पार्टी नेतृत्व के लिए सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण वक्त है.

मुश्किल में पड़ी अखिलेश की सपा.

समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसदों के बारी-बारी से साथ छोड़ने से पार्टी कार्यकर्ता सबसे ज्यादा निराश हैं. कार्यकर्ताओं को सबसे बड़ा झटका संजय सेठ के पार्टी छोड़कर जाने से लगा है. संजय सेठ लखनऊ के बड़े रियल इस्टेट कारोबारी हैं और उनके अखिलेश यादव से उनके इतने करीबी रिश्ते हैं कि सपा-बसपा गठबंधन को हकीकत का अमलीजामा पहनाने के लिए संजय सेठ को ही जिम्मेदार माना जाता है. उनके पार्टी छोड़कर जाने से कार्यकर्ताओं में यह सोच कर परेशानी है कि क्या अखिलेश यादव का जादू वाकई खत्म हो गया है.

कार्यकर्ताओं का मानना है कि संजय को समाजवादी पार्टी ने ही सेठ बनाया है. ऐसे में अगर वह अखिलेश यादव का साथ छोड़ सकते हैं, तो अब पार्टी में किस पर भरोसा किया जाए. ऐसे में पार्टी के अंदर यह चर्चाएं तेज हो रही हैं कि पार्टी के कम से कम तीन और सांसद साथ छोड़ कर जाने वाले हैं. इनमें रेवती रमण सिंह का नाम भी लिया जा रहा है जो समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव के पुराने साथी रहे हैं और पार्टी के स्थापक सदस्यों में से प्रमुख हैं.

झांसी से आने वाले चौधरी सुखराम सिंह यादव और कानपुर क्षेत्र के विशंभर निषाद को भी समाजवादी पार्टी के मौजूदा नेतृत्व का करीबी माना जाता है. चौधरी सुखराम सिंह यादव भी मुलायम सिंह यादव के समय से समाजवादी पार्टी के मजबूत स्तंभ बने हुए हैं. ऐसे में अगर यह तीनों लोग पार्टी का साथ छोड़ जाते हैं, तो समाजवादी पार्टी नेतृत्व पर बड़ा सवाल खड़ा होगा कि आखिर नेतृत्व में ऐसी कौन सी खामी है जो कोई साथ रहने को तैयार नहीं है.

लखनऊ: समाजवादी पार्टी नेतृत्व को इन दिनों पार्टी छोड़कर जाने वाले राज्यसभा सदस्यों ने मुश्किल में डाल रखा है. अब तक तीन सांसद समाजवादी पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं. बताया जा रहा है कि पार्टी के और भी सांसद इस्तीफा दे सकते हैं. ऐसे में समाजवादी पार्टी केवल भारतीय जनता पार्टी को कोसने तक ही सीमित है, जबकि यह पार्टी नेतृत्व के लिए सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण वक्त है.

मुश्किल में पड़ी अखिलेश की सपा.

समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसदों के बारी-बारी से साथ छोड़ने से पार्टी कार्यकर्ता सबसे ज्यादा निराश हैं. कार्यकर्ताओं को सबसे बड़ा झटका संजय सेठ के पार्टी छोड़कर जाने से लगा है. संजय सेठ लखनऊ के बड़े रियल इस्टेट कारोबारी हैं और उनके अखिलेश यादव से उनके इतने करीबी रिश्ते हैं कि सपा-बसपा गठबंधन को हकीकत का अमलीजामा पहनाने के लिए संजय सेठ को ही जिम्मेदार माना जाता है. उनके पार्टी छोड़कर जाने से कार्यकर्ताओं में यह सोच कर परेशानी है कि क्या अखिलेश यादव का जादू वाकई खत्म हो गया है.

कार्यकर्ताओं का मानना है कि संजय को समाजवादी पार्टी ने ही सेठ बनाया है. ऐसे में अगर वह अखिलेश यादव का साथ छोड़ सकते हैं, तो अब पार्टी में किस पर भरोसा किया जाए. ऐसे में पार्टी के अंदर यह चर्चाएं तेज हो रही हैं कि पार्टी के कम से कम तीन और सांसद साथ छोड़ कर जाने वाले हैं. इनमें रेवती रमण सिंह का नाम भी लिया जा रहा है जो समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव के पुराने साथी रहे हैं और पार्टी के स्थापक सदस्यों में से प्रमुख हैं.

झांसी से आने वाले चौधरी सुखराम सिंह यादव और कानपुर क्षेत्र के विशंभर निषाद को भी समाजवादी पार्टी के मौजूदा नेतृत्व का करीबी माना जाता है. चौधरी सुखराम सिंह यादव भी मुलायम सिंह यादव के समय से समाजवादी पार्टी के मजबूत स्तंभ बने हुए हैं. ऐसे में अगर यह तीनों लोग पार्टी का साथ छोड़ जाते हैं, तो समाजवादी पार्टी नेतृत्व पर बड़ा सवाल खड़ा होगा कि आखिर नेतृत्व में ऐसी कौन सी खामी है जो कोई साथ रहने को तैयार नहीं है.

Intro:लखनऊ. समाजवादी पार्टी नेतृत्व को इन दिनों पार्टी छोड़कर जाने वाले राज्यसभा सदस्यों ने मुश्किल में डाल रखा है अब तक तीन सांसद समाजवादी पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं और बताया जा रहा है कि टीम और लाइन में हैं ऐसे में समाजवादी पार्टी केवल भारतीय जनता पार्टी को कोसने तक ही सीमित है जबकि यह पार्टी नेतृत्व के लिए सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण वक्त है।


Body:समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद के बारी-बारी साथ छोड़ने से पार्टी कार्यकर्ता सबसे ज्यादा निराश हैं। कार्यकर्ताओं को सबसे बड़ा झटका संजय सेठ के पार्टी छोड़कर जाने से लगा है संजय सेठ लखनऊ के बड़े रियल इस्टेट कारोबारी हैं और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से उनके इतने करीबी रिश्ते हैं कि सपा बसपा गठबंधन को हकीकत का अमलीजामा पहनाने के लिए समाजवादी पार्टी में संजय सेठ को ही जिम्मेदार माना जाता है। उन्हें अखिलेश यादव की किचन केबिनेट का सबसे महत्वपूर्ण शख्स मानने वालों की समाजवादी पार्टी में कमी नहीं है समाजवादी पार्टी छोड़कर जाने से कार्यकर्ता यह सोच कर परेशान हैं कि क्या अखिलेश यादव का जादू वाकई खत्म हो गया है और उनका कोई राजनीतिक भविष्य नहीं है जो इतने करीबी लोग भी उनके साथ जुड़े रहने के लिए तैयार नहीं हैं। कार्यकर्ताओं का मानना है कि संजय को समाजवादी पार्टी ने ही सेठ बनाया है ऐसे में अगर वह अखिलेश यादव का साथ छोड़ सकते हैं तो अब पार्टी में किस पर भरोसा किया जाए कि वह लंबा साथ निभाएगा ऐसे में पार्टी के अंदर यह चर्चा तेज हो रही है कि पार्टी के कम से कम तीन और सांसद साथ छोड़ कर जाने वाले हैं इनमें रेवती रमण सिंह का नाम भी लिया जा रहा है जो समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव के पुराने साथी रहे हैं और पार्टी स्थापक सदस्यों में से प्रमुख हैं। झांसी से आने वाले चौधरी सुखराम सिंह यादव और कानपुर क्षेत्र के विशंभर निषाद को भी समाजवादी पार्टी के मौजूदा नेतृत्व का करीबी माना जाता है चौधरी सुखराम सिंह यादव भी मुलायम सिंह यादव के समय से समाजवादी पार्टी के मजबूत स्तंभ बने हुए हैं ऐसे में अगर यह तीनों लोग पार्टी का साथ छोड़ जाते हैं तो समाजवादी पार्टी नेतृत्व पर बड़ा सवाल खड़ा होगा कि आखिर नेतृत्व में ऐसी कौन सी खामी है जो कोई साथ रहने को तैयार नहीं है और पार्टी नेतृत्व भी ऐसे लोगों को रोकने में क्यों नाकाम है।

पीटीसी अखिलेश तिवारी


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