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जानिए क्यों होता है महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस, इन बातों का रखें ध्यान - हल्की सी चोट

कई बार लोगों की हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि हल्की सी चोट के कारण आसानी से इनमें फ्रैक्चर आ जाता है.

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Published : Jul 18, 2023, 12:28 PM IST

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लखनऊ : कई ऐसी बीमारियां हैं जो पुरुष की तुलना में महिलाओं में आम है. ऑस्टियोपोरोसिस भी एक ऐसी बीमारी है जिसमें हड्डियां कमजोर और नाजुक हो जाती हैं. ऑस्टियोपोरोसिस में नई हड्डी उतनी तेजी से नहीं बनती है, जितनी तेजी से पुरानी हड्डी नष्‍ट होती है. अधिकतर महिलाएं 30 वर्ष की आयु के बाद बहुत मोटी होने लगती है. इससे इनकी नई हड्डियां बननी समाप्त हो जाती हैं और पुरानी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं.

महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस
महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस

वीरांगना झलकारीबाई महिला अस्पताल की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. निवेदिता कर ने बताया कि 'अस्पताल में रोजाना लगभग 200 से 300 महिलाओं की ओपीडी होती है. ओपीडी में गर्भवती महिलाएं आती हैं. गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को आयरन, कैल्शियम, विटामिन और प्रोटीन की कमी होने के चलते ऑस्टियोपोरोसिस की दिक्कतें होती है. ऐसे में उन्हें काफी दर्द तकलीफ़ से गुजरना पड़ता हैं. जब महिलाएं गर्भवती होती हैं उस समय उन्हें आयरन, कैल्शियम, विटामिन D3 की आवश्यकता बहुत होती है और उसी समय महिलाओं के शरीर में इन तत्वों की कमी होती है, जिस कारण से महिलाओं के शरीर में दर्द निरंतर बना रहता है. उनकी हड्डियों में भी दर्द शुरू हो जाता है. प्रसव होने के बाद मां अपने बच्चे को दूध पिलाती हैं, दूध में कैल्शियम होता है. यह उसके शरीर से ही बनता है ऐसे में महिलाएं शारीरिक तौर पर कमजोर हो जाती हैं.'

ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव
- तनाव मुक्त रहें.
- ऑयल मसाज करें.
- अपनी डाइट में तिल शामिल करें.
- रेगुलर हेल्थ चेकअप करवाएं.
- प्रतिदिन एक्सरसाइज करें.
- कैल्शियम का सेवन अधिक करें.
- विटामिन डी के लिए धूप सेकें.
- विटामिन की कमी न होने दें.
- मोटापा कम करें.
- प्लांट एस्ट्रोजेन का चुनाव करें.
- स्मोकिंग और एल्कोहल का सेवन छोड़ दें.


डॉ. निवेदिता कर ने बताया कि 'हड्डियों का कमजोर होना ऑस्टियोपोरोसिस कहलाता है. इस स्थिति में बोन मास डेंसिटी कम हो जाती है, जिससे हड्डियों के फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ जाता है. अगर समय पर इसका निदान करके इलाज न शुरू किया जाए तो ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है. वैसे तो ऑस्टियोपोरोसिस 50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में अधिक होता है, लेकिन अब यह पुरुषों के साथ ही कम उम्र के लोगों को भी होने लगा है. ऑस्टियोपोरोसिस सिर्फ कैल्शियम की कमी के कारण ही नहीं होता है. पोस्ट मेनोपॉज के बाद शरीर में एस्ट्रोजन लेवल कम होने से बोन मिनरल डेंसिटी (बीएमडी) में तेजी से गिरावट आती है. बदलती जीवनशैली, खराब खान-पान की आदतें, अनुवांशिकता के साथ ही एक्सरसाइज में कमी ऑस्टियोपोरोसिस होने के मुख्य कारक हैं.'

ऑस्टियोपोरोसिस के कारण : सिविल अस्पताल की वरिष्ठ आर्थोपेडिक डॉ. निर्मेश भल्ला ने बताया कि 'सामान्य हड्डी प्रोटीन, कोलेजन और कैल्शियम से बनी होती है. जब हड्डियां अपनी डेंसिटी खोने लगती हैं और अस्वाभाविक रूप से कमजोर हो जाती हैं, तो वह आसानी से संकुचित होती हैं, जिससे उनमें दरार पड़ने (जैसे हिप फ्रैक्चर) या स्पाइनल फ्रैक्चर होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है. बीएमडी में कई लेवल पर नुकसान होना शुरू होता है. बीएमडी में नुकसान होने के पहले स्तर को ऑस्टियोपीनिया के रूप में जाना जाता है. इसका इलाज न करवाया जाए, तो ऑस्टियोपोरोसिस हो जाता है.'

यह भी पढ़ें : एकेटीयू: बीटेक पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए काउंसलिंग की प्रक्रिया 24 जुलाई से शुरू होगी

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लखनऊ : कई ऐसी बीमारियां हैं जो पुरुष की तुलना में महिलाओं में आम है. ऑस्टियोपोरोसिस भी एक ऐसी बीमारी है जिसमें हड्डियां कमजोर और नाजुक हो जाती हैं. ऑस्टियोपोरोसिस में नई हड्डी उतनी तेजी से नहीं बनती है, जितनी तेजी से पुरानी हड्डी नष्‍ट होती है. अधिकतर महिलाएं 30 वर्ष की आयु के बाद बहुत मोटी होने लगती है. इससे इनकी नई हड्डियां बननी समाप्त हो जाती हैं और पुरानी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं.

महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस
महिलाओं को ऑस्टियोपोरोसिस

वीरांगना झलकारीबाई महिला अस्पताल की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. निवेदिता कर ने बताया कि 'अस्पताल में रोजाना लगभग 200 से 300 महिलाओं की ओपीडी होती है. ओपीडी में गर्भवती महिलाएं आती हैं. गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को आयरन, कैल्शियम, विटामिन और प्रोटीन की कमी होने के चलते ऑस्टियोपोरोसिस की दिक्कतें होती है. ऐसे में उन्हें काफी दर्द तकलीफ़ से गुजरना पड़ता हैं. जब महिलाएं गर्भवती होती हैं उस समय उन्हें आयरन, कैल्शियम, विटामिन D3 की आवश्यकता बहुत होती है और उसी समय महिलाओं के शरीर में इन तत्वों की कमी होती है, जिस कारण से महिलाओं के शरीर में दर्द निरंतर बना रहता है. उनकी हड्डियों में भी दर्द शुरू हो जाता है. प्रसव होने के बाद मां अपने बच्चे को दूध पिलाती हैं, दूध में कैल्शियम होता है. यह उसके शरीर से ही बनता है ऐसे में महिलाएं शारीरिक तौर पर कमजोर हो जाती हैं.'

ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव
- तनाव मुक्त रहें.
- ऑयल मसाज करें.
- अपनी डाइट में तिल शामिल करें.
- रेगुलर हेल्थ चेकअप करवाएं.
- प्रतिदिन एक्सरसाइज करें.
- कैल्शियम का सेवन अधिक करें.
- विटामिन डी के लिए धूप सेकें.
- विटामिन की कमी न होने दें.
- मोटापा कम करें.
- प्लांट एस्ट्रोजेन का चुनाव करें.
- स्मोकिंग और एल्कोहल का सेवन छोड़ दें.


डॉ. निवेदिता कर ने बताया कि 'हड्डियों का कमजोर होना ऑस्टियोपोरोसिस कहलाता है. इस स्थिति में बोन मास डेंसिटी कम हो जाती है, जिससे हड्डियों के फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ जाता है. अगर समय पर इसका निदान करके इलाज न शुरू किया जाए तो ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है. वैसे तो ऑस्टियोपोरोसिस 50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में अधिक होता है, लेकिन अब यह पुरुषों के साथ ही कम उम्र के लोगों को भी होने लगा है. ऑस्टियोपोरोसिस सिर्फ कैल्शियम की कमी के कारण ही नहीं होता है. पोस्ट मेनोपॉज के बाद शरीर में एस्ट्रोजन लेवल कम होने से बोन मिनरल डेंसिटी (बीएमडी) में तेजी से गिरावट आती है. बदलती जीवनशैली, खराब खान-पान की आदतें, अनुवांशिकता के साथ ही एक्सरसाइज में कमी ऑस्टियोपोरोसिस होने के मुख्य कारक हैं.'

ऑस्टियोपोरोसिस के कारण : सिविल अस्पताल की वरिष्ठ आर्थोपेडिक डॉ. निर्मेश भल्ला ने बताया कि 'सामान्य हड्डी प्रोटीन, कोलेजन और कैल्शियम से बनी होती है. जब हड्डियां अपनी डेंसिटी खोने लगती हैं और अस्वाभाविक रूप से कमजोर हो जाती हैं, तो वह आसानी से संकुचित होती हैं, जिससे उनमें दरार पड़ने (जैसे हिप फ्रैक्चर) या स्पाइनल फ्रैक्चर होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है. बीएमडी में कई लेवल पर नुकसान होना शुरू होता है. बीएमडी में नुकसान होने के पहले स्तर को ऑस्टियोपीनिया के रूप में जाना जाता है. इसका इलाज न करवाया जाए, तो ऑस्टियोपोरोसिस हो जाता है.'

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