लखनऊ : चुनावों में अक्सर छोटे दल बड़ा खेल करते रहे हैं. तमाम बड़े प्रत्याशी छोटे दलों के प्रत्याशियों के वोट काटने से चुनाव हार जाते हैं. कई बार इन्हीं छोटे दलों के प्रत्याशियों की जीत भी हो जाती है. इस बार निकाय चुनाव में छोटे दल पिछली बार के चुनाव की तरह ही बड़ी भूमिका निभाने को तैयार हैं. राष्ट्रीय लोक दल, सुभासपा, अपना दल (कमेरावादी), आम आदमी पार्टी जैसे कई दल इस बार पूरे जोर-शोर के साथ चुनावी मैदान में हैं. हालांकि छोटे दल से ज्यादा निकाय चुनाव में निर्दल प्रत्याशियों का दबदबा रहा है, लेकिन इन्हीं छोटी पार्टियों में से कई पार्टियां अब ऐसी हैं जो या तो सरकार के साथ सत्ता में भागीदार हैं या फिर विपक्ष की बड़ी पार्टी के साथ गठबंधन में हैं और कई विधायक भी हैं. इनमें राष्ट्रीय लोक दल, सुभासपा, अपना दल हैं. इन पार्टियों के नेता निकाय चुनाव में अपने प्रत्याशियों के जीत का दम भर रहे हैं, लेकिन वर्ष 2017 के निकाय चुनाव के नतीजे इन पार्टियों को हतोत्साहित भी करने वाले रहे हैं.
नगर पंचायत में रहा छोटे दलों और निर्दल का दबदबा
महापौर के चुनाव में भले ही छोटे दल और निर्दल प्रत्याशी नाकामयाब होते हों, लेकिन नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों के चुनावों में इनका परफॉर्मेंस काफी मायने रखता है. वर्ष 2017 के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो भारतीय जनता पार्टी ने 16 महापौर की सीटों में से 14 सीटें जीती थीं. बहुजन समाज पार्टी को दो सीटें मिली थीं, लेकिन नगर पंचायतों के अध्यक्ष और नगर पालिका परिषद की कुल 636 सीटों में से 225 सीटों पर छोटे दल और निर्दल प्रत्याशी ने दबदबा कायम किया था. अगर तीनों श्रेणी के निकायों में पार्षद की बात करें तो कुल 11 हजार 995 सीटों में से तमाम सीटों पर निर्दलीय के साथ ही छोटे दलों के प्रत्याशियों ने चुनाव जीतकर बड़े दलों को आईना दिखाया था. इन दलों ने पार्षद की 7304 सीटों पर अपना झंडा फहराया था.
यूपी निकाय चुनाव में छोटे दल और निर्दल प्रत्याशी कर सकते हैं बड़ा खेल
चुनावों में अक्सर छोटे दल बड़ा खेल करते रहे हैं. यही कारण है कि यूपी में हो रहे निकाय चुनाव में इनकी भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है. साथ ही निर्दल उम्मीदवारों के वर्चस्व से इनकार नहीं किया जा सकता है. इस बार चुनाव में कई दलों ने स्वतंत्र रूप से प्रत्याशी उतारे हैं. ऐसे में निकाय चुनाव में मुकाबले दिलचस्प और करीबी हो सकते हैं.
लखनऊ : चुनावों में अक्सर छोटे दल बड़ा खेल करते रहे हैं. तमाम बड़े प्रत्याशी छोटे दलों के प्रत्याशियों के वोट काटने से चुनाव हार जाते हैं. कई बार इन्हीं छोटे दलों के प्रत्याशियों की जीत भी हो जाती है. इस बार निकाय चुनाव में छोटे दल पिछली बार के चुनाव की तरह ही बड़ी भूमिका निभाने को तैयार हैं. राष्ट्रीय लोक दल, सुभासपा, अपना दल (कमेरावादी), आम आदमी पार्टी जैसे कई दल इस बार पूरे जोर-शोर के साथ चुनावी मैदान में हैं. हालांकि छोटे दल से ज्यादा निकाय चुनाव में निर्दल प्रत्याशियों का दबदबा रहा है, लेकिन इन्हीं छोटी पार्टियों में से कई पार्टियां अब ऐसी हैं जो या तो सरकार के साथ सत्ता में भागीदार हैं या फिर विपक्ष की बड़ी पार्टी के साथ गठबंधन में हैं और कई विधायक भी हैं. इनमें राष्ट्रीय लोक दल, सुभासपा, अपना दल हैं. इन पार्टियों के नेता निकाय चुनाव में अपने प्रत्याशियों के जीत का दम भर रहे हैं, लेकिन वर्ष 2017 के निकाय चुनाव के नतीजे इन पार्टियों को हतोत्साहित भी करने वाले रहे हैं.
नगर पंचायत में रहा छोटे दलों और निर्दल का दबदबा
महापौर के चुनाव में भले ही छोटे दल और निर्दल प्रत्याशी नाकामयाब होते हों, लेकिन नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों के चुनावों में इनका परफॉर्मेंस काफी मायने रखता है. वर्ष 2017 के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो भारतीय जनता पार्टी ने 16 महापौर की सीटों में से 14 सीटें जीती थीं. बहुजन समाज पार्टी को दो सीटें मिली थीं, लेकिन नगर पंचायतों के अध्यक्ष और नगर पालिका परिषद की कुल 636 सीटों में से 225 सीटों पर छोटे दल और निर्दल प्रत्याशी ने दबदबा कायम किया था. अगर तीनों श्रेणी के निकायों में पार्षद की बात करें तो कुल 11 हजार 995 सीटों में से तमाम सीटों पर निर्दलीय के साथ ही छोटे दलों के प्रत्याशियों ने चुनाव जीतकर बड़े दलों को आईना दिखाया था. इन दलों ने पार्षद की 7304 सीटों पर अपना झंडा फहराया था.