लखनऊ: न कभी स्कूल गए और न ही कभी सक्रिय सियासत का हिस्सा रहे, बावजूद इसके इस शख्स की साख इतनी मजबूत व प्रभावी रही कि वामकाल में ज्योति बसु भी इनके विचारों के कायल रहे. दरअसल, हम बात कर रहे हैं 78 वर्षीय बुर्जुग व कैंसर पीड़ित विक्रम सिंह गरेवाल की. विक्रम सिंह आज उम्र के इस पड़ाव पर किसी से कुछ हासिल करने की मंशा नहीं रखते, लेकिन उनकी दिली इच्छा है कि अबकी किसी भी कीमत पर उत्तर प्रदेश में योगी की सरकार न बने. इसके लिए उन्होंने अभी से ही जमीनी स्तर पर काम करना भी शुरू कर दिया है.
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी निवासी बुजुर्ग विक्रम सिंह गरेवाल वर्तमान में पश्चिम बंगाल के हावड़ा जनपद में रहते हैं. विचित्र बात यह है कि इन्हें देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर कई बड़े नेता नाम से जानते हैं. यही नहीं विक्रम सिंह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कट्टर समर्थक रहे हैं. लेकिन जब बात मोदी-योगी होती है तो वे बिफर जाते हैं.
इतना ही नहीं उनका कहना है कि तरक्की के नाम पर मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा ने इस देश का बंटाधार किया है. वहीं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तुलना तानाशाह मुसोलिनी और हिटलर से करते हैं. उनकी मानें तो योगी सरकार ने पीएम मोदी की फर्जी मार्केटिंग फॉर्मूले को इस कदर आत्मसात कर लिया है कि अब सूबे में विकास को गैर भाजपा शासित राज्यों की तस्वीरें बतौर पोस्टर लगाए जा रहे हैं. हालांकि, उन तस्वीरों की सच्चाई सामने आने पर भी इन्हें लज्जा नहीं आती.
वे कहते हैं कि देश बेचने की नीतियों के कारण आज हिन्दुस्तान की अवाम का वर्तमान की केंद्र की मोदी सरकार व यूपी में योगी सरकार पर से विश्वास उठ गया है. कोरोना संक्रमणकाल के दौरान लॉकडाउन में जिस तरह से लोगों की नौकरियां गई व महंगाई बढ़ी, वो यह साबित करने को काफी है कि किस हद तक हमारी नींव कमजोर हुई है. छलावे और जाति-धर्म के नाम पर बंटवारे के बूते अगर आज कोई अपनी सियासी सफरनामे को आगे बढ़ाना चाहता है तो यह उसकी सबसे बड़ी भूल है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी "मन की बात" कार्यक्रम के जरिए युवाओं को आत्मनिर्भर होने को नए सिरे से स्टार्टअप और व्यवसाय पर जोर देने को प्रोत्साहित करने के साथ ही सरकार को नई कार्य योजना देने की बात करते हैं. पर विडंबना इस बात की है कि अगर देश की तरक्की को कोई कार्य योजना उन्हें सौंपी जाती है तो उसके क्रियान्वयन के बजाय पैसों की अनुपलब्धता की दुहाई दी जाती है. हालांकि, जब धन एकत्रीकरण के सरल उपाय बताए जाते हैं तो ये सरकार उक्त विषय पर प्रतिउत्तर से बचाने को खामोश हो जाती है.
कैंसर से जद्दोजहद कर रहे विक्रम सिंह अपनी तमाम शारीरिक समस्याओं को भूलकर युवाओं को रोजगार से जोड़ने की बात करते हैं. इतना ही नहीं उन्होंने देश में रोजगार सृजन व सालों से आफत बनी नदियों की रफ्तार यानी बाढ़ से होने वाले नुकसान को हमेशा के लिए खत्म करने को एक खास रोड मैप के साथ केंद्र की मोदी सरकार को तीन प्रस्तावों की प्रतियां भेजी थी. विक्रम दावा करते हैं कि उनके प्रस्तावों पर अगर काम किया गया होता तो मौजूदा खड़ी उन समस्याओं का स्थायी निदान हो जाता, जो आज हमारे सामने एक बड़ी चुनौती के रूप में मुंह उठाए खड़ी हैं. इसके इतर देश में बिजली उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती. साथ ही भारी संख्या में नागरिकों को रोजगार मिलने की भी संभावनाएं थी.
वहीं, राज्य व केंद्र के अधीन राजमार्गों से लगी खाली जमीन के इस्तेमाल से लोगों को आसानी से रोजगार से जोड़ सरकार देश की राजकोष भर सकती थी. विक्रम सिंह बताते हैं कि उन्होंने सरकार को कुछ नीतिगत प्रारूपों में परिवर्तन करने की सलाह के साथ ही स्वास्थ्य, शिक्षा और तकनीक से हर नागरिक को जोड़ने के बाबत तीन प्रस्तावों की प्रतियां भेजी थी.
इसमें जिलों की एक ऐसी रूपरेखा तैयार की गई थी, जिसमें हर घर खुशहाली को तरजीह देने के साथ ही मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, हाई स्कूल समेत अन्य आवश्यक मौलिक बिन्दुओं को इंगित किया गया था. लेकिन इतना कुछ करने के बाद भी जब उक्त प्रस्तावों को मौजूदा मोदी सरकार को सौंपा गया तो प्रतिउत्तर निराशाजनक ही रही.
विक्रम सिंह कहते हैं कि आज हमारे देश में धन की कोई कमी नहीं है, बावजूद इसके जनता रोटी को जद्दोजहद कर रही है. नौकरी और रोजगार दूर की कोड़ी बन गई है. इन सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए ही मैंने मोदी सरकार को तीन ऐसे प्रस्ताव की प्रतियां भेजी थी, जिससे जमीनी स्तर पर रोजगार की समस्याओं से निजात मिलने के साथ ही देश को आर्थिक मोर्चे पर अधिक सबल बनाया जा सकता था. लेकिन दुख की बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अधिनस्थ अफसर पीएम से भी अधिक हवाबाजी करते हैं.
हालांकि, प्रस्ताव की प्रति में ही सरल धन एकत्रीकरण के उपाय भी सुझाए गए थे. जिस पर अमल मात्र से ही देश में व्याप्त समस्याओं का निदान किया जा सकता था. यहां तक कि 12 करोड़ से अधिक नागरिकों को सीधे रोजगार से जोड़ा जा सकता था.
इधर, अपने प्रस्तावों पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि पहले प्रस्ताव में बाढ़ की विभीषिका को खत्म करने को नए बांधों के निर्माण और पुराने बांधों में जमी मिट्टी की सफाई पर जोर दिया गया था. अगर सिस्टेमेटिक तरीकों से पानी की क्षमता के अनुरूप बांधों का निर्माण किया गया होता तो बाढ़ की समस्याओं के स्थायी निदान के साथ ही सिंचाई व्यवस्था को भी अधिक बेहतर बनाया जा सकता.
इतना ही नहरों के माध्यम से रेगिस्तानी इलाकों तक पानी पहुंचा सकते थे. यानी संकट को अवसर में तब्दील किया जा सकता था. यहां तक कि बांधों से नहरें निकालकर सिंचाई को सुगम बनाने के अलावा पनबिजली निर्माण कर देश का राजकोष भी भर सकते थे. वहीं, दूसरे प्रस्ताव में जिलेवार मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों के साथ ही प्रबंधन संस्थानों को खोल शिक्षा के स्तर को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप तैयार करने के बारे में बताया गया था.
इससे रोजगार की भी संभावनाएं बढ़ती. प्रस्ताव में कहा गया था कि देश के नागरिकों से मनोरंजन टैक्स के रूप में प्रति माह 200 रुपए लेकर अगर हम अपने आधारभूत ढांचे का विस्तार करने के साथ ही स्वास्थ्य देखभाल को उच्च गुणवत्ता की सुविधाएं मुहैया कराए तो हर व्यक्ति खुशी-खुशी इस राशि को देने को तैयार होगा. वहीं, आखिरी व तीसरे प्रस्ताव में हाई-वे पर खाली पड़ी जमीन और अतिक्रमित जमीनों को स्थानीय लोगों को देकर उस जमीन पर साग-सब्जी उपजा उसे समीपवर्ती बाजारों में बेचकर धन अर्जित करने का जिक्र किया गया था.
इससे करीब 2.5 करोड़ लोगों को सीधे रोजगार से जोड़ा जा सकता था. इतना ही नहीं नक्सल प्रभावित और सीमा से लगे इलाकों में भी चहलकर्मी बढ़ती और इसका लाभ यह होता कि वहां की हर गतिविधि पर नजरें रखी जा सकती. इन इलाकों के हर नागरिक को यदि सेना प्रशिक्षण करती तो ये नागरिक ही मुश्किल वक्तों में देश की मजबूती बन जाते.
विक्रम सिंह कहते हैं कि काम करने वाले बोलते नहीं हैं, बल्कि खामोशी से काम करते हैं. लेकिन मोदी और योगी दोनों शिलान्यास में व्यस्त रहते हैं. और तो और सारे शिलान्यास चुनाव से पहले इस लिए किए जा रहे हैं कि ताकि किसी भी तरीके से मतदाताओं को अपने पाले में किया जा सके.
आगे उन्होंने कहा कि वे यूपी में भाजपा के विरोध के लिए उतर चुके हैं और उनकी टीम जिलेवार रणनीति बना स्थानीय मुद्दों बनाम खोखले विकास से लोगों को अवगत कराने का काम कर रही है. उन्होंने कहा कि यूपी में योगी के शासनकाल में गन्ना किसानों की हालत जगजाहिर है. ऐसे में हम किसानों की समस्याओं से लेकर हर उस मुद्दे पर लोगों से बात रहे हैं, जो असल सच्चाई है.