लखनऊ: माध्यमिक शिक्षा से जुड़े एडेड विद्यालयों में शिक्षकों का संकट खड़ा हो गया है. इस एडेड विद्यालयों में पहले से ही शिक्षकों की भारी कमी है और अब 2090 तदर्थ शिक्षकों को निकालने के बाद यह संकट और बढ़ता नजर आ रहा है. उधर, उप्र शिक्षा सेवा चयन आयोग को सरकार ने पहले से ही भंग हो रखा है, जिससे शिक्षकों की नियुक्ति की संभावना अभी दूर-दूर तक नहीं दिख रही है. शासन ने वित्तीय भार को कम करते हुए शिक्षकों को तो निकाल दिया. लेकिन, इनकी जगह दूसरे शिक्षकों की व्यवस्था करना भूल गया. ऐसे में विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य अंधकार में पड़ जाएगा. वहीं, विनियमित होने की आस में बैठे तदर्थ शिक्षकों को अचानक निकाले जाने से उनके हाथ खाली पड़ गए हैं. उन्हें पेंशन तक नहीं मिलेगी. 23 से 27 साल तक विद्यालय में शिक्षण कार्य करने के बाद शिक्षकों को मात्र जीपीएफ से संतोष करना पड़ेगा.
बता दें कि दिवाली से ठीक पहले 11 नवंबर को नौकरी के औसतन 5 साल बचने के बाद पूरी जिंदगी शिक्षण कार्य देखने वाले तदर्थ शिक्षकों की सेवा समाप्त कर दी गई. इससे लखनऊ के 28 समेत प्रदेश भर से 2090 शिक्षकों की रातों रात नौकरी समाप्त कर दी गई. माध्यमिक तदर्थ संकट समिति उत्तर प्रदेश के संयोजक राजमणि सिंह की मानें तो उनके लिए यह किसी मृत्युदंड से कम नहीं है. ऐसे में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ व माध्यमिक तदर्थ संकट समिति उत्तर प्रदेश ने इसका विरोध जताया है और एक दिसंबर को डायरेक्टर ऑफिस का घेराव करने की तैयारी की है. संघ के प्रदेशीय उपाध्यक्ष आरपी मिश्र ने कहा कि हजारों की संख्या में शिक्षक एकत्रित होकर एकजुटता का प्रदर्शन करेंगे और मामले पर पुनर्विचार किए जाने को लेकर मुख्यमंत्री को डायरेक्टर के माध्यम से ज्ञापन सौंपेंगे.
माध्यमिक तदर्थ संकट समिति उत्तर प्रदेश के संयोजक राजमणि सिंह ने बताया कि 22 मार्च 2016 को हुए शासनादेश के मुताबिक 7 अगस्त 1993 से 30 दिसंबर 2000 से पहले के तदर्थ शिक्षकों को ही विनियमित किया जाना था. इसमें कई शिक्षक विनियमित हो चुके हैं. वर्ष 2000 से 2006 तक शिक्षा सेवा में आए तदर्थ शिक्षकों के लिए वर्ष 2021 में चयन बोर्ड द्वारा टीजीपी/पीजीटी परीक्षा कराई गई थी. इसमें पास शिक्षकों को ही विनियमित करना था. इसे कुल 40 शिक्षक ही पास कर सके. लखनऊ से नगराम क्षेत्र के हरि कृष्ण पांडेय ने भी यह परीक्षा पास की और उन्हें परमानेंट पद पर नियुक्ति मिल गई. वर्ष 2000 से पहले के 760 शिक्षकों में कुछेक को विनियमित भी किया जा चुका है. हालांकि, अभी 500 से ज्यादा शिक्षक बाकी हैं.
राजमणि सिंह ने बताया कि दो तरह से तदर्थ शिक्षक रखे जाते थे. जेडी कमेंटी सृजित पदों पर रिटायर अथवा मृत होने से खाली पद पर अल्पकालिक शिक्षक रखते थे. प्रबंधतंत्र पदोन्नति अथवा छुट्टी पर जाने वाले शिक्षक की जगह मनमानी ढंग से भरते थे. तत्कालीन समय में उप्र माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड ढंग से काम नहीं कर रहा था, जिससे शिक्षकों की कमी थी. प्रबंधतंत्र पर विद्यालय चलाने का दबाव था. शिक्षण कार्य प्रभावित न हो, इसके लिए अल्पकालिक अवधि के लिए शिक्षक रखे जाते थे. हालांकि, यह सभी मौलिक पद थे.
पदोन्नति के समय शिक्षक को एक साल का समय मिलता है. इसमें वह पदोन्नति की जगह अपने पुराने स्थान को वापस चुन सकता है. इस बीच वह पद खाली बना रहता है. इन पदों पर प्रबंधतंत्र शिक्षक रखते थे. जिनकी सेवा अल्पकालिक थी. शिक्षक द्वारा पदोन्नति लेने पर उसे जेडी कमेंटी को भरना था. लेकिन, ऐसे शिक्षक जब निकाले गए तो वह कोर्ट पहुंच गए. उन्होंने इन पदों पर अल्पकालिक सेवा से भरने की बात कहकर अपनी सेवा जारी कर ली. इन्हीं शिक्षकों को 22 मार्च 2016 के आदेश में धारा 8 को जोड़ते हुए विनियमित करने से बाहर रखा गया.
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