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स्वयं सहायता समूह के जरिए तरक्की की नई इबारत लिख रहीं महिलाएं - लखनऊ राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन

स्वयं सहायता समूह महिलाओं को आत्मनिर्भर ही नहीं बना रहा है बल्कि महिलाओं को एक नया जीवन भी दे रहा है. इसकी वजह से महिलाएं अपना ही नहीं बल्कि अपने परिवार का भी जीवन संवार रही हैं. गांवों में ये समूह महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं है.

महिलाएं बन रही हैं आत्मनिर्भर
महिलाएं बन रही हैं आत्मनिर्भर
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Published : Mar 29, 2021, 10:53 AM IST

लखनऊ: मलिहाबाद क्षेत्र के गांवों में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने स्वावलंबन को गति देने का काम किया है. इस क्षेत्र की महिलाएं अब घर की चार दीवारी तक सीमित न रहकर बाहर निकल रही है. पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर काम भी कर रही हैं. महिलाएं घरों में सिलाई, कढ़ाई के साथ-साथ घरों में आलू के चिप्स और पापड़ बनाकर बाजारों में बेचकर अच्छे पैसे बचा रही हैं. इससे उनकी आजीविका अच्छे से चल रही है. इसी का नतीजा है कि इन गांवों की महिलाएं आत्मनिर्भर बन चुकी हैं. ये सब संभव खंड विकास अधिकारी की प्रेरणा और स्वयं की मेहनत और सहायता समूह के प्रयासों से संभव हुआ.

महिलाएं बन रही आत्मनिर्भर


क्या है राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ?

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) का शुभारंभ केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने साल 2011 में किया था. इस मिशन का लक्ष्य वित्तीय सेवाओं के बेहतर प्रयोग के माध्यम से ग्रामीण गरीब नागरिकों के लिए ऐसे योग्य और प्रभावी संस्थागत मंच तैयार करना है, ताकि वे अपनी घरेलू आय में वृद्धि कर सकें.

आत्मनिर्भर बन रही महिलाएं

सहायता समूह महिलाओं का वो समूह है, जिसमें सब कुछ सामूहिक रूप से होता है. गांव की 10 से 15 महिलाएं मिलकर एक समूह बनाती हैं. जिसका बकायदे एक नाम रखा जाता है. इनके सदस्यों को एक फीसदी ब्याज पर लोन भी दिया जाता है.

सिलाई कढ़ाई से चल रही आजीविका

ओम महिला स्वयं सहायता समूह की सदस्य मीरा देवी बताती हैं कि मलिहाबाद खंड विकास अधिकारी संस्कृता मिश्रा ने सबसे पहले हम लोगों का समूह बनवाया. इसके बाद यूपी राज्य ग्रमीण अजीविका मिशन के तहत समूह को रिवलिंग फंड का 15 हजार और सीआरएफ का एक लाख 10 हजार रुपये मिला. सर्वप्रथम हम लोगों ने समूह के पैसों से कपड़े खरीदे. इससे हम सभी ने घरों में सिलाई कढ़ाई का काम शुरू किया. इससे हम सभी लोग प्रति माह 3-4 हजार रुपये बचा लेते हैं. इससे समूह की महिलाओं को किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती है.

आर्थिक रूप से सबल बन रहीं महिलाएं

पार्वती स्वयं सहायता समूह की सदस्य महिला गायत्री ने बताया कि हम लोगों ने मिलकर पार्वती स्वयं सहायता समूह बनाया. इसमे हम लोगों को सीआईएफ का एक लाख दस हजार रुपया मिला. जिसके बाद समूह की महिलाओं को दस दस हजार दे दिए गए. उन पैसों से समूह की महिलाओं ने मण्डी से आलू लाकर आलू के चिप्स पापड़ बनाएं. जिसके बाद महिलाओं के पापड़ बिकने के बाद अच्छा मुनाफा हुआ. उन पापडों को घरों में बनाकर बाजारों में बेच रहे हैं, जिससे समूह की अच्छी आमदनी हो रही है.

किसी से पैसे मांगने की नहीं पड़ती जरूरत

ओम महिला सहायता समूह की महिलाए स्वयं सहयता समूह की सदस्य बड़े गर्व के साथ कहती हैं, कि अब हमारे गांव की किसी भी महिला को महाजनों के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता. क्योंकि अब हमारे पास जमीन ही नहीं नकद पैसा भी है. इसी गांव की रेखा का दावा है कि अगर इसी मॉडल को पूरे देश में अपना लिया जाए तो महिलाएं भी स्वावलम्बी बन सकती हैं.

आर्थिक स्वावलंबन के लिए किया जा रहा जागरूक

खंड विकास अधिकारी मलिहाबाद संस्कृता मिश्रा ने बताया कि मुख्यमंत्री के आदेश के बाद महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं. एनआरएलएम के अंतर्गत स्वयं सहायता समूह का गठन होता है. ब्लॉक मलिहाबाद में इस प्रकार के कई महिलाओं के स्वयं सहायता समूह हैं. जिसको समय समय पर कार्य की ट्रेनिंग दी जाती है.

लखनऊ: मलिहाबाद क्षेत्र के गांवों में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने स्वावलंबन को गति देने का काम किया है. इस क्षेत्र की महिलाएं अब घर की चार दीवारी तक सीमित न रहकर बाहर निकल रही है. पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर काम भी कर रही हैं. महिलाएं घरों में सिलाई, कढ़ाई के साथ-साथ घरों में आलू के चिप्स और पापड़ बनाकर बाजारों में बेचकर अच्छे पैसे बचा रही हैं. इससे उनकी आजीविका अच्छे से चल रही है. इसी का नतीजा है कि इन गांवों की महिलाएं आत्मनिर्भर बन चुकी हैं. ये सब संभव खंड विकास अधिकारी की प्रेरणा और स्वयं की मेहनत और सहायता समूह के प्रयासों से संभव हुआ.

महिलाएं बन रही आत्मनिर्भर


क्या है राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ?

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) का शुभारंभ केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने साल 2011 में किया था. इस मिशन का लक्ष्य वित्तीय सेवाओं के बेहतर प्रयोग के माध्यम से ग्रामीण गरीब नागरिकों के लिए ऐसे योग्य और प्रभावी संस्थागत मंच तैयार करना है, ताकि वे अपनी घरेलू आय में वृद्धि कर सकें.

आत्मनिर्भर बन रही महिलाएं

सहायता समूह महिलाओं का वो समूह है, जिसमें सब कुछ सामूहिक रूप से होता है. गांव की 10 से 15 महिलाएं मिलकर एक समूह बनाती हैं. जिसका बकायदे एक नाम रखा जाता है. इनके सदस्यों को एक फीसदी ब्याज पर लोन भी दिया जाता है.

सिलाई कढ़ाई से चल रही आजीविका

ओम महिला स्वयं सहायता समूह की सदस्य मीरा देवी बताती हैं कि मलिहाबाद खंड विकास अधिकारी संस्कृता मिश्रा ने सबसे पहले हम लोगों का समूह बनवाया. इसके बाद यूपी राज्य ग्रमीण अजीविका मिशन के तहत समूह को रिवलिंग फंड का 15 हजार और सीआरएफ का एक लाख 10 हजार रुपये मिला. सर्वप्रथम हम लोगों ने समूह के पैसों से कपड़े खरीदे. इससे हम सभी ने घरों में सिलाई कढ़ाई का काम शुरू किया. इससे हम सभी लोग प्रति माह 3-4 हजार रुपये बचा लेते हैं. इससे समूह की महिलाओं को किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती है.

आर्थिक रूप से सबल बन रहीं महिलाएं

पार्वती स्वयं सहायता समूह की सदस्य महिला गायत्री ने बताया कि हम लोगों ने मिलकर पार्वती स्वयं सहायता समूह बनाया. इसमे हम लोगों को सीआईएफ का एक लाख दस हजार रुपया मिला. जिसके बाद समूह की महिलाओं को दस दस हजार दे दिए गए. उन पैसों से समूह की महिलाओं ने मण्डी से आलू लाकर आलू के चिप्स पापड़ बनाएं. जिसके बाद महिलाओं के पापड़ बिकने के बाद अच्छा मुनाफा हुआ. उन पापडों को घरों में बनाकर बाजारों में बेच रहे हैं, जिससे समूह की अच्छी आमदनी हो रही है.

किसी से पैसे मांगने की नहीं पड़ती जरूरत

ओम महिला सहायता समूह की महिलाए स्वयं सहयता समूह की सदस्य बड़े गर्व के साथ कहती हैं, कि अब हमारे गांव की किसी भी महिला को महाजनों के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता. क्योंकि अब हमारे पास जमीन ही नहीं नकद पैसा भी है. इसी गांव की रेखा का दावा है कि अगर इसी मॉडल को पूरे देश में अपना लिया जाए तो महिलाएं भी स्वावलम्बी बन सकती हैं.

आर्थिक स्वावलंबन के लिए किया जा रहा जागरूक

खंड विकास अधिकारी मलिहाबाद संस्कृता मिश्रा ने बताया कि मुख्यमंत्री के आदेश के बाद महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं. एनआरएलएम के अंतर्गत स्वयं सहायता समूह का गठन होता है. ब्लॉक मलिहाबाद में इस प्रकार के कई महिलाओं के स्वयं सहायता समूह हैं. जिसको समय समय पर कार्य की ट्रेनिंग दी जाती है.

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