लखनऊ: आजकल की जीवनशैली में जहां लोग अपने काम में ज्यादा व्यस्त रहते हैं. वहीं कहीं न कहीं अकेलापन भी उनके आसपास घर करने लगता है. इसी वजह से पिछले कुछ सालों में डिप्रेशन और आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी पाई गई है. इसी वजह से विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर इस वर्ष की थीम आत्महत्या की रोकथाम और जागरूकता रखी गई है. आत्महत्या के बारे में कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों के साथ मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अलीम सिद्दकी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.
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डॉक्टर सिद्दकी कहते हैं कि एक अच्छी बात यह है कि आत्महत्या को रोका जा सकता है. यदि हम अपने आसपास कभी किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो लगातार अपने जीवन में निराशाजनक बातें करता आ रहा हो या अपने जीवन को खत्म करने की बात कर रहा हो, तो इसे एक लक्षण जरूर समझना चाहिए. समय रहते अगर उस व्यक्ति के आसपास के लोग ही उसकी सही काउंसलिंग करें तो सुसाइड को होने से रोका जा सकता है.
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डॉ. अलीम कहते हैं कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार भारत में ज्यादातर आत्महत्या 15 वर्ष से 40 वर्ष के बीच की आयु में होती है. पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक आत्महत्या करती हैं. एनसीआरबी के डाटा के अनुसार 2005 से 2015 यानी एक दशक के बीच में आत्महत्या की घटनाएं काफी अधिक बढ़ गई हैं. जिस के प्रति जागरूकता उसे रोके जाने की जरूरत है.