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लखनऊ: पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक करती है सुसाइड, सही काउंसलिंग से हो सकता है बचाव - up news

भारत में महिलाओं के लिए आत्महत्या की दर 16.4 प्रतिशत पाई गई है, जो दुनिया में छठवीं सबसे बड़ी त्रासदी है. वहीं पुरुषों के लिए 25.8 यानी यह 22वें नंबर पर है.

आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी.
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Published : Oct 11, 2019, 3:58 AM IST

लखनऊ: आजकल की जीवनशैली में जहां लोग अपने काम में ज्यादा व्यस्त रहते हैं. वहीं कहीं न कहीं अकेलापन भी उनके आसपास घर करने लगता है. इसी वजह से पिछले कुछ सालों में डिप्रेशन और आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी पाई गई है. इसी वजह से विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर इस वर्ष की थीम आत्महत्या की रोकथाम और जागरूकता रखी गई है. आत्महत्या के बारे में कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों के साथ मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अलीम सिद्दकी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी.
साइकेट्रिस्ट सलीम सिद्दीकी कहते हैं कि आत्महत्या एक ऐसी परेशानी है, जो खुद के साथ अपने आसपास के लोगों को भी प्रभावित करता है. डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार हर 40 सेकेंड पर विश्व में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है. इसके अलावा भारत में हर 5 मिनट पर एक व्यक्ति आत्महत्या का ग्रास बनता है. भारत में महिलाओं के लिए आत्महत्या की दर 16.4 प्रतिशत पाई गई है, जो दुनिया में छठवीं सबसे बड़ी त्रासदी है. वहीं पुरुषों के लिए 25.8 यानी यह 22वें नंबर पर हैं. वह कहते हैं कि लगभग 150 मिलियन भारतीय मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं, लेकिन केवल 10फीसदी लोग ही अपना इलाज करवाते हैं.

इसे भी पढ़ें- पीसीएस 2017 का परिणाम घोषित, प्रतापगढ़ के अमित शुक्ला ने किया टॉप

डॉक्टर सिद्दकी कहते हैं कि एक अच्छी बात यह है कि आत्महत्या को रोका जा सकता है. यदि हम अपने आसपास कभी किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो लगातार अपने जीवन में निराशाजनक बातें करता आ रहा हो या अपने जीवन को खत्म करने की बात कर रहा हो, तो इसे एक लक्षण जरूर समझना चाहिए. समय रहते अगर उस व्यक्ति के आसपास के लोग ही उसकी सही काउंसलिंग करें तो सुसाइड को होने से रोका जा सकता है.

ये भी पढ़ें- रोडवेज बस से सफर कर लखनऊ पहुंचेंगे कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष

डॉ. अलीम कहते हैं कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार भारत में ज्यादातर आत्महत्या 15 वर्ष से 40 वर्ष के बीच की आयु में होती है. पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक आत्महत्या करती हैं. एनसीआरबी के डाटा के अनुसार 2005 से 2015 यानी एक दशक के बीच में आत्महत्या की घटनाएं काफी अधिक बढ़ गई हैं. जिस के प्रति जागरूकता उसे रोके जाने की जरूरत है.

लखनऊ: आजकल की जीवनशैली में जहां लोग अपने काम में ज्यादा व्यस्त रहते हैं. वहीं कहीं न कहीं अकेलापन भी उनके आसपास घर करने लगता है. इसी वजह से पिछले कुछ सालों में डिप्रेशन और आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी पाई गई है. इसी वजह से विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर इस वर्ष की थीम आत्महत्या की रोकथाम और जागरूकता रखी गई है. आत्महत्या के बारे में कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों के साथ मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अलीम सिद्दकी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी.
साइकेट्रिस्ट सलीम सिद्दीकी कहते हैं कि आत्महत्या एक ऐसी परेशानी है, जो खुद के साथ अपने आसपास के लोगों को भी प्रभावित करता है. डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार हर 40 सेकेंड पर विश्व में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है. इसके अलावा भारत में हर 5 मिनट पर एक व्यक्ति आत्महत्या का ग्रास बनता है. भारत में महिलाओं के लिए आत्महत्या की दर 16.4 प्रतिशत पाई गई है, जो दुनिया में छठवीं सबसे बड़ी त्रासदी है. वहीं पुरुषों के लिए 25.8 यानी यह 22वें नंबर पर हैं. वह कहते हैं कि लगभग 150 मिलियन भारतीय मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं, लेकिन केवल 10फीसदी लोग ही अपना इलाज करवाते हैं.

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डॉक्टर सिद्दकी कहते हैं कि एक अच्छी बात यह है कि आत्महत्या को रोका जा सकता है. यदि हम अपने आसपास कभी किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो लगातार अपने जीवन में निराशाजनक बातें करता आ रहा हो या अपने जीवन को खत्म करने की बात कर रहा हो, तो इसे एक लक्षण जरूर समझना चाहिए. समय रहते अगर उस व्यक्ति के आसपास के लोग ही उसकी सही काउंसलिंग करें तो सुसाइड को होने से रोका जा सकता है.

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डॉ. अलीम कहते हैं कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार भारत में ज्यादातर आत्महत्या 15 वर्ष से 40 वर्ष के बीच की आयु में होती है. पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक आत्महत्या करती हैं. एनसीआरबी के डाटा के अनुसार 2005 से 2015 यानी एक दशक के बीच में आत्महत्या की घटनाएं काफी अधिक बढ़ गई हैं. जिस के प्रति जागरूकता उसे रोके जाने की जरूरत है.

Intro:लखनऊ। आजकल की जीवनशैली में जहां लोग अपने काम में ज्यादा व्यस्त व्यस्त रहते हैं वहीं कहीं ना कहीं अकेलापन भी उनके आसपास घर करने लगता है इसी वजह से पिछले कुछ वर्षों में डिप्रेशन और आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी पाई गई है इसी वजह से विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर इस वर्ष की थीम आत्महत्या की रोकथाम और जागरूकता रखी गई है ताकि इसके विषय में बचाओ और बातचीत की जा सके। आत्महत्या के बारे में कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों के साथ मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अलीम सिद्धकी ने ईटीवी भारत से बातचीत की।


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साइकैटरिस्ट अलीम सिद्धकी कहते हैं कि आत्महत्या एक ऐसी परेशानी है जो खुद के साथ अपने आसपास के लोगों को भी प्रभावित करता है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार हर 40 सेकेंड पर विश्व में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है इसके अलावा भारत में हर 5 मिनट पर एक व्यक्ति आत्महत्या का ग्रास बनता है। भारत में महिलाओं के लिए आत्महत्या की दर 16.4 प्रतिशत पाई गई है जो दुनिया में छठवीं सबसे बड़ी त्रासदी है । वही पुरुषों के लिए 25.8 यानी यह 22वें नंबर पर है वह कहते हैं कि लगभग 150 मिलियन भारतीय मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं। लेकिन केवल 10% लोग ही अपना इलाज करवाते हैं। इलाज करवाने की यह दर ही आत्महत्या के प्रमुख कारणों में से एक हो सकती है। इसके अलावा जागरूकता की कमी और हमारे आसपास एक्सेप्टेंस न होना भी लोगों को आत्महत्या के प्रति उकसाता है।

डॉक्टर सिद्धकी कहते हैं कि एक अच्छी बात यह है कि आत्महत्या को रोका जा सकता है यदि हम अपने आसपास कभी किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो लगातार अपने जीवन में निराशाजनक बातें करता आ रहा हो या अपने जीवन को खत्म करने की बात कर रहा हो या फिर उसे ऐसा कहते सुना जा रहा हो कि उसकी जीवन में कुछ नहीं बचा, दुनिया खराब है या ऐसा ही कुछ या वह अपने जीवन खत्म कर लेना चाहता है तो इसे एक लक्षण जरूर समझना चाहिए। और समय रहते अगर उस व्यक्ति के आसपास के लोग ही उसकी सही काउंसलिंग करें तो सुसाइड को होने से रोका जा सकता है।

डॉ अलीम कहते हैं कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार भारत में ज्यादातर आत्महत्या है 15 वर्ष से 40 वर्ष के बीच की आयु में होती हैं और पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक आत्महत्या करती हैं। एनसीआरबी के डाटा के अनुसार 2005 से 2015 यानी एक दशक के बीच में आत्महत्या की घटनाएं काफी अधिक बढ़ गई हैं जिस के प्रति जागरूकता उसे रोके जाने की जरूरत है।


Conclusion:सिद्धि के मुताबिक एनसीआरबी के डाटा में 2005 से 2015 के बीच सुसाइड की दर 17.3% तक बढ़ गई है यानी तकरीबन एक लाख 13 हजार से यह दर बढ़कर एक लाख 33 हजार के आसपास तक पहुंच चुकी है इसलिए जरूरी है कि हम अपनी सामाजिक व्यवस्था को देखें और इसमें सुधार करने की कोशिश करें।

बाइट- डॉ अलीम सिद्धकी, साइकैटरिस्ट

रामांशी मिश्रा
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