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कोविड का सबसे बड़ा अस्पताल है SGPGI, मिलती है अत्याधुनिक सुविधाएं

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Published : Apr 26, 2021, 1:12 PM IST

राजधानी लखनऊ में कोविड मरीजों के इलाज के लिए पहला सबसे बड़ा अस्पताल संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान है. दूसरे नंबर पर लोहिया संस्थान है.

sgpgi lucknow
संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान लखनऊ.

लखनऊ : संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान राजधानी का कोविड-19 के इलाज के लिए सबसे बड़ा संस्थान है. मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल होने के कारण इस संस्थान में चिकित्सा की सभी अत्याधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं. इस संस्थान का कोविड-19 रिकवरी रेट भी अन्य अस्पतालों की तुलना में अधिक है.

अति विशिष्ट लोगों को ही दे पा रहा है इलाज
कोविड-19 शुरू होने के बाद एसजीपीजीआई का प्रबंध तंत्र अति विशिष्ट लोगों को ही इलाज देने के आरोपों से घिरा हुआ है. यहां के रेजिडेंट डॉक्टर और कर्मचारी खुद संस्थान के प्रबंध तंत्र पर यह आरोप लगा चुके हैं. आम लोगों की बात तो छोड़िए संस्थान अपने कर्मचारियों और डॉक्टरों के परिवार को भी इलाज देने में नाकाम रहा है.

आपातकालीन विभाग
यह विभाग 24 घंटे गंभीर बीमारियों से पीड़ित सभी रोगियों के लिए सामान्य ओपीडी घंटे के अतिरिक्त तीव्र गति से चिकित्सा सेवा प्रदान करता है. तत्काल उपचार/पुनर्जीवन यहां प्रदान किया जाता है. मरीज की स्थिति के अनुसार उसे छुट्टी दे दी जाती है या उसे वार्ड में स्थानांतरित कर दिया जाता है. व्हील स्ट्रक्चर प्रत्येक रोगी के लिए उपलब्ध है. यह विभाग अपने कार्य के लिए सभी उचित आवश्यक उपकरण से सुसज्जित है.

ओपीडी सेवाएं
नियमित रूप से ओपीडी की सुविधा एक बहुत व्यवस्थित और संगठित तरीके से इस अस्पताल में प्रदान की जाती है. कोई भी अस्वस्थ व्यक्ति नियमित घंटे में इस विभाग के रिसेप्शन डेस्क पर उचित पंजीकरण के बाद सम्बन्धित विभाग के डॉक्टर से परामर्श कर सकता है. ओपीडी में दंत चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, ईएनटी, विकलांग, बाल रोग और प्रसूति/स्त्री रोग सहित समस्त चिकित्सा और शल्य चिकित्सा के सभी विभागों का इलाज किया जाता है.

आधुनिक सुविधाओं से युक्त है यहां का आईसीयू
संस्थान की गहन चिकित्सा इकाई सभी अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित हैं, जो कि बीमारी के महत्वपूर्ण चरण में रोगियों को संभालने के लिए बनाया गया है. यहां 24 घंटे डॉक्टर और नर्स लगातार मरीज की निगरानी के लिए मौजूद रहते हैं. वर्तमान समय में इसका उपयोग कोविड-19 के लिए किया जा रहा है.

यह सुविधाएं भी है मौजूद
संस्थान का वातानुकूलित ऑपरेशन ब्लॉक पांच केन्द्रों में विभाजित है, जिसमें आर्थोपेडिक (हड्डी) सहित विभिन्न प्रकृति की शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे ईएनटी, स्त्री रोग /प्रसूति के लिए शीर्ष सुविधाओं से युक्त व्यवस्था है. संक्रमण को रोकने के लिए रोगियों और कर्मचारियों के लिए अलग प्रवेश द्वार एवं स्क्रब सुविधाओं का प्रबंध हैं. स्त्री रोग और डिलीवरी के लिए भी यहां अत्याधुनिक सुविधाएं मौजूद है. बाल रोग विभाग में 14 साल की उम्र तक के बच्चों के इलाज के लिए अत्याधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं.

नेत्र रोगियों के लिए अलग अस्पताल
डायलिसिस रेडियोलोजी और टेलीमेडिसिन की सुविधा भी संजय गांधी अस्पताल में उपलब्ध हैं. सभी पैथोलॉजिकल सेवाओं के लिए नमूना संग्रह कमरा है. संस्थान में नेत्र रोगियों के लिए 'इंदिरा गांधी आई हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (IGEHRC)' स्थापित किया गया है. इसके अलावा रक्त बैंक पैथोलॉजी संग्रह केंद्र सिटी स्कैन की सुविधा संस्थान में दी गई है.

ये भी पढ़ें : झारखंड से ऑक्सीजन टैंकर की दूसरी खेप पहुंची लखनऊ

वीआईपी कल्चर से निकलने की जरूरत
एसजीपीजीआई रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष आकाश माथुर कहते हैं कि हमने निदेशक आरके धीमान को पत्र लिखकर उनसे आग्रह किया है कि संस्थान को वीआईपी कल्चर की छवि से बाहर निकाला जाए. अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का भी इस संस्थान के निर्माण में उतना योगदान है, जितना किसी वीआईपी का. इसलिए इलाज की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाना चाहिए.

लखनऊ : संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान राजधानी का कोविड-19 के इलाज के लिए सबसे बड़ा संस्थान है. मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल होने के कारण इस संस्थान में चिकित्सा की सभी अत्याधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं. इस संस्थान का कोविड-19 रिकवरी रेट भी अन्य अस्पतालों की तुलना में अधिक है.

अति विशिष्ट लोगों को ही दे पा रहा है इलाज
कोविड-19 शुरू होने के बाद एसजीपीजीआई का प्रबंध तंत्र अति विशिष्ट लोगों को ही इलाज देने के आरोपों से घिरा हुआ है. यहां के रेजिडेंट डॉक्टर और कर्मचारी खुद संस्थान के प्रबंध तंत्र पर यह आरोप लगा चुके हैं. आम लोगों की बात तो छोड़िए संस्थान अपने कर्मचारियों और डॉक्टरों के परिवार को भी इलाज देने में नाकाम रहा है.

आपातकालीन विभाग
यह विभाग 24 घंटे गंभीर बीमारियों से पीड़ित सभी रोगियों के लिए सामान्य ओपीडी घंटे के अतिरिक्त तीव्र गति से चिकित्सा सेवा प्रदान करता है. तत्काल उपचार/पुनर्जीवन यहां प्रदान किया जाता है. मरीज की स्थिति के अनुसार उसे छुट्टी दे दी जाती है या उसे वार्ड में स्थानांतरित कर दिया जाता है. व्हील स्ट्रक्चर प्रत्येक रोगी के लिए उपलब्ध है. यह विभाग अपने कार्य के लिए सभी उचित आवश्यक उपकरण से सुसज्जित है.

ओपीडी सेवाएं
नियमित रूप से ओपीडी की सुविधा एक बहुत व्यवस्थित और संगठित तरीके से इस अस्पताल में प्रदान की जाती है. कोई भी अस्वस्थ व्यक्ति नियमित घंटे में इस विभाग के रिसेप्शन डेस्क पर उचित पंजीकरण के बाद सम्बन्धित विभाग के डॉक्टर से परामर्श कर सकता है. ओपीडी में दंत चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, ईएनटी, विकलांग, बाल रोग और प्रसूति/स्त्री रोग सहित समस्त चिकित्सा और शल्य चिकित्सा के सभी विभागों का इलाज किया जाता है.

आधुनिक सुविधाओं से युक्त है यहां का आईसीयू
संस्थान की गहन चिकित्सा इकाई सभी अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित हैं, जो कि बीमारी के महत्वपूर्ण चरण में रोगियों को संभालने के लिए बनाया गया है. यहां 24 घंटे डॉक्टर और नर्स लगातार मरीज की निगरानी के लिए मौजूद रहते हैं. वर्तमान समय में इसका उपयोग कोविड-19 के लिए किया जा रहा है.

यह सुविधाएं भी है मौजूद
संस्थान का वातानुकूलित ऑपरेशन ब्लॉक पांच केन्द्रों में विभाजित है, जिसमें आर्थोपेडिक (हड्डी) सहित विभिन्न प्रकृति की शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे ईएनटी, स्त्री रोग /प्रसूति के लिए शीर्ष सुविधाओं से युक्त व्यवस्था है. संक्रमण को रोकने के लिए रोगियों और कर्मचारियों के लिए अलग प्रवेश द्वार एवं स्क्रब सुविधाओं का प्रबंध हैं. स्त्री रोग और डिलीवरी के लिए भी यहां अत्याधुनिक सुविधाएं मौजूद है. बाल रोग विभाग में 14 साल की उम्र तक के बच्चों के इलाज के लिए अत्याधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं.

नेत्र रोगियों के लिए अलग अस्पताल
डायलिसिस रेडियोलोजी और टेलीमेडिसिन की सुविधा भी संजय गांधी अस्पताल में उपलब्ध हैं. सभी पैथोलॉजिकल सेवाओं के लिए नमूना संग्रह कमरा है. संस्थान में नेत्र रोगियों के लिए 'इंदिरा गांधी आई हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (IGEHRC)' स्थापित किया गया है. इसके अलावा रक्त बैंक पैथोलॉजी संग्रह केंद्र सिटी स्कैन की सुविधा संस्थान में दी गई है.

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वीआईपी कल्चर से निकलने की जरूरत
एसजीपीजीआई रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष आकाश माथुर कहते हैं कि हमने निदेशक आरके धीमान को पत्र लिखकर उनसे आग्रह किया है कि संस्थान को वीआईपी कल्चर की छवि से बाहर निकाला जाए. अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का भी इस संस्थान के निर्माण में उतना योगदान है, जितना किसी वीआईपी का. इसलिए इलाज की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाना चाहिए.

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