लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजधानी में 7 साल पहले एक सनसनीखेज वारदात हुई थी, जो आज तक पुलिस के लिए पहेली बनकर रह गई है. दिनदहाड़े पल्सर बाइक सवार दो बदमाशों ने एक एटीएम मशीन में पैसे डालने आई कैश वैन के तीन कर्मचारियों पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर मौत के घाट उतार दिया और 52 लाख रुपये लूट कर फरार हो गए. लुटेरों की तलाश के लिए 16 पुलिस की टीमें बनीं. इस लूट कांड से आतंकियों को जोड़ा गया, यहां तक एक हार्डकोर अपराधी को भी इससे जोड़ने की कोशिश हुई, लेकिन सात साल बाद भी इस कांड की फाइल धूल खा रही है. आज हम उसी अनसुलझे केस की जानकारी दोहरा रहे हैं.
राजधानी लखनऊ का बाबूगंज इलाका (Babuganj area of capital Lucknow) जहां संकरी सड़क और व्यस्तम बाजार, रोज की ही तरह 27 फरवरी 2015 को यहां बाजार में भीड़ थी. अचानक यह इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट (crackle of bullets) से गूंज उठा. आननफनन लोगों ने अपनी अपनी दुकानों के शटर गिराने शुरू कर दिए और कुछ वक्त के सन्नाटे के बाद लोगों ने जो नजारा देखा तो चीखें निकल गईं. सड़क किनारे मौजूद एटीएम बूथ के बाहर 3 लोग खून से लथपथ पड़े थे और बगल में 500 व 1000 के नोट बिखरे हुए थे. लोगों ने फौरन हसनगंज पुलिस को सूचना दी और घायलों को अस्पताल भेजा, लेकिन रास्ते में ही उनकी मौत हो गई. तश्वीर साफ थी कि यहां लूट हुई है. पुलिस ने तत्काल पूरे लखनऊ में नाकाबंदी कर दी. हर पल्सर सवार युवकों की तलाश होने लगी. सीसीटीवी फुटेज चेक किए गए तो वारदात की तस्वीर सामने आई.
दरअसल, 27 फरवरी 2015 को कैश वैन के कस्टोडियन (Custodian of Cash Van) उदय और अनिल सिंह कैश लेकर एटीएम मशीन में लोड करने के लिए हजरतगंज से निकले थे. वे लोग हसनगंज के बाबूगंज स्थित एक निजी बैंक के एटीएम के बाहर पहुंचे. दोनों कस्टोडियन बॉक्स लेकर अंदर चले गए, जबकि दो गार्ड अवनीश शुक्ला और अरुण कुमार एटीएम के बाहर खड़े थे. इसी दौरान पल्सर बाइक सवार दो बदमाश वहां पहुंचे और गार्ड अवनीश व अरुण और कस्टोडियन अनिल सिंह पर गोली चला दी. इसके बाद 52.50 लाख रुपये भरे बॉक्स को लूटकर फरार हो गए. इटौंजा के रहने वाले गार्ड आलोक मिश्रा की तहरीर पर केस दर्ज कर पुलिस ने छानबीन शुरू की. घटनास्थल के पास एक दुकानदार चश्मदीद के तौर पर मिला, जिसने नकाबपोश बदमाशों को गोली चलाने से लेकर भागते तक देखा था. पुलिस ने यूपी के टॉप 20 अपराधियों के गैंग सदस्यों से कड़ी पूछताछ की. यूपी और दूसरे प्रदेशों के लुटेरे और हत्यारे गैंगों की पड़ताल का दावा किया गया, लेकिन पुलिस को कोई कामयाबी नहीं मिली.
आतंकियों से जोड़ा गया था तार, लेकिन हुए फेल : लखनऊ पुलिस की 16 टीमें इस लूटकांड को अंजाम देने वाले अपराधियों की तलाश में खाक छान रही थी, लेकिन हर तरफ से उसे निराशा ही हासिल हो रही थी. इसी बीच तेलांगना के नालगोड़ा पुलिस ने घटना के एक महीने बाद 4 अप्रैल 2015 को सिमी आतंकी एजाजुद्दीन और असलम को मुठभेड़ में पुलिस ने मार गिराया था. दूसरे दिन तेलांगना पुलिस का बयान आया कि इन्ही दोनों आतंकियों ने लखनऊ के बाबूगंज में ट्रिपल मर्डर और एटीएम कैश लूटकांड को अंजाम दिया था. हर तरफ से निराशा हाथ लगने के बीच तेलांगना पुलिस के इस इनपुट ने राजधानी पुलिस को संजीवनी दे दी और पूरा पुलिस अमला मामले को उसी दिशा में मोड़ने का प्रयास करने लगा, लेकिन पुलिस की फजीहत तब हुई जब मारे गए आतंकियों की बाबूगंज कांड के दौरान लखनऊ में लोकेशन ही नहीं मिली और पुलिस का यह प्लान सफल नहीं हुआ. कुछ दिनों बाद एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि यूपी के एक पुलिस अधिकारी ने नालगोड़ा पुलिस से सांठगांठ कर बाबूगंज लूटकांड के फर्जी खुलासे की योजना बनाई थी.
जब एक गैंग को ट्रेस करने पर हो गया था विवाद : उस दौरान लखनऊ में तैनात रहे एक तत्कालीन इंस्पेक्टर जो उस 16 टीम में से एक टीम का हिस्सा भी थे. उनके मुताबिक राजधानी पुलिस यूपी के अलावा तमिलनाडु, तेलांगना, बंगाल, हरियाणा व राजस्थान के गैंगों को ट्रेस कर चुकी थी, लेकिन किसी गिरोह का कनेक्शन इस घटना से नहीं जुड़ा. इसी दौरान पुलिस ने आजमगढ़ के एक सक्रिय लूटेरा गिरोह पर हाथ डालने की कोशिश की, लेकिन कुछ अधिकारियों ने इस गैंग के पीछे भागने को समय की बर्बादी बताकर विरोध कर दिया. जिसको लेकर क्राइम ब्रांच और अधिकारी में विवाद शुरू हो गया. बात जब मुख्यालय तक पहुंची तो तफ्तीश में जुटे पुलिसकर्मियों ने इस गैंग का पीछा छोड़ दिया.
आखिर में बंद कर दिया केस : इसी दौरान एनआईए के डिप्टी एसपी तंजील अहमद की हत्या में पुलिस ने हार्डकोर अपराधी मुनीर और उसके दोस्त अदनान को गिरफ्तार कर लिया था. पूछताछ में सामने आया कि 25 नवंबर 2015 को मुनीर ने गोमतीनगर में जज के गनर प्रमोद को गोली मारकर सर्विस पिस्टल लूटी थी. इससे पहले 19 नवंबर 2015 की रात रेनेसॉ होटल के एक्जक्यूटिव मैनेजर नमन वर्मा की हत्या करके उसकी नई पल्सर बाइक लूट ली थी. तंजील की हत्या में उसने इसी पल्सर का इस्तेमाल किया था. बाबूगंज लूट कांड में भी पल्सर का ही इस्तेमाल हुआ था. लिहाजा मुनीर से पूछताछ के दौरान इस घटना के बारे में भी पूछा गया. मुनीर ने 30 से अधिक घटनाओं में उसका जुर्म कुबूल कर लिया, लेकिन बाबूगंज की घटना से नकारता रहा. ऐसे में 2 अप्रैल 2017 को पुलिस ने थक हार कर फाइनल रिपोर्ट लगाकर केस ही बंद कर दिया.
यह भी पढ़ें : कासगंज में तेज रफ्तार कार ने सड़क पर खड़े किशोर को रौंदा, मौत