लखनऊ : समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री मोहम्मद आजम खान 'हेट स्पीच' मामले में अपनी विधान सभा की सदस्यता गंवा चुके हैं. इस मामले में उन्हें तीन साल की सजा भी सुनाई जा चुकी है. आजम पर कई अन्य मामले भी चल रहे हैं, जिनमें कुछ माह पूर्व ही सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद उन्हें जमानत मिल पाई है. ताजा मामले में आजम को सजा सुनाए जाने का बाद ऐसा लगता है कि अब उनकी जल्द रिहाई मुश्किल है. सरकार ने भी आजम पर दायर अन्य मामलों में पैरवी तेज करने का निर्णय किया है. ऐसे में न सिर्फ आजम खान, बल्कि समाजवादी पार्टी और उसके मुखिया अखिलेश यादव की मुसीबतें बढ़ना तय है.
दरअसल, मोहम्मद आजम खान समाजवादी पार्टी का सबसे बड़ा मुस्लिम चेहरा माने जाते हैं. चुनावी सभाओं में उनकी तकरीरें सपा के बड़े वोट बैंक माने जाने वाले मुस्लिमों को खूब लुभाती हैं. ऐसे में यदि आजम खान को तीन साल जेल में रहना पड़ा तो सपा और अखिलेश यादव के सामने परेशानी खड़ी होना तय है. 2024 के लोकसभा चुनावों में सपा के पास एक ऐसा नेता प्रचार के लिए उपलब्ध नहीं होगा, जिसकी एक बड़े वर्ग में खासी लोकप्रियता है.
2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश की कुल आबादी लगभग बीस करोड़ आंकी गई थी. इसमें पौने चार करोड़ से ज्यादा संख्या मुसलमानों की मानी जाती है. यह संख्या प्रदेश की कुल आबादी की बीस फीसद से भी अधिक है. विगत वर्षों में इस आबादी के बड़े हिस्से पर सपा की मजबूत पकड़ रही है, लेकिन यह पकड़ बरकरार रह पाएगी, कहना कठिन है.
पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह भाजपा ने हिंदुत्व की राजनीति की है, उससे प्रदेश की जनता दो ध्रुवों में बंटती दिखाई दी है. एक ओर जहां कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी जैसे दल हाशिए पर पहुंच गए हैं, वहां समाजवादी पार्टी का वजूद भी खतरे में पड़ता दिखाई देने लगा है. सपा अपने परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक को हरहाल में बांधे रखना चाहेगी और इसके लिए पार्टी हर जतन भी कर रही है. आज ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बाबरी केस में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील रहे जफरयाब जिलानी से मिलने उनके आवास पहुंचे. अखिलेश की कोशिश है कि पार्टी के बड़े वोट बैंक को बचाए रखना है. हालांकि सवाल उठता है कि क्या एक बड़ा समुदाय बिना किसी सजातीय प्रतिनिधि के अखिलेश के साथ खड़ा होगा?
वैसे तो सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क, नाहिद हसन, हाजी फजलुर्रहमान, एसटी हसन, महबूब अली और यासर शाह जैसे कई मुस्लिम चेहरे समाजवादी पार्टी में हैं, लेकिन इनमें कोई भी चेहरा आजम खान के कद के आसपास भी नहीं है. ऐसे में अखिलेश यादव का चिंतित होना लाजमी है. 2024 में होने वाला लोक सभा का चुनाव भाजपा और सपा दोनों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. एक ओर भाजपा जहां उत्तर प्रदेश से ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर नरेंद्र मोदी को एक बार फिर सत्ता में काबिज कराना चाहती है, वहीं समाजवादी पार्टी के लिए भी यह चुनाव अस्तित्व की लड़ाई बन गया है, क्योंकि पिछले लोक सभा के चुनाव में सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था, जिसका फायदा बसपा को हुआ था और उसके 10 नेता संसद पहुंचे थे. इसलिए इस बार सपा के लिए लोक सभा चुनाव बेहद अहम होंगे. अब यदि आजम खान इस चुनाव में प्रचार के लिए उपलब्ध न हुए तो सपा उनका कौन सा विकल्प खोजकर लाएगी यह भविष्य ही बताएगा.
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