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लखनऊ: मरते रहे बसों के हमसफर, नियम बनाकर पल्ला झाड़ते रहे रोडवेज के अफसर - लखनऊ खबर

यूपी में परिवहन विभाग के अधिकारियों की लापरवाही रोडवेज बसों की दुर्घटनाओं का बड़ा कारण बन रही है. कुछ दिन पहले रोडवेज ने दुर्घटनाओं का आंकड़ा जारी किया, तो उसमें पिछले साल की तुलना में बसों की दुर्घटनाओं का आंकड़ा कम निकाल कर वाहवाही लूटी, लेकिन हकीकत यही है कि लगातार बस हादसे बढ़ रहे हैं.

रोडवेज बसों के अधिकारियों की लापरवाही की वजह से हो रहे हादसे
रोडवेज बसों के अधिकारियों की लापरवाही की वजह से हो रहे हादसे
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Published : Aug 27, 2020, 3:10 PM IST

लखनऊ: रोडवेज बस से सफर करने वाले हमसफर मरते गए और रोडवेज के अफसर नियम बनाकर पल्ला झाड़ते रहे. अफसरों ने कभी यह भी जहमत नहीं उठाई कि जो नियम बनाए हैं. उनका अनुपालन हो भी रहा है या नहीं. अधिकारियों की लापरवाही दुर्घटनाओं का बड़ा कारण बन रही है. कुछ दिन पहले रोडवेज ने दुर्घटनाओं का आंकड़ा जारी किया, तो उसमें पिछले साल की तुलना में बसों की दुर्घटनाओं का आंकड़ा कम निकाल कर वाहवाही लूटी, लेकिन हकीकत यही है कि लगातार बस हादसे बढ़ रहे हैं और इसमें ड्राइवर कंडक्टर के साथ ही पैसेंजर्स भी लगातार मर रहे हैं. रोडवेज की छवि धूमिल हो रही है और अब यात्री बसों से सफर करने से भी घबरा रहे हैं.

पिछले साल यमुना एक्सप्रेस-वे पर आगरा के पास एक जनरथ बस खाई में गिर गई थी. जिसमें 30 से ज्यादा यात्रियों की मौत हो गई थी. जांच में सामने आया कि ड्राइवर को नींद आ जाने के कारण यह भयानक हादसा हुआ था. इसके बाद परिवहन निगम के अधिकारी नींद से जागे थे और तत्काल ऑर्डर जारी कर लंबी दूरी की गाड़ियों पर हरहाल में दो ड्राइवर भेजने का नियम बना दिया था. कुछ दिन तक तो इसकी कायदे से मॉनिटरिंग की गई, लेकिन धीरे-धीरे यह सब खत्म हो गया और लंबी दूरी की बसों पर भी एक ड्राइवर भेजा जाने लगा.

इसका नतीजा यह हुआ कि दुर्घटनाएं घटने के बजाय बढ़ती ही चली गईं. अभी हाल ही में परिवहन निगम ने एक और प्लान तैयार किया, जिसमें ओवर स्पीडिंग और लेन ब्रेकिंग के प्रकरणों में बसों के चालकों का विवरण यूपीडा से प्राप्त कर चालान की कुल धनराशि से ड्राइवरों के वेतन से 80 प्रतिशत और परिचालक के वेतन से 20 प्रतिशत वेतन काटने की बात कही गई. यह नियम बनाने के पीछे भी उद्देश्य यही था कि ड्राइवरों में भय पैदा किया जा सके. साथ ही चालान की भरपाई निगम के राजस्व से न करके ड्राइवरों से की जाए. नियम तो बन गया, लेकिन अभी तक इस पर अधिकारियों ने कोई अमल ही नहीं किया. लिहाजा, ड्राइवर और कंडक्टर अपने मन से बसें दौड़ा रहे हैं.

बस दुर्घटनाएं लगातार हो रही हैं, लेकिन आंकड़ेबाजी में परिवहन निगम के अधिकारी बिल्कुल भी पीछे नहीं हैं. 2018-19 और 2019-20 में बस दुर्घटनाओं का तुलनात्मक विवरण पेश किया गया, तो परिवहन निगम अधिकारियों ने खूब वाहवाही लूटी. 2018-19 से 2019-20 की तुलना करने पर दुर्घटनाओं में 13 प्रतिशत की कमी दर्शाई गई. दुर्घटनाओं की संख्या में 18 प्रतिशत की कमी, मृतकों की संख्या में 19 प्रतिशत की और घायलों की संख्या में 0.49 प्रतिशत की कमी दर्शाई गई. लेकिन लगातार हो रही दुर्घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि सभी दुर्घटनाएं कागजों पर अपडेट नहीं की जा रही हैं. परिवहन निगम के विश्वस्त सूत्र बताते हैं जो बड़ी दुर्घटना होती है उन्हें दर्ज कर लिया जाता है. जबकि छोटी दुर्घटनाओं को छोड़ दिया जाता है. हकीकत यही है कि दुर्घटनाएं खूब हो रही हैं, लोग भी मर रहे हैं, लेकिन परिवहन निगम के अधिकारी सिर्फ नियम बनाने में मशगूल हैं, पालन कराने में नहीं.

2019-20 में 648 दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 307 खतरनाक दुर्घटनाएं थीं, 390 लोगों की मौत हुई और 802 यात्री घायल हुए. 2019-20 में 748 दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 376 खतरनाक हादसे थे. इनमें 484 लोगों की जान गई, जबकि 806 लोग घायल हुए.

लखनऊ: रोडवेज बस से सफर करने वाले हमसफर मरते गए और रोडवेज के अफसर नियम बनाकर पल्ला झाड़ते रहे. अफसरों ने कभी यह भी जहमत नहीं उठाई कि जो नियम बनाए हैं. उनका अनुपालन हो भी रहा है या नहीं. अधिकारियों की लापरवाही दुर्घटनाओं का बड़ा कारण बन रही है. कुछ दिन पहले रोडवेज ने दुर्घटनाओं का आंकड़ा जारी किया, तो उसमें पिछले साल की तुलना में बसों की दुर्घटनाओं का आंकड़ा कम निकाल कर वाहवाही लूटी, लेकिन हकीकत यही है कि लगातार बस हादसे बढ़ रहे हैं और इसमें ड्राइवर कंडक्टर के साथ ही पैसेंजर्स भी लगातार मर रहे हैं. रोडवेज की छवि धूमिल हो रही है और अब यात्री बसों से सफर करने से भी घबरा रहे हैं.

पिछले साल यमुना एक्सप्रेस-वे पर आगरा के पास एक जनरथ बस खाई में गिर गई थी. जिसमें 30 से ज्यादा यात्रियों की मौत हो गई थी. जांच में सामने आया कि ड्राइवर को नींद आ जाने के कारण यह भयानक हादसा हुआ था. इसके बाद परिवहन निगम के अधिकारी नींद से जागे थे और तत्काल ऑर्डर जारी कर लंबी दूरी की गाड़ियों पर हरहाल में दो ड्राइवर भेजने का नियम बना दिया था. कुछ दिन तक तो इसकी कायदे से मॉनिटरिंग की गई, लेकिन धीरे-धीरे यह सब खत्म हो गया और लंबी दूरी की बसों पर भी एक ड्राइवर भेजा जाने लगा.

इसका नतीजा यह हुआ कि दुर्घटनाएं घटने के बजाय बढ़ती ही चली गईं. अभी हाल ही में परिवहन निगम ने एक और प्लान तैयार किया, जिसमें ओवर स्पीडिंग और लेन ब्रेकिंग के प्रकरणों में बसों के चालकों का विवरण यूपीडा से प्राप्त कर चालान की कुल धनराशि से ड्राइवरों के वेतन से 80 प्रतिशत और परिचालक के वेतन से 20 प्रतिशत वेतन काटने की बात कही गई. यह नियम बनाने के पीछे भी उद्देश्य यही था कि ड्राइवरों में भय पैदा किया जा सके. साथ ही चालान की भरपाई निगम के राजस्व से न करके ड्राइवरों से की जाए. नियम तो बन गया, लेकिन अभी तक इस पर अधिकारियों ने कोई अमल ही नहीं किया. लिहाजा, ड्राइवर और कंडक्टर अपने मन से बसें दौड़ा रहे हैं.

बस दुर्घटनाएं लगातार हो रही हैं, लेकिन आंकड़ेबाजी में परिवहन निगम के अधिकारी बिल्कुल भी पीछे नहीं हैं. 2018-19 और 2019-20 में बस दुर्घटनाओं का तुलनात्मक विवरण पेश किया गया, तो परिवहन निगम अधिकारियों ने खूब वाहवाही लूटी. 2018-19 से 2019-20 की तुलना करने पर दुर्घटनाओं में 13 प्रतिशत की कमी दर्शाई गई. दुर्घटनाओं की संख्या में 18 प्रतिशत की कमी, मृतकों की संख्या में 19 प्रतिशत की और घायलों की संख्या में 0.49 प्रतिशत की कमी दर्शाई गई. लेकिन लगातार हो रही दुर्घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि सभी दुर्घटनाएं कागजों पर अपडेट नहीं की जा रही हैं. परिवहन निगम के विश्वस्त सूत्र बताते हैं जो बड़ी दुर्घटना होती है उन्हें दर्ज कर लिया जाता है. जबकि छोटी दुर्घटनाओं को छोड़ दिया जाता है. हकीकत यही है कि दुर्घटनाएं खूब हो रही हैं, लोग भी मर रहे हैं, लेकिन परिवहन निगम के अधिकारी सिर्फ नियम बनाने में मशगूल हैं, पालन कराने में नहीं.

2019-20 में 648 दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 307 खतरनाक दुर्घटनाएं थीं, 390 लोगों की मौत हुई और 802 यात्री घायल हुए. 2019-20 में 748 दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 376 खतरनाक हादसे थे. इनमें 484 लोगों की जान गई, जबकि 806 लोग घायल हुए.

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