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रिश्वत लेने में क्षेत्र विकास अधिकारी को तीन साल की कैद, 1997 में 15 सौ रुपये की ली थी घूस - इंदिरा आवास में रिश्वत लेने का मामला

राजधानी लखनऊ में भ्रष्टाचार निवारण के विशेष न्यायाधीश ने रायबरेली के डीह के क्षेत्र विकास अधिकारी को रिश्वत लेने पर तीन साल की कैद की सजा सुनाई. यह मामला इंदिरा आवास के लिए मिलने वाली सहायता राशि का है.

लखनऊ कोर्ट
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Published : Sep 21, 2022, 9:02 AM IST

लखनऊ: भ्रष्टाचार निवारण के विशेष न्यायाधीश गौरव कुमार ने डीह क्षेत्र के क्षेत्र विकास अधिकारी को रिश्वत लेने के मामले में दोषसिद्ध करार दिया है. कोर्ट ने आरोपी को तीन वर्ष की कैद और 20 हजार रुपये जुर्माने की सजा से दंडित किया है. रायबरेली स्थित डीह क्षेत्र के क्षेत्र विकास अधिकारी को इंदिरा आवास के लिए मिलने वाली सहायता राशि का चेक देने के एवज में 15 सौ रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया था.

बहस के दौरान सरकारी वकील का कहना था कि वादी गुनिराम ने 19 मई 1997 को सतर्कता निदेशक को शिकायती पत्र देकर बताया था कि वादी ग्राम सभा विरनावां में इंदिरा आवास के लिए चयनित हुआ था. वादी का आवास स्वीकृत हो गया था. इसके बाद वादी को बताया गया कि उसे जिला सहकारी बैंक में खाता खुलवाना है और उसका चेक क्षेत्र के विकास अधिकारी बलवंत राम सुमन के पास रखा है. वादी जब खाता खुलवाने के बाद आरोपी के पास चेक लेने गया तो उसने चेक देने के एवज में 15 सौ रुपये रिश्वत की मांग की. वादी की शिकायत पर सतर्कता अधिष्ठान की टीम ने आरोपी बीडीओ बलबंत राम सुमन को 20 मई 1997 को उसके सरकारी आवास पर वादी से रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया था.

वरिष्ठ चिकित्साधिकारी की अग्रिम जमानत अर्जी कोर्ट ने की खारिज

लखनऊ: आपराधिक साजिश के तहत नियमों को दरकिनार कर दवाइयों की खरीद करने और अनुचित लाभ लेने के अभियुक्त इटावा के तत्कालीन वरिष्ठ चिकित्साधिकारी (स्टोर) डॉ. राकेश कुमार की अग्रिम जमानत अर्जी को भ्रष्टाचार निवारण के विशेष न्यायाधीश लोकेश वरुण ने खारिज कर दिया है.

कोर्ट में सरकारी वकील संजीव तिवारी ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि अभियुक्त इटावा में वरिष्ठ चिकित्साधिकारी के पद पर कार्यरत था. उसने वित्तीय वर्ष 2000-2001 और 2003-2004 के दौरान अन्य अभियुक्तों के साथ मिलीभगत कर साजिश की और शासन तथा विभाग के नियमों-आदेशों का उल्लंघन करके अपने औषधि आदेश बनाए. कहा गया कि अभियुक्त ने बिना दर अनुबंध, बिना कोटेशन, बिना तुलनात्मक सूची प्रक्रिया अपनाए और मनमाने दरों पर फर्जी डीलरों को आपूर्ति करने के आदेश दिए और शासकीय धन का बंदरबांट किया.

यह भी पढ़ें: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अध्यापक के रिटायरमेंट के बाद बर्खास्तगी रोकने का आदेश किया रद्द

आरोप है कि मामले की रिपोर्ट ईओडब्लू के निरीक्षक प्रेमपाल सिंह ने इटावा सदर कोतवाली में 2 मार्च 2008 को तत्कालीन सीएमओ इटावा डॉ. एएन खान, डॉ. हरिश्चंद्र, तत्कालीन एसएमओ स्टोर डॉ. राकेश कुमार और 14 अन्य के खिलाफ दर्ज कराई थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि मामले की जांच ईओडब्ल्यू ने की जिसमें पता चला कि अभियुक्तों ने फर्जी आदेशों के जरिए अधिक दरों पर दवाओं की आपूर्ति की और धनलाभ लिया.

लखनऊ: भ्रष्टाचार निवारण के विशेष न्यायाधीश गौरव कुमार ने डीह क्षेत्र के क्षेत्र विकास अधिकारी को रिश्वत लेने के मामले में दोषसिद्ध करार दिया है. कोर्ट ने आरोपी को तीन वर्ष की कैद और 20 हजार रुपये जुर्माने की सजा से दंडित किया है. रायबरेली स्थित डीह क्षेत्र के क्षेत्र विकास अधिकारी को इंदिरा आवास के लिए मिलने वाली सहायता राशि का चेक देने के एवज में 15 सौ रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया था.

बहस के दौरान सरकारी वकील का कहना था कि वादी गुनिराम ने 19 मई 1997 को सतर्कता निदेशक को शिकायती पत्र देकर बताया था कि वादी ग्राम सभा विरनावां में इंदिरा आवास के लिए चयनित हुआ था. वादी का आवास स्वीकृत हो गया था. इसके बाद वादी को बताया गया कि उसे जिला सहकारी बैंक में खाता खुलवाना है और उसका चेक क्षेत्र के विकास अधिकारी बलवंत राम सुमन के पास रखा है. वादी जब खाता खुलवाने के बाद आरोपी के पास चेक लेने गया तो उसने चेक देने के एवज में 15 सौ रुपये रिश्वत की मांग की. वादी की शिकायत पर सतर्कता अधिष्ठान की टीम ने आरोपी बीडीओ बलबंत राम सुमन को 20 मई 1997 को उसके सरकारी आवास पर वादी से रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया था.

वरिष्ठ चिकित्साधिकारी की अग्रिम जमानत अर्जी कोर्ट ने की खारिज

लखनऊ: आपराधिक साजिश के तहत नियमों को दरकिनार कर दवाइयों की खरीद करने और अनुचित लाभ लेने के अभियुक्त इटावा के तत्कालीन वरिष्ठ चिकित्साधिकारी (स्टोर) डॉ. राकेश कुमार की अग्रिम जमानत अर्जी को भ्रष्टाचार निवारण के विशेष न्यायाधीश लोकेश वरुण ने खारिज कर दिया है.

कोर्ट में सरकारी वकील संजीव तिवारी ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि अभियुक्त इटावा में वरिष्ठ चिकित्साधिकारी के पद पर कार्यरत था. उसने वित्तीय वर्ष 2000-2001 और 2003-2004 के दौरान अन्य अभियुक्तों के साथ मिलीभगत कर साजिश की और शासन तथा विभाग के नियमों-आदेशों का उल्लंघन करके अपने औषधि आदेश बनाए. कहा गया कि अभियुक्त ने बिना दर अनुबंध, बिना कोटेशन, बिना तुलनात्मक सूची प्रक्रिया अपनाए और मनमाने दरों पर फर्जी डीलरों को आपूर्ति करने के आदेश दिए और शासकीय धन का बंदरबांट किया.

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आरोप है कि मामले की रिपोर्ट ईओडब्लू के निरीक्षक प्रेमपाल सिंह ने इटावा सदर कोतवाली में 2 मार्च 2008 को तत्कालीन सीएमओ इटावा डॉ. एएन खान, डॉ. हरिश्चंद्र, तत्कालीन एसएमओ स्टोर डॉ. राकेश कुमार और 14 अन्य के खिलाफ दर्ज कराई थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि मामले की जांच ईओडब्ल्यू ने की जिसमें पता चला कि अभियुक्तों ने फर्जी आदेशों के जरिए अधिक दरों पर दवाओं की आपूर्ति की और धनलाभ लिया.

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