लखनऊ: कोरोना का असर जहां अब सभी तीज त्योहारों पर दिख रहा है. वहीं हजरत अली की शहादत के गम में निकलने वाले जुलूस पर भी इसका गहरा असर पड़ा है. राजधानी लखनऊ में तकरीबन 150 वर्षों से निकलने वाले इस ऐतिहासिक जुलूस के वक्त सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहा. कोरोना और लॉकडाउन को देखते हुए किसी भी धार्मिक आयोजन की अनुमति नहीं है, ऐसे में शिया समुदाय द्वारा मंगलवार 21 रमजान को हजरत अली का ताबूत भी नहीं निकाला जा सका.
घरों पर हुआ मातम
शिया समुदाय के लोग हर साल हजरत अली की शहादत के गम में 21 रमजान को पुराने लखनऊ के नजफ से जुलूस की शक्ल में ताबूत निकालकर तालकटोरा की कर्बला में दफन करते हैं. पिछले साल देश में लगे सम्पूर्ण लॉक डाउन के चलते 150 साल पुरानी यह परंपरा टूटी थी. वहीं इस साल भी कोरोना वायरस की दूसरी लहर के कहर के चलते सरकार ने कोरोना कर्फ्यू की अवधि बढ़ा दी है. ऐसे में मंगलवार को यह जुलूस नहीं निकला. जिसके बाद अकीदतमंदों ने घरों में ही मातम किया और हज़रत अली को याद कर अश्क बहाए.
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सड़कों पर बैरिकेडिंग के साथ पुलिस का पहरा
मंगलवार को जुलूस के समय पुराने लखनऊ को छावनी में तब्दील कर दिया गया और नजफ से लेकर तालकटोरा सहित कई संवेदनशील इलाकों में पुलिस का कड़ा बंदोबस्त रहा. सड़कों पर बैरिकेडिंग के साथ पीएसी और आरआरएफ की कई टुकड़ियां तैनात थीं. जुलूस के रास्तों पर पुलिस के कई आलाधिकारी गश्त करते रहे, हालांकि कमेटी ने भी जुलूस नहीं निकालने का ऐलान कर दिया था.