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परमाणु हमले के पीड़ितों की बचेगी जान, कैंसर का भी इलाज संभव, चीन के रिसर्चर्स का दावा - CHINESE RESEARCHERS

चीन ने एक ऐसा हेल्थ कवच विकसित कर लिया है, जिससे परमाणु हमला भी बेअसर हो सकता है.

nuclear
परमाणु विस्फोट (सांकेतिक तस्वीर)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 21, 2025, 5:20 PM IST

बीजिंग: चीन के रिसर्चर्स ने एक ऐसा ट्रीटमेंट विकसित किया है, जिससे परमाणु हमले से पीड़ित लोगों को बचाया जा सकता है. फिलहाल यह रिसर्च चूहों पर की गई है. साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक चीन के रिसर्चर्स ने चूहे पर की गई रिसर्च में पाया कि वह जो ट्रीटमेंट तैयार कर रहे हैं, उससे कैंसर और परमाणु अटैक से बचा जा सकता है.

रिपोर्ट के मुताबिक रिसर्च में सामने आया है कि ट्रीटमेंट रेडिएशन के संपर्क में आने वाले चूहों की जीवित रहने की दर को काफी हद तक बढ़ाता है. यह एक ऐसी खोज है जो एक दिन कैंसर के इलाज को सुरक्षित बना सकती है, या परमाणु युद्ध की स्थिति में जीवित रहने की दर में भी सुधार कर सकती है.

अध्ययन में पाया गया कि कैंसर या वायरस के प्रति शरीर की प्रतिरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रोटीन को नष्ट करने से रेडिएशन से होने वाले नुकसान से काफी हद तक सुरक्षा मिल सकती है. इसके अलावा इससे कैंसर रेडियोथेरेपी को अनुकूलित करने में भी मदद मिल सकती है.

रेडिएशन की हाई डोज - जैसे कि परमाणु विस्फोटों या कैंसरग्रस्त ट्यूमर को हटाने के लिए रेडियोथेरेपी - शरीर के डीएनए को तोड़ देती है, जिससे बड़े पैमाने पर एपोप्टोसिस होता है, जो एक तरह से सेल की डेथ है.

न्यूक्लियर रेडिएशन जेनेटिक डैमेज को ट्रिगर कर सकता है जो बड़े पैमाने पर सेल डेथ की वजह बनता है, जबकि कैंसर के मरीज अक्सर रेडियोथेरेपी के कारण होने वाले गैस्ट्रोइन्टेस्टिनल सिंड्रोम से मर जाते हैं.

रेडियो एक्टिव फॉलआउट से अधिक लोग मरेंगे
कुछ अध्ययनों ने अनुमान लगाया है कि परमाणु युद्ध की स्थिति में विस्फोट के तत्काल परिणाम के बजाय रेडियो एक्टिव फॉलआउट से अधिक लोग मरेंगे. दूसरे विश्व युद्ध के अंत में भी हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने से कम से कम 100,000 लोग मारे गए, जिनमें से बड़ी संख्या में विस्फोटों के बाद मारे गए थे.

इंटरनेशनल अटॉमिक एनर्जी एजेंसी के अनुसार 1986 में चेर्नोबिल पावर प्लांट में हुई दुर्घटना में लगभग 4,000 लोग मारे गए थे, जिनमें से अनेक लोग घटना के कई साल बाद रेडिएशन-जनित कैंसर के कारण मर गए. वर्तमान में ऐसे रेडिएशन को रोकने के लिए कोई विशिष्ट निवारक उपाय नहीं हैं.

कितनी बढ़ी जीवित रहने की दर?
हालांकि, गुआंगझोउ इंस्टीट्यूट्स ऑफ बायोमेडिसिन एंड हेल्थ के एसोसिएट रिसर्च फेलो सन यिरॉन्ग के नेतृत्व में रिसर्च टीम ने पाया कि चूहों में स्टिंग नामक प्रोटीन को नष्ट करने के बाद रेडिएशन के संपर्क में आने पर जीवित रहने की दर 11 प्रतिशत से बढ़कर 67 प्रतिशत हो गई.

पिछले सप्ताह सेल डेथ एंड डिफरेंशियल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में टीम ने लिखा कि उन्होंने पाया कि सामान्य चूहों को पेट में अधिक गंभीर चोटें आईं, जबकि जिन चूहों के स्टिंग प्रोटीन को नष्ट कर दिया गया था, उन्हें कम गंभीर चोटें आईं. उन्होंने पाया कि स्टिंग प्रोटीन एक नए सिग्नलिंग मार्ग को एक्टिव कर सकता है, जिससे सेल डेथ का रेट बढ़ जाता है.

यह भी पढ़ें- पर्यटकों की संख्या बढ़ाने के लिए चिड़ियाघर ने की शर्मनाक करतूत, गधे को जेब्रा की तरह किया पेंट, भड़के लोग

बीजिंग: चीन के रिसर्चर्स ने एक ऐसा ट्रीटमेंट विकसित किया है, जिससे परमाणु हमले से पीड़ित लोगों को बचाया जा सकता है. फिलहाल यह रिसर्च चूहों पर की गई है. साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक चीन के रिसर्चर्स ने चूहे पर की गई रिसर्च में पाया कि वह जो ट्रीटमेंट तैयार कर रहे हैं, उससे कैंसर और परमाणु अटैक से बचा जा सकता है.

रिपोर्ट के मुताबिक रिसर्च में सामने आया है कि ट्रीटमेंट रेडिएशन के संपर्क में आने वाले चूहों की जीवित रहने की दर को काफी हद तक बढ़ाता है. यह एक ऐसी खोज है जो एक दिन कैंसर के इलाज को सुरक्षित बना सकती है, या परमाणु युद्ध की स्थिति में जीवित रहने की दर में भी सुधार कर सकती है.

अध्ययन में पाया गया कि कैंसर या वायरस के प्रति शरीर की प्रतिरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रोटीन को नष्ट करने से रेडिएशन से होने वाले नुकसान से काफी हद तक सुरक्षा मिल सकती है. इसके अलावा इससे कैंसर रेडियोथेरेपी को अनुकूलित करने में भी मदद मिल सकती है.

रेडिएशन की हाई डोज - जैसे कि परमाणु विस्फोटों या कैंसरग्रस्त ट्यूमर को हटाने के लिए रेडियोथेरेपी - शरीर के डीएनए को तोड़ देती है, जिससे बड़े पैमाने पर एपोप्टोसिस होता है, जो एक तरह से सेल की डेथ है.

न्यूक्लियर रेडिएशन जेनेटिक डैमेज को ट्रिगर कर सकता है जो बड़े पैमाने पर सेल डेथ की वजह बनता है, जबकि कैंसर के मरीज अक्सर रेडियोथेरेपी के कारण होने वाले गैस्ट्रोइन्टेस्टिनल सिंड्रोम से मर जाते हैं.

रेडियो एक्टिव फॉलआउट से अधिक लोग मरेंगे
कुछ अध्ययनों ने अनुमान लगाया है कि परमाणु युद्ध की स्थिति में विस्फोट के तत्काल परिणाम के बजाय रेडियो एक्टिव फॉलआउट से अधिक लोग मरेंगे. दूसरे विश्व युद्ध के अंत में भी हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने से कम से कम 100,000 लोग मारे गए, जिनमें से बड़ी संख्या में विस्फोटों के बाद मारे गए थे.

इंटरनेशनल अटॉमिक एनर्जी एजेंसी के अनुसार 1986 में चेर्नोबिल पावर प्लांट में हुई दुर्घटना में लगभग 4,000 लोग मारे गए थे, जिनमें से अनेक लोग घटना के कई साल बाद रेडिएशन-जनित कैंसर के कारण मर गए. वर्तमान में ऐसे रेडिएशन को रोकने के लिए कोई विशिष्ट निवारक उपाय नहीं हैं.

कितनी बढ़ी जीवित रहने की दर?
हालांकि, गुआंगझोउ इंस्टीट्यूट्स ऑफ बायोमेडिसिन एंड हेल्थ के एसोसिएट रिसर्च फेलो सन यिरॉन्ग के नेतृत्व में रिसर्च टीम ने पाया कि चूहों में स्टिंग नामक प्रोटीन को नष्ट करने के बाद रेडिएशन के संपर्क में आने पर जीवित रहने की दर 11 प्रतिशत से बढ़कर 67 प्रतिशत हो गई.

पिछले सप्ताह सेल डेथ एंड डिफरेंशियल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में टीम ने लिखा कि उन्होंने पाया कि सामान्य चूहों को पेट में अधिक गंभीर चोटें आईं, जबकि जिन चूहों के स्टिंग प्रोटीन को नष्ट कर दिया गया था, उन्हें कम गंभीर चोटें आईं. उन्होंने पाया कि स्टिंग प्रोटीन एक नए सिग्नलिंग मार्ग को एक्टिव कर सकता है, जिससे सेल डेथ का रेट बढ़ जाता है.

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