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युवा याद रखें, असंभव जैसी कोई चीज नहीं है: IAS मुकेश मेश्राम

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Published : Sep 4, 2021, 5:32 PM IST

ETV BHARAT से वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और पर्यटन व संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम ने बातचीत की. इस अंश में उन्होंने अपने जीवन की यात्रा, सेवा के दौरान हुए सामाजिक परिवर्तनों का उल्लेख और युवाओं के संबंध में कई प्रमुख बातें कही हैं..पेश हैं कुछ प्रमुख अंश...

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पर्यटन व संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम ने बातचीत

लखनऊ: वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और पर्यटन व संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव (principal secretary tourism and culture) मुकेश मेश्राम का नाम उत्तर प्रदेश के उन आईएएस (IAS) अधिकारियों में शुमार है, जो अपनी ईमानदारी, सादगी और अच्छे व्यवहार के कारण जाने जाते हैं. 1995 बैच के आईएएस मेश्राम कई जिलों में डीएम व मंडलायुक्त रहे. राजधानी में तैनात रहकर एलडीए उपाध्यक्ष व आयुक्त वाणिज्य कर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं. मध्य प्रदेश के बहुत ही पिछड़े बालाघाट जिले से अभावों के बीच हिंदी साहित्य की पढ़ाई कर सिविल सर्विस तक पहुंचे मुकेश मेश्राम से उनकी पढ़ाई, नौकरी में आने और अब तक के उनके काम पर चर्चा. हमने उनसे पूछा कि वह जिन सपनों के लेकर आए थे, क्या वह पूरे हो पाए?


प्रश्न- आपको एक ईमानदार अफसर के रूप में लोग जानते हैं. सादगी और विनम्रता के लिए लोग जानते हैं. मैं आपसे जानना चाहता हूं कि बालक मुकेश से आईएएस अधिकारी मुकेश मेश्राम तक की यात्रा कैसे संभव हो सकी?


उत्तर- आईएएस में आना तो संयोग ही रहा. मेरा बचपन तो अभावों और ग्रामीण परिवेश में बीता है. यह जंगल से चालू होता है. हम लोग पेड़ों पर चढ़कर वानरों की तरह उत्पात किया करते थे. मैं मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले से हूं, जहां आज भी पचास प्रतिशत से अधिक जंगल है. एक गांव से आठ किलो मीटर पर दूसरा गांव आता है. बीच में जंगल होते हैं. उन्हीं जंगलों में छोटे-छोटे खेत होते हैं, जिनकी वर्षा पर ही निर्भरता होती है. एक ही फसल हो पाती है वहां. बाकी महुआ बीनकर लोग अपना जीवन यापन करते हैं. जब हम छोटे थे, तब वहां मूलभूत सुविधाएं और सड़कें नहीं थीं. हमें नदी पार कर स्कूल जाना पड़ता था. नंगे पांव घूमते रहते थे. जो कपड़ा मिला पहन लेते थे.

पर्यटन व संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम ने बातचीत



प्रश्न- आज के युवाओं के लिए आप एक प्रेरणा हैं. अभावों से निकलकर देश की सबसे बड़ी परीक्षा पास की आपने. पढ़ाई और नौकरी के बीच के संघर्ष के विषय में भी बताएं.


उत्तर- अमूमन यह होता है कि हममें बहुत सारे लोग यह समझ कर कि उनसे संभव नहीं है, प्रयास ही नहीं करते. आशा के बीच से निकलकर महत्वाकांक्षा की डोर थामे रहनी पड़ती है. सबसे बड़ी चीज है आपके अंदर की जीवटता और आत्मविश्वास. यह सबके अंतर है. यह जिजीविषा सबके अंदर ईश्वर प्रदत्त है. हमारे पास दिमाग है, जो बहुत दूर तक सोच सकता है. विचारों को ब्रह्मांड से निकाल कर मूर्त रूप दे सकता है. जहां हम यह सोच लेते हैं कि यह हमसे संभव नहीं है, वहीं पर हम आधा हार जाते हैं. यह नहीं करना है. बहुत सारे लोग भाषा की समस्या में उलझ जाते हैं. कोई समस्या नहीं है. बस आपको यह ठान लेना है. जब आप कोई निश्चय कर लेते हैं, तो सारे ब्रह्मांड की शक्तियां आपके साथ आ जाती हैं. जब मैंने सोचा इसमें विविधता है. कार्यों के लिए आपके पास अवसर हैं. समाज सेवा और देश सेवा के लिए यह एक बेहतरीन सर्विस मानी जाती है. समाज में हम आज भी मानते हैं कि यह बहुत अच्छी सेवा है, तो क्यों नहीं इसके लिए हम प्रयास करें. हिंदी साहित्य मेरा विकल्प रहा है, जबकि मैं इंजीनियरिंग का विद्यार्थी हूं. आईआईटी (रुढ़की) से मैंने मास्टर ऑफ आर्किटेक्चर किया है. इससे पहले मौलाना आजाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Maulana Azad National Institute of Technology भोपाल ) से बैचलर ऑफ आर्किटेक्चर किया. इसरो में मैंने नौकरी की. फिर मैंने एनआईटी भोपाल में पढ़ाना चालू किया. फिर आईएएस की तैयारी करने वाले साथियों के कहने पर तैयारी शुरू कर दी. हिंदी साहित्य और इतिहास मेरे विषय थे. दूसरे प्रयास में मेरा सेलेक्शन हो गया.


प्रश्न- आप समाज में बदलाव देखना चाहते थे. आपको लगता है कि आप जिन वजहों से सेवा में आए थे, वह कर पा रहे हैं?


उत्तर- बिल्कुल, इतनी संभावनाओं से परिपूर्ण है सेवा केवल हमको ठान लेना है. लोग जो बहानेबाजी करते रहते हैं कि हमें काम करने नहीं दिया जाता या हमारे मन का नहीं होता या इस विभाग में रहता तो मैं अच्छा कर लेता. मैंने देखा कोई भी विभाग हो, कोई भी जगह हो, गांव हो या शहर हो, बड़ा जिला हो या छोटा हर जगह आपकी आवश्यकता पड़ती है. हर जगह अवसर हैं. काम करने के लिए केवल आपको नीयत भी साफ रखनी होती है.



प्रश्न- आपकी सेवा के दौरान ऐसा कोई काम, जिसे करके आपको लगता हो कि आप किसी की मदद कर पाए?


उत्तर- ऐसे तो सैकड़ों काम हैं. कितने गिनाएं. याद रखना भी मुश्किल है. मेरा सीधा सा उसूल है 'नेकी कर दरिया में डाल'. बस आप काम करते रहिए, क्योंकि ऊपर वाले ने आपको यह मौका दिया है. यह मौका सभी को तो नहीं मिला. इसलिए आप यह मान लीजिए कि आप लाखों में एक हैं. यदि आपको किसी की सेवा का अवसर मिलता है, तो दो कदम आगे बढ़कर मानवता की सेवा करिए. आप रास्ते निकाल सकते हैं. अक्सर यह होता है कि लोग रास्ते निकालने के लिए आगे नहीं आते हैं.



प्रश्न- युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे आप?


उत्तर- युवाओं के लिए यह विश्व पटल बहुत विस्तीर्ण है. कोई नहीं कहता है कि अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दें. छोटे-छोटे काम भी तो हम कर सकते हैं. यह देश और समाज आपको कितना कुछ देता है. प्रकृति के माध्यम से आपने हवा, पानी और जीवन, सब कुछ लिया. कुछ लौटाएं भी. समाज और प्रकृति के माध्यम से. प्रकृति के साथ जीना भी सीखें. जब आप प्रकृति के साथ जीना सीखते हैं, तो उतने ही सरल, उतने ही कर्मठ और संघर्षमय भी होते हैं. दो चीजें जरूर ध्यान में रखें. एक तो असंभव जैसी कोई चीज नहीं है. दूसरा सबके साथ, सबके प्रति सम्मान होना चाहिए. एक बहुत सुंदर सा भजन है 'तेरा मंगल, मेरा मंगल, सबका मंगल होए रे'. इस दुनिया में जो भी आए हैं, सबका मंगल हो, यह धारणा रखनी चाहिए.

इसे भी पढ़ें-कुछ समय बाद लोग कहेंगे-अयोध्या जैसा कोई नहीं: प्रमुख सचिव पर्यटन व संस्कृति

लखनऊ: वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और पर्यटन व संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव (principal secretary tourism and culture) मुकेश मेश्राम का नाम उत्तर प्रदेश के उन आईएएस (IAS) अधिकारियों में शुमार है, जो अपनी ईमानदारी, सादगी और अच्छे व्यवहार के कारण जाने जाते हैं. 1995 बैच के आईएएस मेश्राम कई जिलों में डीएम व मंडलायुक्त रहे. राजधानी में तैनात रहकर एलडीए उपाध्यक्ष व आयुक्त वाणिज्य कर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं. मध्य प्रदेश के बहुत ही पिछड़े बालाघाट जिले से अभावों के बीच हिंदी साहित्य की पढ़ाई कर सिविल सर्विस तक पहुंचे मुकेश मेश्राम से उनकी पढ़ाई, नौकरी में आने और अब तक के उनके काम पर चर्चा. हमने उनसे पूछा कि वह जिन सपनों के लेकर आए थे, क्या वह पूरे हो पाए?


प्रश्न- आपको एक ईमानदार अफसर के रूप में लोग जानते हैं. सादगी और विनम्रता के लिए लोग जानते हैं. मैं आपसे जानना चाहता हूं कि बालक मुकेश से आईएएस अधिकारी मुकेश मेश्राम तक की यात्रा कैसे संभव हो सकी?


उत्तर- आईएएस में आना तो संयोग ही रहा. मेरा बचपन तो अभावों और ग्रामीण परिवेश में बीता है. यह जंगल से चालू होता है. हम लोग पेड़ों पर चढ़कर वानरों की तरह उत्पात किया करते थे. मैं मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले से हूं, जहां आज भी पचास प्रतिशत से अधिक जंगल है. एक गांव से आठ किलो मीटर पर दूसरा गांव आता है. बीच में जंगल होते हैं. उन्हीं जंगलों में छोटे-छोटे खेत होते हैं, जिनकी वर्षा पर ही निर्भरता होती है. एक ही फसल हो पाती है वहां. बाकी महुआ बीनकर लोग अपना जीवन यापन करते हैं. जब हम छोटे थे, तब वहां मूलभूत सुविधाएं और सड़कें नहीं थीं. हमें नदी पार कर स्कूल जाना पड़ता था. नंगे पांव घूमते रहते थे. जो कपड़ा मिला पहन लेते थे.

पर्यटन व संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम ने बातचीत



प्रश्न- आज के युवाओं के लिए आप एक प्रेरणा हैं. अभावों से निकलकर देश की सबसे बड़ी परीक्षा पास की आपने. पढ़ाई और नौकरी के बीच के संघर्ष के विषय में भी बताएं.


उत्तर- अमूमन यह होता है कि हममें बहुत सारे लोग यह समझ कर कि उनसे संभव नहीं है, प्रयास ही नहीं करते. आशा के बीच से निकलकर महत्वाकांक्षा की डोर थामे रहनी पड़ती है. सबसे बड़ी चीज है आपके अंदर की जीवटता और आत्मविश्वास. यह सबके अंतर है. यह जिजीविषा सबके अंदर ईश्वर प्रदत्त है. हमारे पास दिमाग है, जो बहुत दूर तक सोच सकता है. विचारों को ब्रह्मांड से निकाल कर मूर्त रूप दे सकता है. जहां हम यह सोच लेते हैं कि यह हमसे संभव नहीं है, वहीं पर हम आधा हार जाते हैं. यह नहीं करना है. बहुत सारे लोग भाषा की समस्या में उलझ जाते हैं. कोई समस्या नहीं है. बस आपको यह ठान लेना है. जब आप कोई निश्चय कर लेते हैं, तो सारे ब्रह्मांड की शक्तियां आपके साथ आ जाती हैं. जब मैंने सोचा इसमें विविधता है. कार्यों के लिए आपके पास अवसर हैं. समाज सेवा और देश सेवा के लिए यह एक बेहतरीन सर्विस मानी जाती है. समाज में हम आज भी मानते हैं कि यह बहुत अच्छी सेवा है, तो क्यों नहीं इसके लिए हम प्रयास करें. हिंदी साहित्य मेरा विकल्प रहा है, जबकि मैं इंजीनियरिंग का विद्यार्थी हूं. आईआईटी (रुढ़की) से मैंने मास्टर ऑफ आर्किटेक्चर किया है. इससे पहले मौलाना आजाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Maulana Azad National Institute of Technology भोपाल ) से बैचलर ऑफ आर्किटेक्चर किया. इसरो में मैंने नौकरी की. फिर मैंने एनआईटी भोपाल में पढ़ाना चालू किया. फिर आईएएस की तैयारी करने वाले साथियों के कहने पर तैयारी शुरू कर दी. हिंदी साहित्य और इतिहास मेरे विषय थे. दूसरे प्रयास में मेरा सेलेक्शन हो गया.


प्रश्न- आप समाज में बदलाव देखना चाहते थे. आपको लगता है कि आप जिन वजहों से सेवा में आए थे, वह कर पा रहे हैं?


उत्तर- बिल्कुल, इतनी संभावनाओं से परिपूर्ण है सेवा केवल हमको ठान लेना है. लोग जो बहानेबाजी करते रहते हैं कि हमें काम करने नहीं दिया जाता या हमारे मन का नहीं होता या इस विभाग में रहता तो मैं अच्छा कर लेता. मैंने देखा कोई भी विभाग हो, कोई भी जगह हो, गांव हो या शहर हो, बड़ा जिला हो या छोटा हर जगह आपकी आवश्यकता पड़ती है. हर जगह अवसर हैं. काम करने के लिए केवल आपको नीयत भी साफ रखनी होती है.



प्रश्न- आपकी सेवा के दौरान ऐसा कोई काम, जिसे करके आपको लगता हो कि आप किसी की मदद कर पाए?


उत्तर- ऐसे तो सैकड़ों काम हैं. कितने गिनाएं. याद रखना भी मुश्किल है. मेरा सीधा सा उसूल है 'नेकी कर दरिया में डाल'. बस आप काम करते रहिए, क्योंकि ऊपर वाले ने आपको यह मौका दिया है. यह मौका सभी को तो नहीं मिला. इसलिए आप यह मान लीजिए कि आप लाखों में एक हैं. यदि आपको किसी की सेवा का अवसर मिलता है, तो दो कदम आगे बढ़कर मानवता की सेवा करिए. आप रास्ते निकाल सकते हैं. अक्सर यह होता है कि लोग रास्ते निकालने के लिए आगे नहीं आते हैं.



प्रश्न- युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे आप?


उत्तर- युवाओं के लिए यह विश्व पटल बहुत विस्तीर्ण है. कोई नहीं कहता है कि अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दें. छोटे-छोटे काम भी तो हम कर सकते हैं. यह देश और समाज आपको कितना कुछ देता है. प्रकृति के माध्यम से आपने हवा, पानी और जीवन, सब कुछ लिया. कुछ लौटाएं भी. समाज और प्रकृति के माध्यम से. प्रकृति के साथ जीना भी सीखें. जब आप प्रकृति के साथ जीना सीखते हैं, तो उतने ही सरल, उतने ही कर्मठ और संघर्षमय भी होते हैं. दो चीजें जरूर ध्यान में रखें. एक तो असंभव जैसी कोई चीज नहीं है. दूसरा सबके साथ, सबके प्रति सम्मान होना चाहिए. एक बहुत सुंदर सा भजन है 'तेरा मंगल, मेरा मंगल, सबका मंगल होए रे'. इस दुनिया में जो भी आए हैं, सबका मंगल हो, यह धारणा रखनी चाहिए.

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