लखनऊ : सरकार मरीजों को मुफ्त इलाज-आहार का दावा कर रही है, लेकिन राजधानी लखनऊ के अस्पतालों में पौष्टिक आहार के नाम पर खेल चल रहा है. स्थिति यह है कि सरकारी अस्पताल के किचन में स्वादिष्ट भोजन बनाकर पहले स्टाफ गटक रहा है और तीमारदार रोगियों के खाने के लिए घर और होटल की दौड़ लगा रहे हैं. यह खुलासा ईटीवी भारत की तफ्तीश में हुआ. मंगलवार सुबह 11:15 बजे जब ईटीवी भारत की टीम सिविल अस्पताल में पहुंची तो मरीजों का खाना फूड ट्रॉली में डंप था और कर्मचारी भोजन के चटखारे लेने में जुटे थे.
स्टॉफ में मचा हड़कंप
राजधानी के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) अस्पताल में 402 बेड हैं. यहां हर रोज 4000 मरीज ओपीडी में आते हैं. 350 के करीब मरीजों का वार्ड में अक्सर इलाज चलता रहता है. पॉश इलाके में मौजूद अस्पताल में सुबह ईटीवी भारत की टीम मरीजों के पौष्टिक आहार व्यवस्था की पड़ताल करने पहुंची. न्यू बिल्डिंग में ऊपरी तल पर बने किचन में टीम के दाखिल होते ही अव्यवस्थाओं का अंबार मिला. यहां मरीजों का खाना फूड ट्रॉली में डंप था और कर्मचारी किचन में बैठे खाना खा रहे थे. यह वाकया कैमरे में रिकॉर्ड होते ही स्टॉफ में हड़कंप मच गया. कर्मचारी पहचान छिपाने के लिए इधर-उधर खिसकने लगे.
मशीनों में जमी धूल, गंदगी की भरमार
सिविल अस्पताल के किचन में रोटी बनाने के लिए मशीन लगी है. इसमें धूल जमी मिली, यहां पर मौजूद रैक के नीचे गंदगी पसरी थी, पत्थर पर आटा फैला मिला. ऐसे में साफ-सफाई की व्यवस्था ध्वस्त मिली. ऐसी स्थिति में बनने वाले भोजन से बीमारी का खतरा भी है.
भर्ती मरीजों को रास नहीं आ रहा अस्पताल का खाना
सिविल अस्पताल में भर्ती मरीज घर से खाना मंगवाने के लिए मजबूर हैं. दूसरे जनपद के कई मरीज होटल से खाना मंगवा रहे हैं. इसका कारण अस्पताल में दिए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता ठीक न होना है. अस्पताल की ओल्ड बिल्डिंग में भर्ती सूरज शर्मा जानकीपुरम निवासी हैं. वह घर से टिफिन मंगवाकर खा रहे हैं. यहां भर्ती जुगौली निवासी छोटू के पैर में पस बन गया है. 24 फरवरी से भर्ती छोटू को ऑपरेशन का इंतजार है. वह भी घर से टिफिन मंगवाकर अपनी भूख मिटा रहे हैं.
डाइट चार्ट से नाश्ता गायब, रोजाना मिल रहा दाल- चावल
सिविल अस्पताल हो या राज्य में प्रांतीय चिकित्सा सेवा का सबसे ज्यादा 789 बेड वाला बलरामपुर अस्पताल है. दोनों ही जगह मरीजों के पौष्टिक आहार की व्यवस्था चौपट है. अस्पतालों में मरीजों को सुबह का नाश्ता नहीं मिल रहा है. वार्ड में 11 से 12 बजे के बीच खाने की ट्रॉली भेजकर पल्ला झाड़ लिया जाता है. ऐसे ही शाम छह से सात बजे भोजन का वितरण होता है. सिविल अस्पताल में एक डायटीशियन है और बलरामपुर अस्पताल में दो डायटीशियन हैं. लिहाजा, सैकड़ों मरीजों की हिस्ट्री लेकर किचन में समय पर डाइट चार्ट रोजना भेजना डायटीशियन की क्षमता के बाहर है. वह सिर्फ ऑपरेशन के डिस्चार्ज हो रहे मरीजों को परामर्श देकर अपनी ड्यूटी का कॉलम पूरा कर रहे हैं.
प्रति मरीज भोजन का बजट 27 रुपये
जिला अस्पतालों में भोजन व्यवस्था अफसरों के पास ही है. यहां खाद्य सामग्री का टेंडर निकाला जाता है. मरीजों का खाना अस्पताल प्रशासन ही तैयार कराता है. शासन से प्रति डाइट का 27 रुपये मिल रहा है. बलरामपुर अस्पताल में मरीजों के भोजन का साल भर में 42 लाख और सिविल अस्पताल में 35 लाख रुपये मिल रहा है.
एनएचएम से हर मरीज को मिलते हैं 100 रुपये
सरकारी अस्पतालों में मरीजों के भोजन में भेदभाव भी किया जा रहा है. एनएचएम के जरिए जहां भर्ती गर्भवती-प्रसूता के भोजन के लिए 100 रुपये मुहैया कराए जाते हैं, वहीं सामान्य मरीजों के लिए 27 रुपये ही हैं. गर्भवती-प्रसूता को सुबह नाश्ते में बंद मक्खन, आधा लीटर दूध और एक मौसमी फल भी मिलता है, जबकि अन्य मरीजों को नाश्ता ही नहीं मिलता है.
क्या कहते हैं अफसर
इस संबंध में सिविल अस्पताल के निदेशक डॉ. एससी सुंदरियाल ने बताया कि उन्हें हाल ही में अस्पताल का चार्ज मिला है. उन्होंने बताया कि वह किचन की व्यवस्था को दुरुस्त करने का काम करेंगे और मरीजों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराएंगे. उन्होंने कहा कि किचन में कर्मचारियों का भोजन करना गलत है वह इसे बंद कराएंगे.
बलरामपुर अस्पताल के निदेशक डॉ. राजीव लोचन ने बताया कि वह तय बजट में मरीजों को बेहतर खाना उपलब्ध कराने का प्रयास कर रहे हैं. यहां दाल बदलकर दी जाती है और मौसमी सब्जी भी बनवाई जाती है. उन्होंने कहा कि जो भी कमियां हैं वह उन्हें दूर करेंगे.