लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म के मामले में ‘टू-फिंगर’ टेस्ट को बैन कर दिया है. कोर्ट का मानना है कि टू फिंगर टेस्ट के दौरान पीड़ित महिला फिर से प्रताड़ित होती है. राजधानी लखनऊ के वीरांगना अवंती बाई महिला अस्पताल में वर्ष 2013 से टू फिंगर टेस्ट नहीं हो रहा है. महिला रोग विशेषज्ञों ने ईटीवी से बातचीत के दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सराहनीय है.
वीरांगना अवंती बाई महिला अस्पताल की प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉ सीमा श्रीवास्तव ने बताया कि अस्पताल में रोजाना दो से तीन केस मेडिकल के लिए आते हैं. इसमें पीड़िता का टू फिंगर टेस्ट नहीं करते हैं, बल्कि इसकी जगह पर पीड़िता के बताए हुए केस हिस्ट्री के पैमाने के मुताबिक नाखून से लेकर वजाइना का सैंपल लेते हैं. इन फैसलों के द्वारा ही बताते हैं कि पीड़ित से दुष्कर्म हुआ है या नहीं. ‘टू-फिंगर’ टेस्ट को वर्जिनिटी टेस्ट भी कहा जाता था. टेस्ट में पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में दो अंगुलियां डाली जाती हैं. टेस्ट करने का मकसद यह पता लगाना होता है कि महिला के साथ शारीरिक संबंध बने थे या नहीं.
डॉ सीमा श्रीवास्तव का मानना है कि महिला पहले से ही टूट चुकी होती है और जब उसके मेडिकल की बारी आती है तो टू फिंगर टेस्ट के दौरान पीड़िता का मानसिक हनन होता है. बार-बार पीड़ित महिला को मानसिक प्रताड़ना (mental torture) का सामना करना पड़ता है. इसलिए टू फिंगर टेस्ट नहीं होना चाहिए. मेडिकल के लिए टू फिंगर टेस्ट के अलावा भी और भी कई ऑप्शन हैं. इसलिए टू फिंगर टेस्ट की आवश्यकता नहीं है. महिलाओं के साथ दुष्कर्म की जानकारी वजाइना समेत शरीर के विभिन्न अंगों पर भी खरोच व घाव के निशानों के अलावा अन्य जबरदस्ती के निशानों से जुटाई जा सकती है.
मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. अरुणा सिंह ने बताया कि टू फिंगर टेस्ट से दुष्कर्म पीड़िता महिला (rape victim woman) पूरी तरह से टूट भी जाती है. क्योंकि पहले महिला से दुष्कर्म हुआ और टू फिंगर टेस्ट के दौरान वह फिर से एक्सपोज होती हैं. ऐसे में टू फिंगर टेस्ट पीड़िता को मानसिक तौर पर काफी कमजोर कर देता है. फिलहाल वीरांगना अवंती बाई महिला अस्पताल में वर्ष 2013 से ही टू फिंगर टेस्ट बैन है. हम किसी महिला की जांच टू फिंगर से नहीं करते हैं.