लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव अभी भले ही दूर हो, लेकिन राजनीतिक दल अपनी सियासत हमेशा चमकाने की फिराक में रहते हैं. बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती मौजूदा समय में अलग रणनीति के साथ अपनी सियासी चाल चल रही हैं. 2019 में उन्होंने जिस समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा, आज उसी पर हमलावर हैं. केंद्र में सत्ताधारी दल भाजपा पर मायावती के उतने तीखे तेवर देखने को नहीं मिल रहे हैं. इसके अलावा बसपा सुप्रीमो कांग्रेस पर हमला करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रही है.
यह पहला मौका नहीं है जब बसपा अध्यक्ष विपक्षी दलों पर हमलावर हैं. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच श्रमिकों को बसों से पहुंचाने के मुद्दे पर शुरू हुई राजनीति में भी बसपा ने कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा किया था. जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370, 35A के शिथिल किए जाने के मुद्दे पर मायावती केंद्र सरकार के साथ खड़ी दिखीं. हालांकि मायावती का इस पर स्पष्टीकरण भी आया. उन्होंने कहा कि बसपा बाबा साहेब अंबेडकर के दिखाए रास्ते पर चल रही है. वह बीजेपी से साथ नहीं बल्कि देशहित में खड़ी हैं.
सपा के परशुराम वाली राजनीति पर आक्रामक
बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती समाजवादी पार्टी की परशुराम वाली राजनीति पर आक्रामक हैं. सपा ने भगवान परशुराम की 108 फीट की प्रतिमा लगवाने की घोषणा की, तब बहुजन समाज पार्टी ने सवाल दाग दिया. बसपा का सवाल है कि जब सत्ता में सपा थी तब उस वक्त परशुराम की मूर्ति क्यों नहीं लगवाई? इसके साथ ही उन्होंने यह भी घोषणा कर दी कि प्रदेश में बसपा सरकार आएगी तो परशुराम समेत सभी जाति धर्म के संतों, महापुरुषों की प्रतिमाएं लगवाएगी.
'सामंजस्य बिठाकर चलते हैं क्षेत्रीय दल'
राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर त्रिपाठी कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को अपना प्रतिद्वंदी मान रही है. लिहाजा उस पर आक्रामक होना स्वाभाविक है. बसपा, कांग्रेस को अपना राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिद्वंदी मानती है. दूसरे राज्यों में कांग्रेस बसपा को नुकसान पहुंचा रही है. राजस्थान को ही देखिए, वहां पर बसपा के सभी विधायकों को कांग्रेस ने तोड़ दिया. ऐसे में बसपा राष्ट्रीय पार्टी बनने से वंचित रह जाती है. इसलिए वह कांग्रेस से इस समय क्षुब्ध चल रही है.
राजनीतिक विश्लेषक उमाशंकर त्रिपाठी कहते हैं कि जहां तक बात सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी पर हमला नहीं करने की है तो केंद्र में जिसकी सरकार होती है, उस दल के साथ क्षेत्रीय दलों को सामंजस्य बिठा कर चलना होता है. ताकि भविष्य में अगर क्षेत्रीय दल की सरकार राज्यों में बने तो उसके साथ उसके रिश्ते इतने खराब ना हों. केंद्र पर हमला नहीं करने के दूसरे मायने भी निकाले जा सकते हैं.