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लापरवाह केजीएमयू: मरीज को था कैंसर, इलाज किया बोन टीबी का

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के केजीएमयू अस्पताल में डाॅक्टरों ने लापरवाही की सारी हदें पार कर दी. मरीज की रीढ़ की हड्डी में हुए कैंसर को पहले 10 माह तक डॉक्टर नहीं पकड़ पाए, फिर बोन टीबी की दवा 4 माह तक खिलाते रहे.

केजीएमयू में डॉक्टरों की लापरवाही
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Published : Jul 8, 2019, 11:20 AM IST

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में केजीएमयू अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही दिनोदिन बढ़ती ही जा रही है. अब हालात ऐसे हो चले हैं कि लोगों की बीमारी कुछ और होती है, लेकिन डॉक्टर इलाज कुछ और ही करते रहते हैं.

केजीएमयू में डॉक्टरों की लापरवाही.

केजीएमयू के लापरवाह डॉक्टर

  • हरदोई निवासी सुनील को करीब ढाई साल पहले रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई थी.
  • डॉक्टर पहले तो मरीज की नस दबने और फिर बोन टीबी की दवा 4 माह खिलाते रहे.
  • मर्ज बढ़ने पर दो-दो बार एमआरआई भी कराई गई.
  • जांच में मरीज को कैंसर की पुष्टि हुई.
  • यहां न्यूरोलॉजी विभाग की ओपीडी में मरीज को पहले दिखाया गया.
  • यहां पर उसको इलाज मिल जाने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
  • इस दौरान इलाज के नाम पर करीब ₹5 लाख खर्च हो गए.

बीमारी पर काबू पाने की बजाय बीमारी और ज्यादा बढ़ने लगी. तमाम तरह की शिकायतें भी बढ़ गई. लेकिन उसके हालात नहीं सुधरे. डॉक्टरों ने हड्डी की टीवी की आशंका जाहिर कर बोन टीबी का इलाज शुरू किया. लेकिन इलाज के बावजूद हालत गंभीर होती चली गई.
विद्यावती, पीड़ित की मां

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में केजीएमयू अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही दिनोदिन बढ़ती ही जा रही है. अब हालात ऐसे हो चले हैं कि लोगों की बीमारी कुछ और होती है, लेकिन डॉक्टर इलाज कुछ और ही करते रहते हैं.

केजीएमयू में डॉक्टरों की लापरवाही.

केजीएमयू के लापरवाह डॉक्टर

  • हरदोई निवासी सुनील को करीब ढाई साल पहले रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई थी.
  • डॉक्टर पहले तो मरीज की नस दबने और फिर बोन टीबी की दवा 4 माह खिलाते रहे.
  • मर्ज बढ़ने पर दो-दो बार एमआरआई भी कराई गई.
  • जांच में मरीज को कैंसर की पुष्टि हुई.
  • यहां न्यूरोलॉजी विभाग की ओपीडी में मरीज को पहले दिखाया गया.
  • यहां पर उसको इलाज मिल जाने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
  • इस दौरान इलाज के नाम पर करीब ₹5 लाख खर्च हो गए.

बीमारी पर काबू पाने की बजाय बीमारी और ज्यादा बढ़ने लगी. तमाम तरह की शिकायतें भी बढ़ गई. लेकिन उसके हालात नहीं सुधरे. डॉक्टरों ने हड्डी की टीवी की आशंका जाहिर कर बोन टीबी का इलाज शुरू किया. लेकिन इलाज के बावजूद हालत गंभीर होती चली गई.
विद्यावती, पीड़ित की मां

Intro:केजीएमयू में डॉक्टरों की लापरवाही हद से हद पार करते जा रही हैं। अब हालात ऐसे हो चले हैं कि लोगों की बीमारी कुछ और होती है। लेकिन भी डॉक्टर इलाज कुछ और ही देते रहते हैं। सिलसिला कई महीनों तो चलता रहता है लेकिन डॉक्टर अपनी आंखें मूंदे बैठे रहते हैं।


Body:राजधानी लखनऊ में केजीएमयू के अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही दिल पर दिन बढ़ती ही जा रही है। रीढ़ की हड्डी में हुए कैंसर को 10 माह तक डॉक्टर नहीं पकड़ पाए। डॉक्टर पहले तो मरीज की नस दबने और फिर बोन टीबी की दवा 4 माह खिलाते रहे।मर्ज बढ़ने पर दो-दो बार एमआरआई भी कराई गई। इसके बाद आई बायोप्सी कराई गई। जांच में मरीज को कैंसर की पुष्टि हुई। इस दौरान इलाज के नाम पर करीब ₹5 लाख खर्च हो गए। तीमारदारों ने केजीएमयू डॉक्टर से शिकायत की है। डॉक्टरों ने उसे थेरेपी विभाग रेफर कर दिया है। अब वहां डॉक्टरों उसे भर्ती नहीं ले रहे हैं। वहां मरीज 3 दिन से रेडियोथैरेपी विभाग के बरामदे में स्ट्रेचर पर तड़प तड़प रहा है। हरदोई निवासी सुनील करीब ढाई साल पहले रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई थी। जिला अस्पताल हरदोई में इलाज हुआ। लेकिन वहां पर कोई फायदा न मिलने के बाद सीधा केजीएमयू की तरफ बढ़े डॉक्टरों ने मामला गंभीर देखा तो केजीएमयू के लिए रेफर किया था। जहां पर उसको इलाज मिल जाने की उम्मीद थी। लेकिन यहां पर उसे जिस बीमारी का इलाज चाहिए था। वह मिला ही नहीं दरअसल यहां न्यूरोलॉजी विभाग की ओपीडी में मरीज को पहले दिखाया गया। जहां डॉक्टरों ने एम आर आई कराने व नस दबे होने की बात कहकर दवा शुरू कर दी। करीब 3 माह तक यही दवा चलती रही मगर कोई फायदा न हुआ। मां विद्यावती का कहना है की बीमारी पर काबू पानी की बजाय बीमारी और ज्यादा बढ़ने लगी। इसके बाद उनके बेटे को तमाम तरह की शिकायतें भी बढ़ गई। लेकिन उसके हालात नहीं सुधरे। इसके बाद डॉक्टरों ने हड्डी की टीवी की आशंका जाहिर की बोन टीबी का इलाज शुरू किया। लेकिन इलाज के बावजूद मरीज की हालत गंभीर हो तो चली गई। मरीज चलने फिरने में भी असमर्थ हो गया।अब हालात ऐसे हैं कि रेडियोथैरेपी विभाग के बाहर बरामदे में भर्ती होने के इंतजार में पड़ा है मां विद्यावती का कहना है कि डॉक्टरों ने समय पर मर्ज पकड़ लिया होता तो आज उनके बेटे की हालत गंभीर ना होती।

इसके बाद 10 माह के इलाज के बाद मरीज का बायोप्सी कराई जाती है जिसमें उसको कैंसर निकलता है। हालांकि 10 माह बाद डॉक्टरों ने इस मर्ज को पकड़ता है। जांच में ट्यूमर नजर आया इसकी पुष्टि बायोप्सी जांच कराई गई बायोप्सी में कैंसर की पुष्टि हो गई है। परिवार जनों का गलत इलाज का आरोप लगाया गया तो डॉक्टर ने मरीज की रेडियोथेरेपी विभाग में ठेल दिया। जहां पर डॉक्टर मरीज को भर्ती ही नहीं कर रहे हैं।

बाइट- विद्यावती, मरीज की माँ

बाइट- डॉ सुधीर सिंह, प्रवक्ता, केजीएमयू


Conclusion:एन्ड
शुभम पाण्डेय
7054605976
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