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राष्ट्रवाद के रथ पर सवार भाजपा, नरेंद्र मोदी को दोबारा PM बनाना फोकस

लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा मोदी-योगी सरकार की उपलब्धियों के साथ साथ राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे को मजबूती से उठा रही है. चुनावी सभाओं में भाजपा नेता अखिलेश सरकार में हुए मुजफ्फरनगर दंगों, कावंड़ियों के डीजे पर रोक और पलायन जैसे मुद्दों को उठा रहे हैं लेकिन इसी बीच वह सेना की जाबांजी का जिक्र करना भी नहीं भूलते.

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Published : Apr 4, 2019, 6:30 PM IST

लखनऊ: बीजेपी पिछले लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भ्रष्टाचार के मुद्दे को नहीं उठा रही क्योंकि वह इस बार खुद सत्ता में है. भाजपा मोदी-योगी सरकार की उपलब्धियों के साथ साथ राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे को मजबूती से उठा रही है.

भाजपा के शीर्ष नेताओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पश्चिम उत्तर प्रदेश की चुनावी सभाओं में वहां की जनता को राज्य की पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार में हुए मुजफ्फरनगर दंगों, कावंड़ियों के डीजे पर रोक और पलायन जैसे मुद्दों को उठा रहे हैं. सेना की जाबांजी का जिक्र करना भी भाजपा नेता नहीं भूलते. जाहिर है अगर यह मुद्दे जनता को भा गए तो निश्चित तौर पर लोकसभा चुनाव परिणाम एक बार फिर बीजेपी के लिए शुभ साबित होंगे.

पिछले लोकसभा चुनाव में चुनाव से करीब एक साल पहले ही पार्टियां, खासकर विपक्षी दलों में भाजपा युद्ध स्तर पर चुनाव में कूद चुकी थी. उत्तर प्रदेश की बात करें तो भाजपा की चुनावी रै लियां अक्टूबर 2103 से ही शुरू हो गईं थीं. नरेंद्र मोदी की शुरुआती रैली कानपुर में हुई, वहीं से उन्होंने चुनावी हुंकार भरी थी. इसके बाद उन्होंने पूरे प्रदेश भर में ताबड़तोड़ सभाएं की. इस बार की विपक्ष की बात करें तो चुनाव शुरू हो जाने के बाद भी अभी तक वह रणनीतिक तौर पर मतदाताओं के बीच नहीं पहुंच पाया है. उनकी चुनावी सभाएं भी उतनी नहीं दिख रही हैं, जितनी कि सत्ता पक्ष में होने के बावजूद भाजपा की दिखाई पड़ रही हैं.

भारतीय जनता पार्टी पिछली बार उत्तर प्रदेश में 78 प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा था, जिनमें से 71 सीटें भाजपा के खाते में गई थी और जिन सात सीटों पर भाजपा नहीं जीती, उस पर वह दूसरे स्थान पर रही. मैनपुरी और आजमगढ़ में सपा वरिष्ठ नेता मुलायम सिंह, अमेठी में राहुल गांधी, रायबरेली में सोनिया गांधी, कन्नौज में डिंपल यादव, फिरोजाबाद में अक्षय यादव, बदायूं में धर्मेंद्र यादव जीते थे. दो सीटों पर बीजेपी के सहयोगी दल अपना दल ने जीत दर्ज की। इस चुनाव में बीजेपी को यूपी में 42.03 प्रतिशत मत मिले थे.

राजनीति के जानकारों ने रखी राष्ट्रवाद पर अपनी राय

भारतीय जनता पार्टी 2009 के लोकसभा चुनाव में महज 10 सीटें जीत सकी थी. बीजेपी ने 2009 में 71 प्रत्याशी उतारे थे. उसे पूरे उत्तर प्रदेश में 17.50% वोट मिला था. इस चुनाव में बीएसपी को 20, सपा को 23, कांग्रेस को 21 और रालोद को पांच सीटें मिली थीं.

भाजपा का फोकस नरेंद्र मोदी को दोबारा पीएम बनाने का है
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप अवस्थी ने कहा कि बीजेपी दो तरह से चुनाव लड़ रही है- राष्ट्रीय स्तर पर और प्रदेश स्तर पर. भाजपा का पीएम मोदी को एक बार फिर प्रधानमंत्री बनाने पर फोकस है. पीएम मोदी की बात आते ही राष्ट्रीय मुद्दे आते हैं. इसमे मोदी सरकार की जन धन योजना, उज्ज्वला, सौभाग्य, आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं को बीजेपी उठा रही है. वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में अबकी बार 74 बार का नारा देते हैं, तो उनकी सरकार का गुंडागर्दी के खिलाफ एक्शन लिया जाना, इन्वेस्टमेंट को लेकर हुए एमओयू साइन और अन्य योजनाओं का जिक्र किया जा रहा है, लेकिन देखना होगा कि यह मुद्दा कितना कारगर सिद्ध होते हैं?

सपा-बसपा को पीछे छोड़ रही है भाजपा
राजनीतिक विश्लेषक दिलीप अग्निहोत्री का मानना है कि बीजेपी को सबसे ज्यादा लाभ विपक्ष में प्रधानमंत्री पद के लिए कोई स्पष्ट चेहरा नहीं होने का मिल रहा है. बीजेपी दो प्रकार के मुद्दों के साथ चुनाव मैदान में है. एक तो नीति का दूसरा नेतृत्व का. पीएम मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की वजह से बीजेपी को लाभ मिलता दिख रहा है। दूसरा नीतियां और विकास. यूपी के मुख्यमंत्री योगी ने दो साल के कार्यकाल की रिपोर्ट पेश की है. उसमें वह सपा बसपा को काफी पीछे छोड़ते हुए दिख रहे हैं. हां, गठबंधन का भाजपा पर असर पड़ेगा. दोनों दलों के कार्यकर्ताओं में जमीनी स्तर पर गठबंधन नहीं हो पाना, गठबंधन की बड़ी परेशानी है.

सत्ता में रहने के बाद जिस प्रकार से राजनीतिक दलों को कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उसी तरह से भाजपा के सामने भी इस बार 2014 के परिणामों को दोहराना उसके लिए कड़ी चुनौती है. जमीनी स्तर पर सांगठनिक ढांचा और उसकी सक्रियता के अलावा सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन भजपा के लिए राह आसान करने वाले साबित होंगे. वहीं सपा बसपा का गठबंधन भाजपा के पसीने छुड़ा रहा है. बिना किसी हो हल्ला के गठबंधन काम कर रहा है. अगर दोनों दलों के वोट एक दूसरे को ट्रांसफर हो गए तो भाजपा को भारी नुकसान पहुंच सकता है.

लखनऊ: बीजेपी पिछले लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भ्रष्टाचार के मुद्दे को नहीं उठा रही क्योंकि वह इस बार खुद सत्ता में है. भाजपा मोदी-योगी सरकार की उपलब्धियों के साथ साथ राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे को मजबूती से उठा रही है.

भाजपा के शीर्ष नेताओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पश्चिम उत्तर प्रदेश की चुनावी सभाओं में वहां की जनता को राज्य की पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार में हुए मुजफ्फरनगर दंगों, कावंड़ियों के डीजे पर रोक और पलायन जैसे मुद्दों को उठा रहे हैं. सेना की जाबांजी का जिक्र करना भी भाजपा नेता नहीं भूलते. जाहिर है अगर यह मुद्दे जनता को भा गए तो निश्चित तौर पर लोकसभा चुनाव परिणाम एक बार फिर बीजेपी के लिए शुभ साबित होंगे.

पिछले लोकसभा चुनाव में चुनाव से करीब एक साल पहले ही पार्टियां, खासकर विपक्षी दलों में भाजपा युद्ध स्तर पर चुनाव में कूद चुकी थी. उत्तर प्रदेश की बात करें तो भाजपा की चुनावी रै लियां अक्टूबर 2103 से ही शुरू हो गईं थीं. नरेंद्र मोदी की शुरुआती रैली कानपुर में हुई, वहीं से उन्होंने चुनावी हुंकार भरी थी. इसके बाद उन्होंने पूरे प्रदेश भर में ताबड़तोड़ सभाएं की. इस बार की विपक्ष की बात करें तो चुनाव शुरू हो जाने के बाद भी अभी तक वह रणनीतिक तौर पर मतदाताओं के बीच नहीं पहुंच पाया है. उनकी चुनावी सभाएं भी उतनी नहीं दिख रही हैं, जितनी कि सत्ता पक्ष में होने के बावजूद भाजपा की दिखाई पड़ रही हैं.

भारतीय जनता पार्टी पिछली बार उत्तर प्रदेश में 78 प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा था, जिनमें से 71 सीटें भाजपा के खाते में गई थी और जिन सात सीटों पर भाजपा नहीं जीती, उस पर वह दूसरे स्थान पर रही. मैनपुरी और आजमगढ़ में सपा वरिष्ठ नेता मुलायम सिंह, अमेठी में राहुल गांधी, रायबरेली में सोनिया गांधी, कन्नौज में डिंपल यादव, फिरोजाबाद में अक्षय यादव, बदायूं में धर्मेंद्र यादव जीते थे. दो सीटों पर बीजेपी के सहयोगी दल अपना दल ने जीत दर्ज की। इस चुनाव में बीजेपी को यूपी में 42.03 प्रतिशत मत मिले थे.

राजनीति के जानकारों ने रखी राष्ट्रवाद पर अपनी राय

भारतीय जनता पार्टी 2009 के लोकसभा चुनाव में महज 10 सीटें जीत सकी थी. बीजेपी ने 2009 में 71 प्रत्याशी उतारे थे. उसे पूरे उत्तर प्रदेश में 17.50% वोट मिला था. इस चुनाव में बीएसपी को 20, सपा को 23, कांग्रेस को 21 और रालोद को पांच सीटें मिली थीं.

भाजपा का फोकस नरेंद्र मोदी को दोबारा पीएम बनाने का है
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप अवस्थी ने कहा कि बीजेपी दो तरह से चुनाव लड़ रही है- राष्ट्रीय स्तर पर और प्रदेश स्तर पर. भाजपा का पीएम मोदी को एक बार फिर प्रधानमंत्री बनाने पर फोकस है. पीएम मोदी की बात आते ही राष्ट्रीय मुद्दे आते हैं. इसमे मोदी सरकार की जन धन योजना, उज्ज्वला, सौभाग्य, आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं को बीजेपी उठा रही है. वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में अबकी बार 74 बार का नारा देते हैं, तो उनकी सरकार का गुंडागर्दी के खिलाफ एक्शन लिया जाना, इन्वेस्टमेंट को लेकर हुए एमओयू साइन और अन्य योजनाओं का जिक्र किया जा रहा है, लेकिन देखना होगा कि यह मुद्दा कितना कारगर सिद्ध होते हैं?

सपा-बसपा को पीछे छोड़ रही है भाजपा
राजनीतिक विश्लेषक दिलीप अग्निहोत्री का मानना है कि बीजेपी को सबसे ज्यादा लाभ विपक्ष में प्रधानमंत्री पद के लिए कोई स्पष्ट चेहरा नहीं होने का मिल रहा है. बीजेपी दो प्रकार के मुद्दों के साथ चुनाव मैदान में है. एक तो नीति का दूसरा नेतृत्व का. पीएम मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की वजह से बीजेपी को लाभ मिलता दिख रहा है। दूसरा नीतियां और विकास. यूपी के मुख्यमंत्री योगी ने दो साल के कार्यकाल की रिपोर्ट पेश की है. उसमें वह सपा बसपा को काफी पीछे छोड़ते हुए दिख रहे हैं. हां, गठबंधन का भाजपा पर असर पड़ेगा. दोनों दलों के कार्यकर्ताओं में जमीनी स्तर पर गठबंधन नहीं हो पाना, गठबंधन की बड़ी परेशानी है.

सत्ता में रहने के बाद जिस प्रकार से राजनीतिक दलों को कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उसी तरह से भाजपा के सामने भी इस बार 2014 के परिणामों को दोहराना उसके लिए कड़ी चुनौती है. जमीनी स्तर पर सांगठनिक ढांचा और उसकी सक्रियता के अलावा सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन भजपा के लिए राह आसान करने वाले साबित होंगे. वहीं सपा बसपा का गठबंधन भाजपा के पसीने छुड़ा रहा है. बिना किसी हो हल्ला के गठबंधन काम कर रहा है. अगर दोनों दलों के वोट एक दूसरे को ट्रांसफर हो गए तो भाजपा को भारी नुकसान पहुंच सकता है.

Intro:नोट-विश्वनाथ जी के ध्यानार्थ

लखनऊ। बीजेपी पिछले लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भ्रष्टाचार के मुद्दे को नहीं उठा रही क्योंकि वह इस बार खुद सत्ता में है। भाजपा मोदी-योगी सरकार की उपलब्धियों के साथ साथ राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे को मजबूती से उठा रही है। भजपा के शीर्ष नेताओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पश्चिम उत्तर प्रदेश की चुनावी सभाओं में वहां की जनता को राज्य की पूर्वर्ती अखिलेश सरकार में हुए मुजफ्फरनगर दंगों, कावंड़ियों के डीजे पर रोक और पलायन जैसे मुद्दों को उठा रहे हैं। सेना की जाबांजी का जिक्र करना भी भाजपा नेता नहीं भूलते। जाहिर है अगर यह मुद्दे जनता को भा गए तो निश्चित तौर पर लोकसभा चुनाव परिणाम एक बार फिर बीजेपी के लिए शुभ साबित होंगे।


Body:पिछले लोकसभा चुनाव में चुनाव से करीब एक साल पहले ही पार्टियां, खासकर विपक्षी दलों में भाजपा युद्ध स्तर पर चुनाव में कूद चुकी थी। उत्तर प्रदेश की बात करें तो भाजपा की चुनावी रैलियां अक्टूबर 2103 से ही शुरू हो गई थी। नरेंद्र मोदी की शुरुआती रैली कानपुर में हुई। वहीं से उन्होंने चुनावी हुंकार भरी थी। इसके बाद उन्होंने पूरे प्रदेश भर में ताबड़तोड़ सभाएं की। इस बार की विपक्ष की बात करें तो चुनाव शुरू हो जाने के बाद भी अभी तक वह रणनीतिक तौर पर मतदाताओं के बीच नहीं पहुंच पाया है। उनकी चुनावी सभाएं भी उतनी नहीं दिख रही हैं जितनी कि सत्ता पक्ष में होने के बावजूद भाजपा की दिखाई पड़ रही हैं।

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1-भारतीय जनता पार्टी पिछली बार उत्तर प्रदेश में 78 प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा था जिनमें से 71 सीटें भाजपा के खाते में गई थी और जिन सात सीटों पर भाजपा नहीं जीती उस पर वह दूसरे स्थान पर रही। मैनपुरी और आजमगढ़ में सपा वरिष्ठ नेता मुलायम सिंह, अमेठी में राहुल गांधी, रायबरेली में सोनिया गांधी, कन्नौज में डिम्पल यादव, फिरोजाबाद में अक्षय यादव, बदायूं में धर्मेंद्र यादव जीते थे। दो सीटों पर बीजेपी के सहयोगी दल अपना दल ने जीत दर्ज की। इस चुनाव में बीजेपी को यूपी में 42.03 प्रतिशत मत मिले थे।

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भारतीय जनता पार्टी 2009 के लोकसभा चुनाव में महज 10 सीटें जीत सकी थी। बीजेपी ने 2009 में 71 प्रत्याशी उतारे थे। उसे पूरे उत्तर प्रदेश में 17.50% वोट मिला था। इस चुनाव में बीएसपी को 20, सपा को 23, कांग्रेस को 21 और रालोद को पांच सीटें मिली थी।


बाईट-1- वरिष्ठ पत्रकार दिलीप अवस्थी ने कहा कि बीजेपी दो तरह से चुनाव लड़ रही है। राष्ट्रीय स्तर पर और प्रदेश स्तर पर। भाजपा का पीएम मोदी को एक बार फिर प्रधानमंत्री बनाने पर फोकस है। पीएम मोदी की बात आते ही राष्ट्रीय मुद्दे आते हैं। इसमे मोदी सरकार की जन धन योजना, उज्ज्वला, सौभाग्य, आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं को बीजेपी उठा रही है। वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में अबकी बार 74 बार का नारा देते हैं। तो उनकी सरकार का गुंडागर्दी के खिलाफ एक्शन लिया जाना, इन्वेस्टमेंट को लेकर हुए एमओयू साइन और अन्य योजनाओं का जिक्र किया जा रहा है। लेकिन देखना होगा कि यह मुद्दा कितना कारगर सिद्ध होते हैं।

रही बात गठबंधन की तो गठबंधन में अपनी बहुत सारी समस्याएं हैं। गठबंधन ऊपरी स्तर पर तो हो गया है। लेकिन अंदर खाने में दोनों जगह समस्याएं हैं। मायावती जी के यहां सबसे बड़ी समस्या राज्य स्तर पर किसी नेता का ना होना। जो पार्टी का उत्तर प्रदेश में नेतृत्व कर सके। दूसरा पक्ष समाजवादी पार्टी का है जिसमें मुलायम सिंह या खिलेश यादव हैं। यादव वोट ट्रांसफर अच्छे ढंग से नहीं होता है। ना कभी कोई इस प्रकार का इतिहास रहा है
न ही ऐसा कोई तजुर्बा है, जिसे यह कहा जा सके कि यादव और मायावती को ट्रांसफर हो जाएगा। मुस्लिम मतों के ट्रांसफर का भी यही हाल है। यह नहीं होता तब तक मायावती के लिए चुनाव बहुत हितकर नहीं दिखता। उसी तरह अखिलेश यादव का समाजवादी पार्टी का सवाल है। उसमें आपस में लड़ाई झगड़े रहे हैं। इतनी सारी बातें नेताओं में हैं कि जो निचले स्तर का नेतृत्व है वह भटका हुआ है। अखिलेश यादव को उनके चाचा शिवपाल यादव नुकसान पहुंचाएंगे। शिवपाल यादव ऐसे नेता हैं जिनकी पार्टी कार्यकर्ताओं से सबसे ज्यादा करीबी रिश्ते रहे हैं। संगठन पर उनका प्रभाव ज्यादा रहा है।

बाईट-2- राजीनीतिक विश्लेषक दिलीप अग्निहोत्री का मानना है कि बीजेपी को सबसे ज्यादा लाभ विपक्ष में प्रधानमंत्री पद के लिए कोई स्पष्ट चेहरा नहीं होने का मिल रहा है। बीजेपी दो प्रकार के मुद्दों के साथ चुनाव मैदान में है। एक तो नीति का दूसरा नेतृत्व का। पीएम मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की वजह से बीजेपी को लाभ मिलता दिख रहा है। दूसरा नीतियां और विकास। यूपी के मुख्यमंत्री योगी ने दो साल के कार्यकाल की रिपोर्ट पेश की है। उसमें वह सपा बसपा को काफी पीछे छोड़ते हुए दिख रहे हैं। हां गठबंधन का भाजपा पर असर पड़ेगा। दोनों दलों के कार्यकर्ताओं में जमीनी स्तर पर गठबंधन नहीं हो पाना गठबंधन की बड़ी परेशानी है।


Conclusion:सत्ता में रहने के बाद जिस प्रकार से राजनीतिक दलों को कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उसी तरह से भाजपा के सामने भी इस बार 2014 के परिणामों को दोहराना उसके लिए कड़ी चुनौती है। जमीनी स्तर पर सांगठनिक ढांचा और उसकी सक्रियता के अलावा सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन भजपा के लिए राह आसान करने वाले साबित होंगे। वहीं सपा बसपा का गठबंधन भाजपा के पसीने छुड़ा रहा है। बिना किसी हो हल्ला के गठबंधन काम कर रहा है। अगर दोनों दलों के वोट एक दूसरे को ट्रांसफर हो गए तो भाजपा को भारी नुकसान पहुंच सकता है।
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