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प्रयागराज महाकुंभ; बेटे की मौत ने दिखाई सनातन की राह, अमेरिकी सैनिक माइकल भारत आकर बन गए बाबा मोक्षपुरी - MAHA KUMBH MELA 2025

पश्चिमी जीवनशैली को त्याग ध्यान और आत्मज्ञान का चुना रास्ता, जूना अखाड़े से जुड़ सनातन का कर रहे प्रचार-प्रसार.

माइकल भारत आकर बन गए बाबा मोक्षपुरी.
माइकल भारत आकर बन गए बाबा मोक्षपुरी. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 13, 2025, 1:44 PM IST

प्रयागराज : मकाकुंभ देश ही नहीं पूरी दुनिया के संतों-आध्यात्मिक गुरुओं को आकर्षित कर रहा है. अमेरिका के न्यू मैक्सिको में जन्मे बाबा मोक्षपुरी भी मेले में मौजूद हैं. वह कभी अमेरिकी सेना में सैनिक थे. उस दौरान उनका नाम माइकल था. वह अपने बेटे की मौत से इस कदर टूटे कि सब कुछ त्यागने का फैसला ले लिया. इसके बाद भारत का रुख कर लिया. फिर उनकी आध्यात्मिक यात्रा शुरू हुई. वे सनातन धर्म से जुड़कर माइकल से बाबा मोक्षपुरी बन गए.

कैसे शुरू हुआ सैनिक से संत बनने का सफर : बाबा मोक्षपुरी कहते हैं कि मैं भी कभी साधारण व्यक्ति था. परिवार और पत्नी के साथ समय बिताना था. घूमना मुझे हमेशा पसंद था. सेना में भी शामिल हुआ, लेकिन एक समय ऐसा आया जब मैंने महसूस किया कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है. तभी मैंने मोक्ष की तलाश में इस अनंत यात्रा की शुरुआत की. वे जूना अखाड़े से जुड़े हैं. अपना पूरा जीवन सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर चुके हैं.

पहली बार 25 साल पहले आए थे भारत : अमेरिका में जन्मे बाबा मोक्षपुरी ने वर्ष 2000 में पहली बार अपने परिवार (पत्नी और बेटे) के साथ भारत यात्रा की. उन्होंने बताया कि वह यात्रा उनके जीवन की सबसे यादगार घटना थी. इसी दौरान उन्होंने ध्यान और योग को जाना. पहली बार सनातन धर्म के बारे में समझा. भारतीय संस्कृति और परंपराओं ने उन्हें प्रभावित किया. यह उनकी आध्यात्मिक जागृति का आगाज था, जिसे वह ईश्वर का आह्वान मानते हैं.

बेटे की मृत्यु ने बदला दृष्टिकोण : बाबा मोक्षपुरी के जीवन में बड़ा बदलाव तब आया जब उनके बेटे की असमय मृत्यु हो गई. उन्होंने बताया कि इस दुखद घटना ने मुझे यह समझने में मदद की कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है. इसी दौरान मैंने ध्यान और योग को अपनी शरणस्थली बनाया, जिसने मुझे इस कठिन समय से बाहर निकाला.

योग और सनातन धर्म के प्रचार में समर्पित है जीवन : बाबा मोक्षपुरी अब दुनिया भर में घूमकर भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की शिक्षाओं का प्रचार कर रहे हैं. 2016 में उज्जैन कुंभ के बाद से उन्होंने हर माह कुंभ में हिस्सा लेने का संकल्प लिया. उनका मानना है कि इतनी भव्य परंपरा सिर्फ भारत में ही संभव है.

नीम करोली बाबा से मिली प्रेरणा : बाबा मोक्षपुरी ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा में नीम करोली बाबा के प्रभाव को खासतौर पर बताया. वे कहते हैं कि नीम करोली बाबा के आश्रम में ध्यान और भक्ति की ऊर्जा ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया. उन्हें वहां जाकर ऐसा लगा जैसे बाबा स्वयं भगवान हनुमान का रूप हैं. यह अनुभव उनके जीवन में भक्ति, ध्यान और योग के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को और मजबूत करता है.

न्यू मैक्सिको में आश्रम खोलने की योजना : सनातन से मजबूती से जुड़े बाबा मोक्षपुरी ने अपनी पश्चिमी जीवनशैली को त्यागकर ध्यान और आत्मज्ञान के मार्ग को चुना. अब वे न्यू मैक्सिको में एक आश्रम खोलने का प्लान कर रहे हैं, जहां से वे भारतीय दर्शन और योग का प्रचार प्रसार करेंगे. सनातन धर्म को बुलंदियों पर पहुंचाएंगे.

यह भी पढ़ें : प्रयागराज महाकुंभ; घाटों पर 12 किमी तक हर-हर गंगे की गूंज, देश-विदेश से पहुंचे भक्त, बोले- यह जीवन का अद्भुत अनुभव

प्रयागराज : मकाकुंभ देश ही नहीं पूरी दुनिया के संतों-आध्यात्मिक गुरुओं को आकर्षित कर रहा है. अमेरिका के न्यू मैक्सिको में जन्मे बाबा मोक्षपुरी भी मेले में मौजूद हैं. वह कभी अमेरिकी सेना में सैनिक थे. उस दौरान उनका नाम माइकल था. वह अपने बेटे की मौत से इस कदर टूटे कि सब कुछ त्यागने का फैसला ले लिया. इसके बाद भारत का रुख कर लिया. फिर उनकी आध्यात्मिक यात्रा शुरू हुई. वे सनातन धर्म से जुड़कर माइकल से बाबा मोक्षपुरी बन गए.

कैसे शुरू हुआ सैनिक से संत बनने का सफर : बाबा मोक्षपुरी कहते हैं कि मैं भी कभी साधारण व्यक्ति था. परिवार और पत्नी के साथ समय बिताना था. घूमना मुझे हमेशा पसंद था. सेना में भी शामिल हुआ, लेकिन एक समय ऐसा आया जब मैंने महसूस किया कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है. तभी मैंने मोक्ष की तलाश में इस अनंत यात्रा की शुरुआत की. वे जूना अखाड़े से जुड़े हैं. अपना पूरा जीवन सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर चुके हैं.

पहली बार 25 साल पहले आए थे भारत : अमेरिका में जन्मे बाबा मोक्षपुरी ने वर्ष 2000 में पहली बार अपने परिवार (पत्नी और बेटे) के साथ भारत यात्रा की. उन्होंने बताया कि वह यात्रा उनके जीवन की सबसे यादगार घटना थी. इसी दौरान उन्होंने ध्यान और योग को जाना. पहली बार सनातन धर्म के बारे में समझा. भारतीय संस्कृति और परंपराओं ने उन्हें प्रभावित किया. यह उनकी आध्यात्मिक जागृति का आगाज था, जिसे वह ईश्वर का आह्वान मानते हैं.

बेटे की मृत्यु ने बदला दृष्टिकोण : बाबा मोक्षपुरी के जीवन में बड़ा बदलाव तब आया जब उनके बेटे की असमय मृत्यु हो गई. उन्होंने बताया कि इस दुखद घटना ने मुझे यह समझने में मदद की कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है. इसी दौरान मैंने ध्यान और योग को अपनी शरणस्थली बनाया, जिसने मुझे इस कठिन समय से बाहर निकाला.

योग और सनातन धर्म के प्रचार में समर्पित है जीवन : बाबा मोक्षपुरी अब दुनिया भर में घूमकर भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की शिक्षाओं का प्रचार कर रहे हैं. 2016 में उज्जैन कुंभ के बाद से उन्होंने हर माह कुंभ में हिस्सा लेने का संकल्प लिया. उनका मानना है कि इतनी भव्य परंपरा सिर्फ भारत में ही संभव है.

नीम करोली बाबा से मिली प्रेरणा : बाबा मोक्षपुरी ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा में नीम करोली बाबा के प्रभाव को खासतौर पर बताया. वे कहते हैं कि नीम करोली बाबा के आश्रम में ध्यान और भक्ति की ऊर्जा ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया. उन्हें वहां जाकर ऐसा लगा जैसे बाबा स्वयं भगवान हनुमान का रूप हैं. यह अनुभव उनके जीवन में भक्ति, ध्यान और योग के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को और मजबूत करता है.

न्यू मैक्सिको में आश्रम खोलने की योजना : सनातन से मजबूती से जुड़े बाबा मोक्षपुरी ने अपनी पश्चिमी जीवनशैली को त्यागकर ध्यान और आत्मज्ञान के मार्ग को चुना. अब वे न्यू मैक्सिको में एक आश्रम खोलने का प्लान कर रहे हैं, जहां से वे भारतीय दर्शन और योग का प्रचार प्रसार करेंगे. सनातन धर्म को बुलंदियों पर पहुंचाएंगे.

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